क्या अटल टनल से बदलेगी लाहौल-स्पीति में पर्यटन की सूरत, होगा कैसा फायदा
कहते हैं कि लद्दाखी भाषा में रोहतांग का अर्थ होता – लाशों का ढ़ेर। यह नाम दिखाता है कि रोहतांग दर्रे को पार करने में कितनी मुश्किलें आती होंगी। यहां का मौसम इसे और भी ख़तरनाक बना देता है। आज भी इसे पार करते समय आने वाले मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। यही वजह है कि दर्रे के दूसरी तरफ पहुंचने पर ऐसा अहसास होता है जैसे किसी नई दुनिया में आ गए हैं। लेकिन अब अटल टनल की शुरुआत के साथ दो दुनियाओं के बीच की यह दूरी ख़त्म हो चुकी है।
4 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मनाली में 9.2 किलोमीटर लंबी अटल टनल का उद्घाटन किया। यह सुरंग हिमाचल के मनाली को लाहौल-स्पीती जिले से जोड़गी। पहले मनाली से लाहौल-स्पीति जाने के लिए 13000 फीट ऊंचे रोहतांग दर्रे को पार करके जाना पड़ता था। अटल टनल के शुरू होने से यह यात्रा काफी आसान हो जाएगी और इससे समय की भी काफी बचत होगी। अब लाहौल पूरे साल मनाली से जुड़ा रहेगा।
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अटल टनल से पहले क्या थी परेशानियां
मैंने दो बार रोहतांग को पार करके हिमाचल के लाहौल-स्पीति की यात्रा की है। पहली बार 2011 में मनाली से लेह की सड़क यात्रा के समय और दूसरी बार 2012 में जब मैं इसे पार करके स्पीति के सफर पर गया था। इस दर्रे को पार करते ही वाकई ऐसा लगता है कि आप किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच गए हैं। आपके आस-पास की हलचल भरी दुनिया के उलट यहां मिलने वाली शांति आपको लुभावनी लगती है।
दोनों ही बार सूरज उगने से पहले ही मनाली से यात्रा शुरू करनी पड़ी। मनाली से रोहतांग जाने वाले पर्यटकों की गाड़ियों का इतना दबाव रहता है कि इस रास्ते को पार करते करते कई घंटे लग जाते थे। सुबह जल्दी निकलने के बाद भी यह तय था कि रोहतांग पहुंचने से पहले कई घटें गाड़ियों की लाइन में बिताने पड़ेंगे। कई बार तो यह इंतजार बहुत लंबा भी हो जाता है और पर्यटकों को रास्ते से ही वापस भी आना पड़ता है।
रोहतांग दर्रे की तरफ जाने वाली अधिकांश पर्यटक रोहतांग दर्रे को देखकर ही वापस आ जाते हैं इसलिए रोहतांग दर्रा पार करने के बाद सड़क पर बहुत कम गाड़ियां मिलती है।
रोहतांग दर्रे तक जाने वाले पर्यटकों को तो इस जाम का सामना करना पड़ता है लेकिन सबसे ज़्यादा परेशानी उन स्थानीय लोगों और पर्यटकों को होती थी जिन्हें रोहतांग को पार करके लाहौल, लेह या स्पीति की तरफ जाना होता था। लद्दाख की तरफ जाने वाले सेना के काफिलों को भी बहुत परेशानी उठानी पड़ती थी।
अटल टनल बन जाने से रोहतांग के पार जाने वाले पर्यटकों और स्थानीय लोगों की समस्या दूर हो जाएगी। अब वे लोग रोहतांग दर्रे पर चढ़े बिना दूसरी तरफ जा पाएंगे और वो भी कुछ ही मिनटों में। पहले कुछ मिनटों की इस दूरी को पूरा करने में कई घंटे लग जाया करते थे। अनुमान के मुताबिक इससे पांच या छह घंटे की बचत होगी। मेर पुराने अनुभव से मुझे भी लग रहा है कि काफी समय बचेगा। यात्रा में आसानी होने से तय है कि लाहौल की तरफ पर्यटन में काफी बढ़ोतरी होगी।
लाहौल-स्पीति की स्थिति
अटल टनल से होने वाले फायदों को समझने के लिए लाहौल-स्पीति के बारे में जानना ज़रूरी है। लाहौल-स्पीति हिमाचल प्रदेश का एक जनजातीय जिला है। लाहौल-स्पीति जिले का जिला मुख्यालय केलांग में है। इस जिले के दो प्रमुख हिस्से है – एक हिस्सा है लाहौल, जिसे अटल सुरंग मनाली से जोड़ेगी और दूसरा है स्पीति। जिला मुख्यालय केलोंग लाहौल की तरफ है। स्पीति सब-डिविजन है जिसका मुख्यालय काजा है। ऊंचे हिमाचल पर बसे इस जिले को अपनी प्राकृतिक सुंदरता और जनजातीय संस्कृति के लिए जाना जाता है।
लाहौल-स्पीति में सड़कों की स्थिति
लाहौल का इलाका मनाली से लेह के जाने वाले रास्ते पर पड़ता है। सर्दियों में मनाली की तरफ से रोहतांग दर्रा बर्फबारी से बंद हो जाता है। इसी तरह लाहौल से लेह के बीच पड़ने वाले दर्रे भी बर्फ से बंद हो जाते हैं। इस कारण सर्दियों में करीब छह महीने लाहौल पूरी दुनिया से कट जाता है। ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाएं पाने के लिए या दूसरी ज़रूरी कामों के लिए बाहर जाने की ज़रूरत पड़ने पर लोगों को बहुत समस्या होती थी। अब सुरंग बनने से मनाली से लाहौल पूरे साल जुड़ा रह सकेगा।
एक मुश्किल रास्ता और है जो केलोंग को हिमाचल के चंबा जिले की पांगी घाटी से होते हुए जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ से जोड़ता है लेकिन सर्दियों यह भी काफी समय तक बंद रहता है।
स्पीति को जोड़ने के लिए दो मुख्य रास्ते हैं। एक तरफ से स्पीति रोहतांग के ज़रिए मनाली से जु़ड़ा है। दूसरी तरफ स्पीति किन्नौर के रास्ते शिमला से जुड़ा है। रोहतांग दर्रे वाला रास्ता साल में करीब छह महीने बंद रहता है। लेकिन स्पीति को शिमला से जोड़ने वाली सड़क लगभग पूरे साल खुली रहती है। सर्दियों में भारी बर्फबारी होने पर स्पीति -शिमला का रास्ता कुछ दिनों के लिए बंद होता है। ऐसे में बाहरी दुनिया से जुड़ने के मामले में स्पीति की स्थिति लाहौल से बेहतर है।
रोहतांग से लेह जाने वाली सड़क रोहतांग दर्रे से उतरने के बाद ग्रम्फू के पास दो हिस्सों में बंट जाती है। ग्रम्फू से बांयी तरफ यह सड़क केलोंग होते हुए लेह के लिए चली जाती है और दांयी तरह यह सड़क स्पीति के मुख्यालय काजा की तरफ चली जाती है। यही सड़क केलोंग को काजा से जोड़ती है। सर्दियों में इसके बंद होने से लाहौल और स्पीति के बीच भी रास्ता बंद हो जाता है। ऐसे में लाहौल पूरी तरह से दुनिया से कट जाता है।
क्या अटल टनल से लाहौल में पर्यटन बढ़ेगा
अटल टनल के खुलने से लाहौल में पर्यटन बढ़ने की पूरी संभावना है। अभी तक केलोंग की पहचान लेह जाने वाले रास्ते पर पड़ने वाले पड़ाव के तौर पर रही है। पर्यटक मनाली से लेह जाते हुए केलोंग या उसके पास की किसी जगह पर रात बिताते हैं। लेह जाने वाले रास्ते की मुश्किलों के कारण भी बड़ी संख्या में पर्यटक इस तरफ नहीं आते हैं। मैंने भी लेह जाते हुए केलोंग में एक रात बिताई थी।
अब अटल टनल के बनने से मनाली तक आने वाले पर्यटक आसानी से लाहौल पहुंच सकेंगे। मनाली आने वाले पर्यटकों के लिए केलोंग ट्रैवल के नए ठिकाने के तौर पर उभर सकता है। यहां की ख़ूबसरती में पर्यटकों को अपनी तरफ खींचने की पूरी संभावना है।
लाहौल में पर्यटन बढ़ने से यहां स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ेगा। नए होटल, गेस्ट हाउस और रेस्टोरेंट खुलने के काफी लोगों के लिए रोजगार के मौके पैदा होंगे।
पर्यटन बढ़ने से परेशानियां
हिमालय का यह इलाका पर्यावरण की लिहाज के बहुत संवेदनशील है। हिमालय के ऊंचे पहाड़ों ने इधर लोगों का आना रोक रखा था। रोमांच के शौकीन पर्यटक ही लाहौल के इलाके तक पहुंचते थे। लेकिन अब मौज मस्ती के लिए मनाली जैसी जगहों पर आने वाने पर्यटक भी लाहौल तक पहुंचेंगे। इसके साथ ही प्लास्टिक और कचरे की समस्या यहां बढे़गी। लेह का उदाहरण हमारे सामने है जहां बढ़ता कचरा बहुत बड़ी समस्या बन रहा है। ऐसे में पर्यावरण को बचाए रखते हुए पर्यटन को बढ़ावा देना बड़ी चुनौती होगी।
विकास के साथ इस तरह की समस्या सामने आती है। अब स्थानीय प्रशासन, सरकार और स्थानीय लोगों को मिलकर कर ऐसी योजना बनानी होंगी कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना इलाके का विकास किया जा सके। इसमें बड़ी भूमिका यहां आने वाले पर्यटकों की भी होगी उन्हें भी समझना होगा कि लाहौल जैसे इलाके सामान्य टूरिस्ट डेस्टिनेशन नहीं हैं बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी इनकी अहमियत है और इसे बचाना पर्यटकों का भी कर्तव्य है।
अटल टनल न केवल लाहौल के विकास बल्कि सामरिक लिहाज से भी भारत के लिए बहुत ज़रूरी है। मनाली से लेह के रास्ते में आने वाले दूसरे ऊंचे दर्रों के नीचे से भी सुंरग बनाने की योजनाएं हैं। इन सुंरगों के पूरा होने के बाद लेह पूरे साल देश के दूसरे हिस्सों से जुड़ा रह सकेगा।
सभी तस्वीरें साभार- नीरज सिंह