बेहतर यातायात सुविधाओं की बाट जोहता जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क
कुछ दिनों पहले सुबह-सुबह दिल्ली से जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के सफ़र पर निकला। सफ़र कार से था। दिल्ली से कॉर्बेट की तरफ जाने वाला नेशनल हाईवे 9 इतना बढ़िया था कि यात्रा की शुरुआत में मज़ा आ गया। रास्ते में हाइवे के किनारे रुककर नाश्ता किया। सर्दियों की हल्की धूप का आनंद भी लिया। रास्ते में रुकने के बाद भी करीब तीन घंटे में हमारी गाड़ी मुरादाबाद शहर के बाइपास पर थी। ये दिल्ली से मुरादाबाद के शानदार हाइवे का ही कमाल था कि जिस सफर में कभी 5-6 घंटे तक लग जाते थे वह केवल तीन घंटे में पूरा हो गया था।
मुरादाबाद बाईपास से कार कॉर्बेट नेशनल पार्क के करीबी शहर रामनगर जाने के लिए बांयी तरफ मुड़ी। इस जगह से रामनगर करीब 80 किलोमीटर दूर होगा। जिस तेजी से हमारी गाड़ी मुरादाबाद पहुंची थी उससे तो लग रहा था कि मैं अगले एक घंटे में अपनी मंजिल पर पहुंच जाउंगा। लेकिन सफर का असली इम्तिहान तो अभी बाकी थी। गाड़ी जैसी ही मुड़ी वैसे ही किसी दूसरी दुनिया की सड़क से उसका सामना हुआ। सड़क गढ्ढों से भरी पड़ी थी। कई जगह तो जैसे सड़क थी ही नहीं। गाड़ी की स्पीड नदारद हो गई। कार डगमगाते हुए आगे बढ़ने लगी। मुरादाबाद से लेकर रामनगर सड़क लगभग ऐसी ही मिली। ख़राब सड़क के कारण इस हिस्से को पूरा करने में करीब 2.30 घंटे का समय लगा। समय लगने से ज़्यादा सड़क पर मौजूद गढ्ढों के कारण लगातार लगते झटकों ने कॉर्बेट के सफ़र का सारा उत्साह ही ठंडा कर दिया।
सड़क का ये हाल तब है, जब जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क को देश के सबसे लोकप्रिय टाइगर रिजर्व होने का तमगा हासिल है। हर साल लाखों पर्यटक इस जंगल के दीदार करने के लिए पहुंचते है। कॉर्बेट के इलाके में 400 से ज़्यादा होटल हैं और पर्यटकों की आमद इतनी ज़्यादा है कि सप्ताह के आखिरी दिनों में यहां कई बार कमरे मिलना भी मुश्किल हो जाता है। कॉर्बेट के इलाके में रहने वाले हजारों लोगों की रोजी-रोटी इसी पर्यटन के व्यवसाय से जुड़ी है। यहां खुले बेहिसाब होटलों और पार्क में सफारी करने वाले पर्यटकों से सरकार को खासी कमाई होती है।
इस सड़क पर केवल कॉर्बेट नेशनल पार्क ही नहीं बल्कि काशीपुर जैसा औद्योगिक शहर भी है। जहां से बड़े उद्योगों के लिए ट्रकों का इस सड़क से लगातार आना जाना होता है।
केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक लगातार पर्यटन को बढ़ाने की बातें करते हैं। लेकिन जब पर्यटन से जुड़े बुनियादी ढ़ांचे को सुधारने की बात आती है तो इनके दावे हवा हो जाते हैं। पर्यटन के लिए बुनियादी ढ़ांचे को सुधारने से केवल पर्यटन उद्योग को ही फायदा नहीं होता बल्कि स्थानीय आबादी को भी उसका पूरा फायदा मिलता है। कॉर्बेट नेशनल पार्क दिल्ली और उसके आस-पास रहने वाले लोगों के लिए सप्ताहांत बिताने की जगह के तौर पर मशहूर है। दिल्ली से ज़्यादा दूरी नहीं होने के कारण लोग अपनी गाड़ियों से जाना पसंद करते हैं। लेकिन अगर सड़कों की हालत ऐसी होगी तो धीर-धीरे लोग दूसरी ठिकानों की तरफ मुड़ने लगेंगे।
कॉबर्टे के साथ ये समस्या केवल सड़क के ख़राब होने की नहीं है बल्कि इस इलाके के लिए यातायात के दूसरे बड़े साधन यानि रेल सुविधा को बेहतर बनाने पर भी ध्यान नहीं दिया गया है। अभी दिल्ली से रामनगर के लिए केवल दो नियमित रेलगाड़ियां चलती हैं। एक दशकों से चल रही रानीखेत एक्सप्रेस है जो रात करीब 10 बजे चलकर सुबह 4.30 पर रामनगर पहुंचती है। यह ट्रेन एक तो समय ज़्यादा लेती है इसके साथ ही इतनी सुबह पहुचने पर होटलों में कई बार कमरे मिलना मुश्किल होता है क्योंकि होटलों का चेक-इन टाइम दोपहर 12 बजे के बाद ही होता है। इस हिसाब से यह ट्रेन पर्यटकों के ज़्यादा काम की नहीं है।
इसके अलावा एक ट्रेन है, उत्तराखंड संपर्क क्रांति जो पुरानी दिल्ली स्टेशन से शाम 4 बजे चलकर रात 9 बजे रामनगर पहुंचती है। इस ट्रेन में एसी और नॉन एसी सीटिंग कोच लगे हैं। यह ट्रेन मुरादाबाद से दो हिस्सों में बंट जाती है। एक हिस्सा काठगोदाम चला जाता है और दूसरा हिस्सा रामनगर जाता है। रामनगर की तरफ इसमें केवल एक ही एसी कोच है। पर्यटकों और स्थानीय आबादी की ज़रूरतों को देखते हुए एक एसी कोच नाकाफ़ी है। ऊपर बताई दोनों ही ट्रेन मुरादाबाद से दो हिस्सों में बंटकर काठगोदाम और रामनगर की तरफ जाती हैं। दो आधी अधूरी ट्रेनें कॉर्बेट जैसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती।
रेलवे दिल्ली से काठगोदाम के लिए रोज सुबह शताब्दी ट्रेन चलाती है। शताब्दी ट्रेन सुविधाजनक भी है और समय भी कम लगता है। रामनगर के लिए भी दिल्ली से ऐसी ही शताब्दी ट्रेन की सुविधा होने से पर्यटकों और स्थानीय लोगों को बहुत फायदा होगा। अगर इस रुट पर पूरी तरह शताब्दी नहीं चलाई जा सकती तो ऊपर की दो ट्रेनों की तरह की क्या दिल्ली-काठगोदाम शताब्दी को भी मुरादाबाद से दो हिस्सों में करके नहीं चलाया जा सकता? इससने न केवल पर्यटकों फायदा होगा बल्कि स्थानीय आबादी को भी एक बेहतर ट्रेन मिल जाएगी। शताब्दी का समय ने केवल जाने बल्कि वापसी यात्रा के लिए भी बिल्कुल सही है।
अगर किसी भी पर्यटन स्थल को लोकप्रिय बनाना है तो यातायात से जुड़े बुनियादी ढ़ांचे को बेहतर बनाना ज़रूरी है। आज भले ही कॉर्बेट को किसी लोकप्रियता की ज़रूरत न हो लेकिन कॉर्बेट यातयात की बेहतर सुविधाओं की बाट ज़रूर जोह रहा है।