रणथम्भोर नेशनल पार्क – इतिहास और प्रकृति का अनोखा मेल

रणथम्भोर नेशनल पार्क – इतिहास और प्रकृति का अनोखा मेल

कोरोना महामारी के कारण 2020 का पूरा साल घर बैठे ही निकल गया। 2021 की शुरुआत में स्थिति सुधरने पर मैंने सोचा कि कहीं घूमने के लिए निकला जाए। कहां जाना चाहिए इसको लेकर मुझे ज़्यादा सोचना नहीं पड़ा। मैं एक बार फिर से तैयार था अपने पसंदीदा रणथम्भोर नेशनल पार्क जाने के लिए। मैं पिछले एक दशक से भी ज़्यादा समय से रणथम्भोर जा रहा हूं लेकिन फिर भी हर बार नया अनुभव लेकर वापस लौटता हूं। मैंने फटाफट ट्रेन के टिकट लिए और सफर पर निकल पड़ा। दिल्ली से रणथम्भोर जाने के लिए ट्रेन सबसे सही साधन है। करीब चार घंटे से भी कम समय में आप अपने ठिकाने पर पहुंच जाते हैं। 

ख़ूबसूरत सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन

दिल्ली से शाम की ट्रेन थी। सवाईमाधोपुर स्टेशन पर जब उतरा तो रात के 9 बजने वाले थे। इस बार रुकने के लिए मैंने राजस्थान पर्यटन विकास निगम के होटल झूमर बावरी को चुना। जंगल के बीच बना यह हेरिटेज होटल कभी जयपुर महाराजा की शिकारगाह हुआ करता था। अगले दिन सुबह मेरी पहली सफारी थी। 

पढ़ें मेरा ब्लॉग- जंगल में रुकने के बेहतरीन ठिकाने

फरवरी के पहले हफ्ते में मौसम काफी ठंडा था और जंगल की हवा तो और भी ठंडी लग रही थी। सुबह जल्दी उठकर सफारी के लिए तैयार हो गया। करीब साढ़े छ: बजे सफारी की गाड़ी लेने के लिए आ गई और मैं जंगल के लिए निकल गया। कुछ ही देर में गाड़ी पार्क के अंदर थी। पार्क के अंदर जाने के बाद ऐसा लगता है जैसे आप दूसरी ही दुनिया में पहुंच गए हैं। कुछ सौ मीटर पहले जहां आप गाड़ियों से भरी सड़क पर होते हैं वहीं अब चिड़ियों की चहचाहट और बंदर-लंगूरों की धमाचौकड़ी नज़र आने लगती है। चीतल और सांभर दिखाई देने लगते हैं। ताज़ा हवा जैसे फेफड़ों में जान भर देती है। आज मुझे सफारी के लिए ज़ोन 5 में जाना था। 

ज़ोन में जाने का इंतजार करती गाड़ियां
जंगल का नजारा

ज़ोन में घुसने से पहले गाईड ने जंगल के बारे में सामान्य जानकारियां दीं। पार्क में व्यवस्था बनाए रखने के लिए सफारी के लिहाज के पार्क को 10 ज़ोन में बांटा गया है।

यह नेशनल पार्क करीब 1411 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैला है। जंगल के 80 फीसदी इलाके में धौंक के पतझड़ी वन फैले हैं। मैं जब पहुंचा तो फरवरी की शुरुआत थी और ये पेड़ अपनी अपनी पत्तियां गिरा चुके थे। लेकिन जंगल में खड़े पलाश, कदम्ब और बरगद जैसे पेड़ हरियाली के अहसास को पूरी तरह खत्म नहीं होने देते। मार्च के महीने में पलाश के पेड़ अपने लाल-नांरगी फूलों से जंगल के कुछ हिस्सों में रंग भर देते हैं। ज़ोन 7 में पलाश काफी दिखाई देता है। 

यहां आने वाले हर पर्यटक के मन में होता है उसे सबसे पहले बाघ दिखाई दे जाए। बाघ है भी इतना शानदार प्राणी भी उसे देखने की बात ही अलग है। लेकिन इस जंगल में केवल बाघ ही नहीं है बल्कि जानवरों का पूरा संसार यहां बसता है। 315 तरह के परिंदे यहां मिलते हैं। इनमें यहां रहने वाले स्थानीय और प्रवासी परिंदे दोनों शामिल है। इसके साथ ही चीतल, चिंकारा, नील गाय, सांभर,  तेंदुआ, भालू, हिरण, लकड़बग्धा, सियार, भेड़िया, लोमड़ी और मॉनिटर लिजर्ड जैसे अनगिनत जानवर जंगल की समृद्ध जैव-विविधता का हिस्सा हैं। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर ये जानवर नहीं होंगे तो बाघ भी नहीं होगा। जंगल का हर जानवर, पेड़-पौधा, नदी-नाले और तालाब जंगल की जैव-विविधता को बनाए रखने के लिए ज़रूरी हैं। 

1- Pond Heron ( Right side) 2- Little Cormorant ( Middle)1- Pond Heron ( Right side) 2- Little Cormorant ( Middle)
Black-rumped Flameback Woodpecker
Rofous Treepie

भले ही हम बाघ को देखने की बात करें लेकिन कुछ ऐसे भी जानवर हैं जिनका दिखाई देना बाघ की तुलना में बहुत दुर्लभ है। पार्क में मिलने वाले भालू, लकड़बग्घों और चिकांरा को ऐसे ही जानवरों की श्रेणी में रखा जा सकता है। पिछले 10 सालों में मैंने बहुत बार बाघ देखा है लेकिन भालू केवल एक ही बार दिखाई दिया है। जहां तक मुझे याद आ रहा है कि चिंकारा तो मैं आज तक नहीं देख पाया हूं।

सुबह की सफारी में कई तरह के जानवर दिखाई दिए। जंगल को देखते -देखते तीन घंटे बीत गए और हमारी सफारी के खत्म होने का समय आ गया। शाम की सफारी के लिए ज़ोन 2 में जाना था। 

कैन्टर से जाने पर ज़ोन 2 का रास्ता रणथम्भोर किले के मुख्य दरवाजे के सामने से जाता है। एक हज़ार साल का इतिहास अपने भीतर समाए खड़ा यह किला राजा हम्मीर देव की वीरता की निशानी है। रणथम्भोर का किला अपने समय का सबसे मज़बूत किला माना जाता था। घने जंगल और पहाड़ी दर्रे इसे अजय बनाते थे। दिल्ली का शासक अलाउद्दीन खिलजी लंबी लड़ाई के बाद ही किले को हासिल कर पाया था। इसी इतिहास से रूबरू होते हुए हमारी गाड़ी अपने ज़ोन में दाखिल हुई। 

रणथम्भोर का किला

भले ही पूरा जंगल एक हो लेकिन हर ज़ोन का अपना अलग अहसास है। ज़ोन 2 का रास्ता पहाड़ी और ऊंचा नीचा है । गाईड ने बताया कि सड़क के साथ नीचे गहरी खाई है। खाई में पानी के आस-पास अक्सर बाघ दिखाई देते हैं। ज़ोन 2 प्रसिद्ध बाघिन नूर का इलाका था। बाघ ऐसा जानवर है जो अपना इलाका बनाता है। गाईड ने बताया कि मादा बाघिन करीब 20 वर्ग किलोमीटर के इलाके पर प्रभाव रखती है वहीं नर बाघ करीब 40-50 वर्ग किलोमीटर के इलाके पर अपना प्रभाव रखता है। एक नर बाघ के इलाके में 3-4 मादा बाघिनों के इलाके शामिल हो सकते हैं।

बाघों के बीच अपने इलाके को लेकर खतरनाक लड़ाई भी होती हैं। जिस समय मैं रणथम्भोर में था उस समय वहां की दो बाघिन बहनों रिद्धी और सिद्धी के बीच इलाके पर प्रभाव जताने को लेकर लड़ाई चल रही थी। दोनों बहनों के एक-दूसरे पर हमला करने की तस्वीरें अखबारों और सोशल मीडिया पर छाई हुई थीं। दोनों बहनें पार्क के ज़ोन 3 और 4 में ज़्यादा दिखाई देती हैं। मेरे भी मन उत्सुकता थी कि काश ये दोनों एक साथ दिखाई दें। लेकिन अभी तो उनके इलाके में जाना नहीं हुआ था। 

इस बीच में अलग-अलग ज़ोन में सफारी चलती रहीं।  जंगल में तरह के पानी पर रहने वाले पक्षी जैसे आईबिस, हेरोन, कोरोमोरेंट, कूट, बतख आदि दिखाई दिए। मैंने तीन तरह के किंगफिशर- स्टोर्क बिल्ड, पाइड और कॉमन किंगफिशर देखे। सर्दियां होने के कारण प्रवासी पक्षियों का डेरा भी पार्क की झीलों पर जमा हुआ था। ज़ोन 4 में आराम करते मगरमच्छ दिखाई दिए। मगरमच्छ भी इस पार्क की खासियत हैं। पानी के बाहर छूप में सुस्ताते मगरमच्छों को देख लगता है जैसे किसी ने पुतले सजा दिए हैं। जानवरों की दुनिया में ऐसा लगता है कि जैसे हर किसी को पता है कि दूसरे जानवर का अलगा कदम क्या होने वाला है। आराम करते मगरमच्छ के पास ही कुछ दूरी पर घास चरते सांभर और हिरणों को देखकर लगता है कि जैसे उन्हें पता कि फिलहाल आराम कर रहा मगरमच्छ उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाने वाला। 

जंगल में सुबह-शाम की सफारी करते हुए तीन दिन कब निकल गए पता ही नहीं चला। हां अभी तक जंगल के राजा के दर्शन नहीं हुए थे। 

मेरी आख़िरी सफारी ज़ोन 3 में थी यह वही इलाका है जिस पर हक जमाने के लिए रिद्धी और सिद्धी बाघिन बहनों में वर्चस्व की लड़ाई चल रही थी। ज़ोन में घुसने से पहले गाइड ने बताया कि आज सुबह की सफारी में किसी को ये बाघिन बहनें दिखाई नहीं दी। खैर मुझे तो ज़ोन 3 के पदम तालाब और राजबाग झीलों के पास का घास से भरा इलाका काफी सुन्दर लगता है। पानी के नजदीक ढ़ेरों पक्षी दिखाई दे जाते हैं। ज़ोन में घूमते काफी समय हो गया था लोगों में उत्सुकता थी बाघ को देखने को। अचानक हमारे गाइड ने एक जगह सफारी गाड़ियों को खड़े देखा तो पता चला कि कुछ देर पहले यहां बाघ की झलक दिखाई दी थी। अब सब वहां खड़े होकर इंतजार करने लगे। जंगल पूरी तरह शांत था अक्सर बाघ के आस-पास होने पर जंगल के दूसरे जानवर अपनी आवाज़ों से संकेत दे देते हैं कि बाघ कहां हैं। इन्हीं संकेतों के आधार पर गाइड और गाड़ी के ड्राइवर बाघ को तलाशने की कोशिश करते हैं। सांभर के संकेतों को सबसे सटीक माना जाता है। इसकी वजह यह है कि सांभर की नज़र कमजोर होती है और वह बहुत पास आने के बाद ही चीज़ों को सही से पहचान पाता है।

कुछ देर खड़े रहने पर कोई संकेत नहीं मिला तो हमारी गाड़ी आगे बढ़ गई। वहां से निकलने के बाद गाइड को अंदाजा हुआ कि अगर यहां से बाघ निकला है तो वह आगे कहां जा सकता है और हम उसी तरफ चल दिए। आखिरकार हमारी गाड़ी वहां पहुंची जहां पेड़ों के पीछे घास में बैठे बाघ के संकेत मिल रहे थे। 

अब वहां पहुंची सभी गाड़ियां शांति से बाघ का इंतजार करने लगीं। कुछ देर के बाद घास में थोड़ी हलचल हुई और वह चेहरा दिखाई दिया जिसका इंतज़ार सबको था। पता चला कि यह रिद्धी-सिद्धी में से एक है। आखिरकार मैंने भी दो बहनों में एक को देख ही लिया था। लेकिन दूसरी को देखने के लिए काफी इंतजार करना पड़ा। दोनों बहनें एक दूसरे से दूरी बनाए हुई थीं। शायद आधे घंटे से ज्यादा के इंतजार के बाद दूसरी बाघिन भी पेड़ों के पीछे से दिखाई दी।

आखिर दिखाई दी बाघ की झलक

सफारी का समय भी खत्म होने लगा था तो गाड़ी वापस लौटना शुरू हुई। लेकिन अभी एक और आश्चर्य बाकी था। लौटते समय ज़ोन 3 से बाहर निकलने वाले रास्ते पर राजबाग तालाब के पास घास में आराम फरमाते तीसरे बाघ के भी दर्शन हुए। मुझे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं था। मैंने पहले भी एक साथ चार बाघ रणथम्भोर में देखे हैं लेकिन उस समय एक मां बाघिन और तीन उसके बच्चे थे। लेकिन एक ही सफारी में तीन व्यस्क बाघों को देखना वाकई किस्मत की बात थी। इस तरह रणथम्भोर का सफ़र बाघों के दर्शन के साथ खत्म हुआ। यहां चार दिन कैसे बीते पता भी नहीं चला। जंगल की ख़ूबसूरत यादों के साथ मैंने दिल्ली वापसी की ट्रेन पकड़ी लेकिन दिमाग ने रणथम्भोर आने की अगली ताऱीखों के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। शायद जल्द ही मैं एक बार फिर से अपने पसंदीदा जंगल में जाऊंगा। उन्हीं जानवरों और जंगली पेड़-पौधों के बीच जो मुझे हमेशा से पसंद रहे हैं। 

कैसे पहुंचे- रणथम्भोर नेशनल पार्क राजस्थान के सवाईमाधोपुर ज़िले में है। सवाईमाधोपुर दिल्ली और मुंबई से बढ़िया रेल सेवा से जुड़ा है। यहां के लिए जयपुर सबसे पास का हवाई अड्डा है। यह जयपुर से करीब 160 किलोमीटर दूर है। सड़क के रास्ते दिल्ली से सवाईमाधोपुर की दूरी करीब 400 किलोमीटर है।

कहां रहें- सवाईमाधोपुर में हर बजट के होटल उपलब्ध हैं। यहां के कुछ होटल देश की सबसे मंहगे होटलों में एक हैं। 

सफारी कैसे बुक करें- आप राजस्थान वन विभाग की वेबसाइट के ज़रिए ऑनलाइन सफारी बुक कर सकते हैं। पर्यटक काफी बड़ी संख्या में रणथम्भोर आते हैं इसलिए जितना सफारी जितना पहले बुक करेंगे उतना ही बेहतर रहेगा। यहां सफारी के लिए कैंटर और जिप्सी उपलब्ध हैं। अपने होटल या बुकिंग एजेंट्स की मदद से भी सफारी बुक करवा सकते हैं।

( मेरा यह लेख new18.com पर प्रकाशित हो चुका है।)

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