शहर के बीच छिपा इतिहास – कान्हेरी गुफाएं
मुंबई को हमारे देश की व्यापारिक राजधानी कहा जाता है। ऊँची-ऊँची इमारतें इस आधुनिक शहर की पहचान रही हैं। लेकिन यह शहर जितना आधुनिक है इसका इतिहास उतना ही प्राचीन है। इस शहर की चमक-दमक में इसका पुराना इतिहास अक्सर खो जाता है। इसके प्राचीन इतिहास के एक हिस्से ‘कान्हेरी गुफाओं’ से मेरा परिचय भी अंजाने में ही हुआ।
मैं एक बार मुंबई में था तो मैंने घूमने के लिए संजय गांधी नेशनल पार्क जाने का सोचा। शहर के बीचों बीच बना यह नेशनल पार्क एक अनोखी दुनिया को खुद में समेटे है। यह किसी शहर के बीच बना दुनिया का इकलौता ऐसा नेशनल पार्क है जहाँ बड़ी संख्या में जंगली तेंदुए रहते हैं। इसी खासियत की वजह से मैं इसे देखना चाहता था। जब में पार्क में पहुंचा तो देखा कि एक बोर्ड पर लिखा है संरक्षित स्मारक कान्हेरी लेणी। मराठी में गुफाओं को लेणी कहा जाता है। मुझे याद आया कि इतिहास कि किताबों में मैंने कान्हेरी गुफाओं के बारे में पढ़ा है। ये गुफाएं बौद्ध धर्म से जुड़ी हैं लेकिन इन गुफाओं के बारे में यूँ अचानक पता चलेगा ऐसा नहीं सोचा था।
प्राचीन स्मारकों को देखने में मेरी हमेशा से रुचि रही है। इसलिए मैं कान्हेरी गुफाओं को देखने के लिए चल दिया। गुफाओं तक जाने के लिए पार्क के गेट से ही बस या शेयर टैक्सी मिलती है। पार्क के घने जंगल के बीच से करीब पांच किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता तय करके बस आपको गुफा तक पहुंचा देती है। यहाँ उतर कर लगता है कि जैसे आप मुंबई में हैं ही नहीं। चारों तरफ़ घना जंगल है और आप का साथ देने के लिए यहां बहुत से बंदर भी दिखाई देते हैँ। इसी घने जंगल में जंगली तंदुओं का भी बसेरा है। दिन के समय लोगों की आवाजाही होने के कारण तेंदुओं का दिखाई देना नामुकिन है लेकिन पार्क में सदियों से रह रहे स्थानीय लोगों ने बताया कि दिन ढलने के बाद यहां तेंदुए का दिखाई देना आम बात है। खैर मेरा ध्यान कान्हेरी की गुफाओं पर था। कुछ सीढ़ियां चढ़ने के बाद मैं ऊपर पहुंचा। वहां पुरात्तव विभाग की टिकट खिड़की से टिकट लेकर मैं अंदर गया।
अंदर पहुंचने के बाद जो शुरूआती हिस्सा दिखाई दिया उसे देखकर मैं दंग रह गया। यहां पहाड़ों को काट कर बौद्ध विहार और भिक्षुओं के रहने के स्थान और प्रार्थना स्थल बनाए गए हैं। ताज्जुब होता है कि हज़ारों वर्ष पहले बिना किसी आधुनिक तकनीक के पहाड़ों को काट कर कैसे ये गुफाओं बनाई गई होंगी।
कान्हेरी में 100 से भी ज़्यादा छोटी-बड़ी गुफाएं बनी हैं। किसी समय में यह जगह बौद्ध धर्म का बड़ा केन्द्र हुआ करती थी। सैकड़ों की संख्या में बौद्ध भिक्षु यहां रहा करते थे। उन्हीं भिक्षुओं ने धीरे-धीरे पहाड़ों को काट कर इन गुफाओं का निर्माण किया। ऊँचे पहाड़ी इलाके में बनी इन गुफाओं में पानी का मिलना मुश्किल रहा होगा। इसलिए यहां बरसात के पानी को जमा करने के लिए पूरी व्यवस्था की गई है। हज़ारों वर्ष पहले उन भिक्षुओं ने पानी के मोल को समझा और बरसात के पानी की एक-एक बूदं पानी को जमा करने के लिए कुएं बनाए। गुफाओं की दीवारों से बहने वाली पानी को नाली बनाकर कुओं में पहुंचाया गया है। लगभग हर गुफा के बाहर आपको एक या दो कुएं दिखाई देते हैं। इस तरह से हर गुफा को पानी के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की गई है। इसके साथ ही यहां पहाड़ के ऊपर से आने वाले एक नाले पर बांध बनाकर भी पानी को रोका गया था। हज़ारों साल पहले की यह तकनीक दिखाती है कि उस समय के लोग सोच के मामले में कितना आगे थे। आज हम जिस पानी को बचाने की बात कर रहे हैं उसे उन लोगों ने तभी समझ और अपना लिया था।
कान्हेरी गुफाओं का निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 11वीं शताब्दी के बीच किया गया। इन गुफाओं में चैत्यगृह, भिक्षुओं के पढ़ने और रहने की गुफाएं शामिल हैं। यहां बनी गुफाओं में गुफा नंबर 3, 11, 34, 41, 67, 87 और 90 स्थापत्य के लिहाज के महत्वपूर्ण हैं। इस परिसर में पहुँचते ही गुफा नंबर 1, 2 और 3 दिखाई देती है। गुफा नंबर 1 दो मंजिला गुफा है जो पूरी नहीं बनी है। गुफा नंबर 2 में स्तूप बने हैं और साथ ही भगवान बुद्ध की मूर्तियों को भी पत्थर में उकेरा गया है। इसी के पास गुफा नबंर 3 है। यह कान्हेरी के सबसे बेहतरीन निर्माणों में से एक है। इस विशाल गुफा में एक चैत्यगृह बना है। यह कार्ले गुफाओं के बाद भारत में पाया गया दूसरा सबसे विशाल चैत्यगृह है। गुफा के दरवाजे के पास दोनों तरफ बुद्ध की दो विशाल मूर्तियां बनी हैं।। गुफा के हॉल के बीच में एक विशाल स्तूप बना है। हॉल में बने पत्थर के स्तम्भों के ऊपरी हिस्सों में ख़बसूरत आकृतियां बनी हैं। इन्हीं गुफाओं को देखते हुए मैं आगे बढ़ा तो कुछ आगे जाने पर गुफा नंबर 11 दिखाई देती है। इसे ‘दरबार हॉल’ भी कहा जाता है। यह गुफा एक विशाल हॉल की तरह है। लगता है कि इस गुफा को एक साथ ध्यान या बौद्ध धर्म से जुड़े विचार-विर्मश के लिए इस्तेमाल किया जाता था। पहाड़ में आगे जाने पर एक के बाद एक गुफाएं दिखाई देती हैं। कुछ में सुन्दर आकृतियाँ उकेरी गई हैं तो कुछ में सुन्दर चित्र बनाए गए हैं। बहुत सी गुफाओं के बाहर अभिलेख भी उकेरे गए हैं । इन्हीं अभिलेखों से गुफाओं के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
कान्हेरी बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केन्द्र था। साथ ही यह सोपारा, कल्याण और वसई जैसे प्राचीन बंदरगाहों के भी नज़दीक था। इन बंदरगाहों से भारत का व्यापार पूरी दुनिया के देशों के साथ किया जाता था। प्रमुख व्यापारिक मार्ग पर होने के कारण कान्हेरी का भी काफी विकास हुआ।
अगर आप इतिहास में रूचि रखते हैं तो कान्हेरी आपके देखने के लिए बिल्कुल सही जगह है। कान्हेरी के पूरे इलाके को देखने के लिए काफी समय चाहिए। यहां जाने के लिए बरसात का मौसम बिल्कुल सही रहेगा। बरसात के मौसम में पहाड़ की ऊंचाई से नेशनल पार्क की हरियाली मन मोह लेगी। साथ ही यहां के पहाड़ी नालों में भी काफी पानी देखने को मिलेगा।
कैसे जाएं- संजय गांधी नेशनल पार्क मुंबई के बोरीवली रेलवे स्टेशन से 10 मिनट की पैदल दूरी पर है। पार्क के अंदर से गुफा तक जाने के लिए शेयर टैक्सी या बस मिल जाती है।
गुफा सुबह 9 बजे खुलती है।
Noe- मेरा लिखा यह लेख 1 सितम्बर 2019 को हिन्दुस्तान अखबार के यायावरी पन्ने पर प्रकाशित हो चुका है।