नाशिक में करें Glamping

नाशिक में करें Glamping

मुझे मुँह-अँधरे फ्लाइट लेना पसंद नहीं है। लेकिन दिल्ली से नाशिक की फ्लाइट सुबह 6.30 की थी इसलिए देर रात ही घर से निकलना पड़ा। दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था क्योंकि दिल्ली से नाशिक के लिए फिलहाल यही एक फ्लाइट है। देश की राजधानी से एक ही फ्लाइट होने का मतलब है कि अभी नाशिक को पर्यटन के नक्शे पर मशहूर बनाने के लिए काफी कुछ करना बाकी है। यह भी एक वजह रही होगी कि महाराष्ट्र पर्यटन ने लग्ज़री टेंट सिटी की शुरुआत के लिए नाशिक को चुना। दरअसल मैं नाशिक में महाराष्ट्र पर्यटन विभाग के Eco Glamping Festival को देखने जा रहा था। ये महाराष्ट्र पर्यटन विभाग की बसाई लग्ज़री टेंट सिटी है जिसे नाशिक में गोदावरी नदी पर बने गंगापुर बांध के किनारे पर बसाया गया है। 17 जनवरी से शुरू हुई ये टेंट सिटी 31 मार्च तक रहेगी। इस सिटी को ही Eco Glamping Festival का नाम दिया गया है। 

झील के किनारे टेंट सिटी

नाशिक हवाईअड्डे से यहां पहुंचने में करीब 1 घंटे का समय लगा। कैंप साइट पर पहुंचते ही मन खुश हो गया। गोदावरी के बांध पर बनी विशाल झील ने जैसे मन मोह लिया। शहर की भीड़-भाड़ से दूर झील के किनारे बहुत सुकून का अहसास हो रहा था। 

Eco Galmping fest nest Nashik
गंगापुर बांध पर बनी झील के किनारे बसी टेंट सिटी

यहां पहुंचते ही रिसेप्शन पर मुझे दिया गया Eco Glamping का ख़ास पासपोर्ट, जिसमें टेंट सिटी के बारे में सारी जानकारियां दी गई हैं। यहां आप कौन-कौन सी गतिविधियों और रोमांचक खेलों में हिस्सा ले सकते हैं, सबकी जानकारी इस पार्सपोर्ट में है। मुझे मेहमानों के स्वागत का यह तरीका पसंद आया। सफ़र खत्म होने के बाद इस पासपोर्ट को यादगार के तौर पर साथ ले जा सकते हैं। इसके बाद गोल्फ कार्ट से मुझे मेरे टेंट तक पहुंचाया गया । टेंट सिटी इतना बड़ा भी नहीं है कि आपको हमेशा आने-जाने के लिए गोल्फ कार्ट की ज़रूरत हो फिर भी खेतों की ऊंची नीची जमीन पर बने टैंट सिटी में कुछ लोगों को यह सुविधा काफी पसंद आएगी।

Eco Glamping Festival में रहने के ठिकाने

यहां पर्यटकों के रुकने के लिए 60 लग्ज़री टेंट और पॉड्स बनाए गए हैं। लग्ज़री टेंट तीन श्रेणियों में बांटें गए हैं। 

1- डीलक्स टेंट

यहां 40 डीलक्स टेंट लगाए गए हैं। मेरा रुकने का ठिकाना भी डीलक्स टेंट में ही था। यहां बाहर बैठने के लिए जगह दी गई है जहां आराम कुर्सी पर बैठकर बाहर के नज़ारे देखे जा सकते हैं। उसके बाद अंदर टेंट में सोने के लिए डबल बैड लगाया गया है। टेंट का आकार काफी बड़ा है। ज़रूरत ही हर चीज यहां मौजूद है। टेंट ख़ासा बड़ा है। दो लोग रुकेंगे तो भी टेंट भरा हुआ नहीं लगेगा। इसकी छत भी काफी ऊंची है जिससे ज़्यादा जगह का अहसास होता है। मैं पहले भी कई बार इस तरह के टेंट में रुक चुका हूं और उनके मुकाबले इस टेंट का बड़ा आकार मुझे पसंद आया। टेंट के साथ ही बाथरूम बना है जिसमें भी काफी जगह दी गई है। रुकने का यह ठिकाना मुझे पसंद आया। इसका एक दिन का किराया 4000 रुपये है।

2- रॉयल टेंट

डीलक्स से ऊपर की श्रेणी में यहां रॉयल टेंट लगाए गए हैं। रॉयल टेंट में डबल बैड रुम के साथ ही काफी बड़ा लिविंग रूम दिया गया है। लिविंग रूम में टेलिविजन और मिनी फ्रिज भी रखा गया है। अगर आप दोस्तों के साथ आए हैं तो लिविंग रूम में आराम से शाम का मज़ा ले सकते हैं। इसका एक दिन का किराया 8000 रुपये है।

रॉयल टेंट

3- प्रेसिडेन्शियल सुइट

सबसे ऊपर की श्रेणी में यहां प्रेसिडेन्सियल सुइट बनाए गए हैं। एक सुइट में दो डबल बैड रुम के साथ बड़ा लिविंग रूम दिया गया है। अगर 4-5 लोग एक साथ आ रहे हैं तो यह रुकने के लिए ज़्यादा सही है। सुइट का एक दिन का किराया 10,000 रुपये है। यहां कुल 5 सुइट बने हैं।

प्रेसिडेन्शियल सुइट

4- पॉड्स

 टेंट के अलावा यहां इग्लू जैसे आकार के 5 पॉड्स भी बनाए गए हैं। इन पॉड्स की खासियत यह है कि इन्हें बिल्कुल झील के किनारे पर बनाया गया है। पॉड्स में बैठकर इसकी बड़ी खिड़की से झील के ख़ूबसूरत नज़ारों का मजा लिया जा सकता है। इसका एक दिन का किराया 6,000 रुपये है। 

पॉड से झील का नज़ारा

ऊपर जो भी किराए बताए गए हैं उनमें दो लोगों का तीन समय का खाना और स्नैक्स के साथ शाम की चाय शामिल है। हफ्ते के आख़िरी दिनों में सभी श्रेणियों में किराया एक हजार रुपये ज़्यादा रखा गया है। खाने की बात हो रही है तो बताता चलूं कि यहां का खाना काफी अच्छा है। मेन्यू इस तरह तैयार किया गया है कि आपको हर दिन कुछ नया खाने को मिलेगा। मैं तो हैरान रह गया जब मुझे यहां बर्मा का लोकप्रिय व्यंजन खो सुई (khao suey) खाने को मिला। खाने के लिए डायनिंग हॉल बिल्कुल झील के किनारे बना है। सुबह से समय उगते सूरज को देखते हुए यहां नाश्ता करने में मजा आ गया।

कैंप साइट पर क्या-क्या कर सकते हैं

रहने की बात तो हो गई। लेकिन अब यहां आ गए हैं तो करेंगे क्या? यह जगह शहर से दूर है, इसलिए यहां कई अलग-अलग तरह की गतिविधियां रखी गई हैं। पर्यटक अपनी पसंद के हिसाब से उन्हें चुन सकते हैं। यहां करने को इतना कुछ है कि आप इन्हें करते हुए कुछ दिन आराम से बिता सकते हैं। यहां कई तरह के रोमांचक खेलों और वॉटर स्पोर्ट्स की व्यवस्था की गई है। 

आप चाहें महाराष्ट्र की प्रसिद्ध वरली चित्रकला और मराठी खाना बनाना भी सीख सकते हैं। झील के किनारे होने के कारण यहां कई तरह के वॉटर स्पोर्ट्स किए जा सकते हैं। जिसमें स्पीड बोट, पैरासेलिंग, क्याकिंग,  जैसे खेल शामिल हैं। इसके अलावा पेंट बॉल, एटीवी राइड और शूंटिग का मज़ा भी लिया जा सकता है। हर स्पोर्ट्स के लिए अलग-अलग फीस रखी गई है। जैसे पैरासेलिंग के 1500 रुपये चुकाने होंगे। यहां की पैरासेंलिग गोवा जैसी जगह के मुकाबले आपको पसंद आएगी क्योंकि यहां आपको काफी देर तक हवा में रखा जाता है जिसका मज़ा ही कुछ और है। अगर तारों और सितारों में रुचि है तो रात के समय यहां स्टारगेजिंग की व्यवस्था भी है। 

दोपहर की गर्मी में बाहर न निकलना चाहें तो यहां इंडोर खेलों की भी व्यवस्था की गई हैं। आराम से टैंट के ठंडे माहौल में कई तरह के इंडोर खेल खेले जा सकते हैं। यहां इंडोर खेलों के लिए दो बड़े टैंट लगाए गए हैं। जिसमें कैरम बोर्ड, शतरंज और दूसरे कई बोर्ड गेम रखे गए हैं। एक टैंट में स्नूकर टेबल और प्ले स्टेशन भी रखा गया है।

मैंने सीखी वरली चित्रकला 

वैसे तो चित्रकला से मेरे नाता बस बचपन में ही स्कूल तक ही रहा। उसके बाद शायद ही कभी पेंट या ब्रश पकड़ा हो। कैंप साइट पर झील के किनारे शाम के समय इतनी बढ़िया जगह महाराष्ट्र की पारंपरिक वरली चित्रकला सिखाने का इंतजाम किया गया था कि मैं खुद को रोक नहीं सका। सभी के साथ मैंने भी इस पर हाथ आजमाया। जैसा भी बना हो लेकिन जो बनाया उसमें बहुत मज़ा आया। देश के मशहूर वरली कलाकार अनिल वांगड यह कला सिखाने आते हैं। आने वाले पर्यटकों की मांग पर उन्हें यहां बुलाया जाता है। हां, उसके लिए एक फीस चुकनी होगी जो कि इस बार पर निर्भर करेगी कि कितने लोग उस दिन वरली सीख रहे हैं। फीस की बात तो अलग है लेकिन यह बात पक्की है कि दुनिया भर में पहचान रखने वाले कलाकार से किसी कला को सीखने का मौका हर बार नहीं मिलता। अगर आपकी चित्रकला में रुचि है तो आप इस अनुभव को भूल नहीं पाएंगे। 

अनिल वांगड वरली कला के बारे में बताते हुए
मेरी बनाई वरली चित्रकारी

मराठी खाना बनाने की वर्कशॉप में लें हिस्सा

इसी तरह आप की मांग पर मराठी खाना सिखाने की व्यवस्था भी की जा सकती है। हमारे ग्रुप के लिए एक फार्म हाउस में अंगूरों की खेती दिखाने के साथ ही मराठी खाना सिखाने की व्यवस्था भी की गई थी। अंगूर के खेतों के बीच पेड़ों की छांव के नीचे मराठी खाना खाने में अद्भुत आनंद आया। हां नाशिक आ रहे है तो यहां का मशूहर मिसल पाव खाना न भूलें।

अंगूर का बगीचा

करने के लिए यहां बहुत कुछ है लेकिन कुछ न भी करना चाहें तो सुबह-शाम झील के किनारे बैठकर उगते और डूबते सूरज को देखना भी कम दिलकश नही हैं।

उगते सूरज का नज़ारा

आस पास क्या देखें 

अगर आप कैंप साइट से बाहर निकल कर कुछ देखना चाहते हैं तो भी नाशिक में कई जगहें हैं। नाशिक की पहचान धार्मिक शहर की रही है। कहा जाता है कि भगवान राम ने वनवास के समय यहां बिताया था और पंचवटी नाशिक में ही थी। भगवान राम से जुड़े कई मंदिर शहर में है। नाशिक में हर 12 वर्ष पर गोदावरी नदी के तट पर कुंभ का आयोजन भी होता है। शाम को गोदावरी नदी के किनारे होने वाली आरती में भी आप हिस्सा ले सकते हैं। 

ध्यान रखें की यहां दो जगह आरती का आयोजन होता है। दोनों जगह आस-पास ही हैं। एक का दावा है कि वह सबसे पुरानी है और दूसरी हाल ही में शुरू की गई है। दोनों जगह इतनी पास ही हैं कि दोनों ही आरतियों में हिस्सा लिया जा सकता है।

गोदावरी नदी के किनारे शाम की आरती

सुला वाइनरी – नाशिक और वाइन का रिश्ता

पिछले लगभग दो दशक में नाशिक को वाइन सिटी की पहचान भी मिली है। नाशिक की आबोहवा अंगूर की खेती के लिए बहुत बढ़िया है। यही वजह है कि धीरे-धीरे यहां वाइन बनाने वाली कंपनियों की संख्या बढ़ती जा रही है। नाशिक को वाइन सिटी के तौर पर दुनिया में स्थापित करने में सुला वाइनरी की प्रमुख भूमिका रही है। सुला ने ही नाशिक में सबसे पहले वाइन बनाने की शुरुआत की। आज सुला की वाइन फैक्ट्री को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। सुला वाइनरी कैंप साइट से ज्यादा दूर नहीं है। यहां वाइनरी में कई तरह से टूर आयोजित किए जाते हैं जिनमें वाइन बनाने की जानकारी दी जाती है। इसके साथ ही यहां वाइन टेस्टिंग भी की जा सकती है। वाइन टेस्टिंग में सुला की अलग-अलग तरह वाइन का स्वाद लेने के साथ ही हर वाइन के बारे में जानकारी भी ली सकती है। आपको वाइन पसंद हो या न हो लेकिन सुला में वक्त बिताना ज़रूर पसंद आएगा।

इन स्टील के बड़े कंटेनर में तैयार होती है सुला वाइन। जो भारत की सबसे मशहूर वाइन कंपनी है।

तैयार होने के बाद वाइन को इन ओक की लड़की से बने बैरल में कई वर्षों तक रखा जाता है। जिससे वाइन को उसका ख़ास स्वाद और रंग मिलता है।

सुला का वाइन टेस्टिंग टूर काफी लोकप्रिय है। यहां 6 तरह की सुला वाइन को चखने और उनके बारे में जानने का मौका मिलता है।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग 

नाशिक की पहचान धार्मिक शहर के तौर पर रही है। त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग कैंप साइट से 35 किलोमीटर की दूरी पर है। करीब एक घंटे में यहां पहुंचा जा सकता है। 

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग

शिरडी साईं बाबा मंदिर

कैंप साइट से शिरडी करीब 112 किलोमीटर की दूरी पर है। करीब आधे दिन शिरडी जाकर आराम से नाशिक वापस आया जा सकता है। शिरडी आने की इच्छा रखने वाले लोग अगर चाहें तो Eco Glamping कैंप साइट को रुकने के ठिकाने के तौर पर इस्तेमाल करके अपनी धार्मिक यात्रा में थोड़ा सा रोमांच और एडवेंचर भी जोड़ सकते हैं।

शाम को भी है मनोरंजन का इंतज़ाम

जब आप घूम कर वापस आएंगे तो आपकी शाम को मज़ेदार बनाने के लिए भी मनोरंजन का पूरा इंतजाम किया गया है। रोजाना शाम को नाशिक का डांस ग्रुप यहां प्रदर्शन करता है। जिसमें स्थानीय मराठी नृत्य जैसे लावणी का बेहतरीन प्रदर्शन किया जाता है। शाम को नासिक के हल्के ठंडे मौसम जबरदस्त नृत्य माहौल में जैसे गरमी ला देता है। और उसके बाद भी अगर नाचने का मन करे तो कैंप फायर का इंतजाम भी करवाया जा सकता है। जहां आप आग की गर्मी के बीच दोस्तों के साथ नाचते, गाते समय बिता सकते हैं। 

अगर आप किसी नई जगह पर जाने का सोच रहे है या Galmping करना चाहते हैं तो नाशिक का Eco Glamping Festival आपके लिए सही जगह हो सकती है। मानसून के दौरान मुंबई और आसपास से काफी लोग नाशिक में छुट्टियां बिताने आते हैं। अब Eco Glamping Festival ने सर्दियों में भी नासिक आने की वजह दे दी है। 

क्या खरीदें

नाशिक के अंगूर प्रसिद्ध हैं। इसलिए अंगूरों के मौसम में यहां अंगूर खाना न भूलें। मजे की बात है कि अंगूर की फसल भी फरवरी – मार्च के महीने में ही तैयार होकर बाज़ार में आती है। इसके अलावा नाशिक से किशमिश भी खरीदी जा सकती है। अगर वाइन पसंद है तो नाशिक से मनपसंद वाइन भी ले सकते हैं। अब तो सुला के अलावा भी बहुत सारी वाइनरी यहां वाइन बना रही हैं।

कैसे पहुंचे

नाशिक देश के कई प्रमुख शहरों से फ्लाइट और रेल सेवा से जुड़ा है। यह मुंबई से करीब किलोमीटर की दूरी पर है। मुंबई से यहां आने के लिए वंदे भारत ट्रेन भी उपलब्ध है। दिल्ली से आने के लिए भी फ्लाइट और ट्रेन उपलब्ध है।

टेंट सिटी की बुकिंग कैसे करें

आप Eco Glamping Festival की वेबसाइट से यहां की बुकिंग करवा सकते हैं।

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