रानीखेत

रानीखेत




रानीखेत की खूबसूरती स्वर्ग से कम नहीं है।रानीखेत उत्तरांचल के सबसे मशहूर हिल स्टेशन में से है।इसलिए यहां आने से पहले मैं सोच रहा था कि ये भी नैनीताल और मसूरी जैसे हिल स्टेशनों की तरह पर्यटकों की भीड से भरा होगा। लेकिन यहां आकर मेरी सोच गलत साबित हुई।

आज भी इसने अंग्रेजों के जमाने की अपनी खूबसूरती को बना रखा है। पर्यटकों की भीड़ भी यहां दिखाई नहीं देती।

इस पहाडी जगह को अंग्रजों ने १८६९ में बसाया था। ये उन्हें भारत के मैदानों की भीषण गरमी से राहत देता था। और वे यहां आकर यूरोप जैसा मौसम पा सकते थे। उन्होंने यहां सैनिक छावनी बनाई और आज भी ये कुमायु रेजीमेंट का मुख्यालय है। मुझे लगता कि आज भी इस जगह की सुन्दरता को बनाये रखने में सेना का बहुत बडा़ योगदान है।

मैं जब रानीखेत पहुंचा तो दोपहर हो चुकी थी। जून में भी बाजार लगभग खाली ही नजर आ रहा था। शहर में एक अलसाई सी शांती थी जो मुझे अपनी और खींचने लगी थी। अब मैं रुकने के लिए जगह चाहता था जो इस शांत से शहर से भी दूर हो।

मैने माल रोड पर कुमायुं मंडल विकास निगम के रेस्ट हाऊस में रुकना तय किया। माल रोड पेडों से घिरा इलाका है और उसमें भी ये रेस्ट हाऊस तो जंगल के बीच में ही है। मेरे काटेज के ठीक सामने ही जंगल पसरा पडा था। कमरे में पहुंचते ही चिडियों की चहचहाअट से रास्ते की सारी थकान मिट सी गई। बाहर लान में लगी कुर्सी पर बैठ कर मेंने शाम की चाय का मजा लिया। उसके बाद में निकल पडा इस छोटे से स्वर्ग की सैर पर।

यहां के सैनिक छावनी इलाके में बनी यूरोपिय शैली की इमारतों और बंगलों की भव्यता देखते ही बनती है। मुझे तो ऐसा लगा कि समय जैसे पीछे लौट गया है। मैं अपने आप को जैसे उपनिवेश काल में ही खडा़ पा रहा था।

ये पूरा ही इलाका चीड़ और देवदार के घने जंगलों से घिरा है।सबसे पहले मैं चौबटिया गार्डन देखने गया। ये सेब का बगीचा है जिसे सरकार चलाती है यहां आकर आप दूर तक फैले सेब के पेडों को देख सकते हैं। इसके अलावा अलूचा, आडू जैसै फल भी यहां हैं। फलों से लदे पेडों को देखना अलग ही अनुभव है।

यहां बनी दुकान से ताजे फल औऱ फलों के जूस, जैम भी खरीदे जा सकते हैं। यहां आयें तो पहाडी फूल बूरांस का शर्बत जरुर खरीदें।

चौबटिया से रानीखेत के बीच का इलाका घने जंगल से घिरा है। सैनिक छावनी इलाके में होने के कारम ये पूरी तरह सुरक्षित है इसके लिए सेना की प्रशंसा की जानी चाहिए। वापस रानीखेत आते समय इसी जंगल में मैंने मोनाल पक्षी को देखा जिसे में बिनसर अभ्यारणय में भी नहीं देख पाया था। इससे ही समझा जा सकता है कि ये जंगल कितने विविधता भरे और सुरक्षित हैं।

जंगल को महसूस करने के लिए सडक के किनारे बैठने के लिए बैच बनाई गई है। यहां आप घंटों तक बैठे रह सकते हैं। मेरा मन भी लौटने को मना कर रहा था लेकिन शाम हो रही थी इसलिए मुझे भी लौटना पडा।

वापसी के रास्ते में ही झूला देवी मंदिर के दर्शन किये। इस मंदिर की बहुत मान्यता है। यहां कि खासियत है मंदिर में टंगी हजारों घंटियां। पूछने पर पता चला कि जिस किसी भी मनोकामना झूला देवी पुरी करती हैं वो यहां आकर घंटी बांधता है। सैंकडों सालों से ये प्रथा चलती आ रही है।

मंदिर देखते हुए शाम हो जाती है और उसके बाद में इस छोटे से शहर को देखने निकलता हूं। इस शहर की शांत और हरी भरी सड़कों पर घूमने का अलग ही आनंद है। रात होने पर मैं रेस्ट हाउस वापस आता हूं। वहां का कर्मचारी बताता है कि सुबह जल्दी उठने पर हिमालय की चोटियों को देखा जा सकता है।

अगले दिन सुबह जल्दी उठकर मैं पास के फोरेस्ट रेस्ट हाउस पहुंचा( थोडा ऊंचाई पर होने के कारण यहां से हिमालय साफ नजर आता है)। सुबह के पांच बज रहे थे और मैं सूरज के निकलने का इंतजार कर रहा था।

धीरे धीरे सूरज पहाडियों के पीछे से निकलना शुरु हुआ। लेकिन मैं बर्फ के पहाडों को नहीं देख सका। फिर भी सुबह के समय पहाडों के पीछे से निकलता सुरज निहायत ही खूबसूरत लग रहा था। उसके बाद मैं सैर पर निकल पडा।

मेरे रेस्ट हाउस के पीछे ही घना जंगल था और उसमें से गुजरती है नेहरु रोड़। घने जंगल में चिडियों की चहचहाअट के बीच घूमने में अपना ही मजा है। घने जंगल से गुजरती इस पगडंडी का नाम जवाहर लाल नेहरु के नाम पर रखने की भी वजह है। नेहरु जी जब रानीखेत आये थे तो उन्हें जंगल में इस पगडंडी पर घूमना पसंद था। बाद में उनके नाम पर इस सडक का नाम रखा गया। देवदार और चीड़ के जंगल में घूमता हुआ मैं पुराने इमारतो और ब्रिटिश बगलों को निहार रहा था।

उसके बाद मैं रानीखेत का मशहूर गोल्फ कोर्स देखने गया। नौ छेदों वाला ये गोल्फ कोर्स सबसे अलग है। यहां बालीवुड़ की कई मशहूर फिल्मों की शूटिंग की गई है। हाल ही मैं आई फिल्म विवाह में भी इसे देखा जा सकता है।

रानाखेत से पन्द्रह किलोमीटर दूर बिनसर महादेव है। इस शिव मंदिर को देखने दूर दूर से लोग आते हैं। मंदिर परिसर चीड़ और देवदार के पेडों से घिरा है। रानीखेत आने पर इसे देखना ना भूलें। ये मंदिर रानीखेत से रामनगर जाने वाली सड़क पर है।

ठंड के मौसम रानीखेत आने पर हिमपात का मजा भी लिया जा सकता है।रानीखेत को शब्दों में उतार पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। इसलिए अगर आप भी इसकी खूबसूरती को महसूस करना चाहते हैं तो एक बार यहां जरुर आईये। ये मेरा दावा है कि आप का मन फिर वापस लौटने को नहीं कहेगा।

कहां ठहरें

रानीखेत में कुमायुं मंडल का रेस्ट हाउस, वन विभाग का रेस्ट हाउस है जहां रुका जा सकता है।सलाह है कि अगर गरमी को मौसम में आ रहे हो तो बुकिंग करवा कर ही आयें। इसके अलावा यहां हर बजट के होटल हैं। जिन में रुका जा सकता है। कुमायुं मंडल का एक रेस्ट हाउस रानीखेत से कुछ दूर चिनियानौला में भी है।

कैसे जाऐं-

रानीखेत नैनीताल से ६८ और अल्मोडा़ से ५० किलोमीटर दुर है। दिल्ली से ये लगभग दो सौ अस्सी किलोमीटर है। इन सभी जगहों से यहां के लिए बस औऱ टैक्सी सेवा आसानी से मिल जाती है।

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