दुबई म्यूज़ियम

दुबई म्यूज़ियम

किसी शहर को जानना समझना चाहते हैं तो उसके इतिहास को समझना भी बहुत ज़रूरी है। इतिहास को जानने के लिए म्यूज़ियम एक सही जगह है। दुबई शहर में भी ऐसा ही म्यूज़ियम है जिसे दुबई म्यू़ज़ियम कहा जाता है। कुछ दशकों पहले तक दुबई मछुआरों, घूमंतू कबीलों और समुद्री किनारे के व्यापार करने की छोटी सी बस्ती हुआ करती थी। लेकिन पिछले 100 वर्षों में दुबई ने तरक्की की नई ऊंचाईयों को छुआ है। रेत से सोना बनाने की दुबई की इस कहानी को समझना चाहते हैं तो आपको दुबई म्यूज़ियम आना होगा।

दुबई म्यूज़ियम

दुबई की सबसे पुरानी बस्ती अल-फ़हीदी इलाके में यह म्यूज़ियम बना है। इसे 200 साल से भी ज़्यादा पुराने अल-फ़हीदी किले में बनाया गया है।यह किला इस इलाके की सबसे पुरानी इमारत है। दुबई खाड़ी के किनारे बना यह छोटा सा किला दुबई की रक्षा के लिए बनाया गया था। यहां का राजपरिवार भी इसी किले में रहा करता था। बाद में दुबई के शहर के विकिसित होने के बाद किले को संरक्षित करके म्यूज़ियम में बदल दिया गया। यहां किले के साथ दुबई के इतिहास को भी संजोया गया है। यहां यह जानकर ताज्जुब होगा कि दुबई के रेगिस्तान में मानव की 5000 हजार साल पुरानी बस्तियां भी मिली हैं। यानि दुबई शहर भले ही नया हो लेकिन यहां कि सभ्यता बहुत पुरानी है।

म्यूज़ियम में जाने के लिए 3 दिरहम का टिकट लगता है। म्यूज़ियम दो हिस्सों में बना है। एक हिस्सा जमीन के ऊपर है । किला छोटा होने के कारण शायद ऊपर इतनी जगह नहीं थी दुबई के पूरे इतिहास को दिखाया जा सके इसलिए बाद में किले की ज़मीन के नीचे म्यूज़ियम के दूसरे हिस्से को बनाया गया। किले के नीचे वाले हिस्सों में पिछले कुछ सौ सालो में दुबई में हुए विकास को विस्तार से समझाया गया है।

ऊपर वाले हिस्से की बात करें तो जैसे ही दुबई म्यूज़ियम के मुख्य दरवाजे के अंदर आते हैं आपको टिकट काउंटर मिलता है। टिकट लेने का बाद आप चौकोर अहाते में पहुंचते हैं। यह अहाता चारों तरफ से ऊंची दीवारों से घिरा है। दीवार के साथ ही दो तरफ लंबे कमरे बने हैं जो शायद रहने के काम आते होंगे। दीवार के तीन कोनों पर तीन बुर्ज़ बने हैं जो सुरक्षा के काम आते होंगे। देखने में किला बहुत छोटा है। अगर भारत के किलों से तुलना करें तो इसे एक तरह की सुरक्षा चौकी कहा जा सकता है। लेकिन 300 साल पुराने छोटे से दुबई के लिए यह काफी कहा जा सकता है। अहाते में दुबई में रहने के पुराने तरीके को दिखाया गया है। यहां घर मुख्यत खजूर की पत्तियों और तने के इस्तेमाल से ही बनाया जाते थे। ये घर गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म रहते थे। इन घरों में एक मीनार भी बनी होती थी जिसे बरजील कहते थे। यह मीनार गर्मियों में घरों को ठंडा रखने का काम करती थी। बरजील के बारे में जानने के लिए मेरा पुराना लेख- अल-फ़हीदी -दुबई का झांकता इतिहास पढ़ सकते हैं। इसके अलावा अहाते में लकड़ी की नावों को रखा गया था। ये छोटी नावें ही पुराने जमाने में समुद्र में जाने के काम आती थी।

खजूर की पत्तियों से बने पारंपरिक घर

साथ ही ऊपर के कमरों में यहां इस्तेमाल होने वाले संगीत के वाद्ययंत्रों और हथियारों को भी दिखाया गया है। यहां दुबई के कुछ मॉडल रखे गए हैं जिन्हें देख कर पता चलता है कि 200 या 300 साल पहले दुबई कैसा रहा होगा।

सन् 1822 का दुबई

दूसरा हिस्सा ज़मीन के नीचे बना है।यहां दुबई के इतिहास को विस्तार से समझायाा गया है। इसे देखकर पता चलता है कि दुबई की तरक्की में केवल तेल का ही योगदान नहीं है बल्कि तेल की ख़ोज होने से काफी पहले 19 वीं शताब्दी के आखिरी वर्षो में ही दुबई ने व्यापार को बढ़ाने के लिए नीतियां बनानी शुरू कर दी थी। 1894 में ही यहां विदेशी व्यापारियों को टैक्स में रियायत दी जाने लगी थी। लगभग इसी समय दुबई खाड़ी के दोनों किनारों पर बर और देरा इलाके का विकास भी शुरू हो गया था। 1908 में देरा में 350 और बर दुबई के इलाके में 50 दुकाने बन चुकी थी। इस दुकानों में व्यापरी भारतीय मसालों, कपड़ों और सोने की बिक्री किया करते थे। देरा और बर के इन बाज़ारों को आज भी देखा जा सकता है।


दुबई के पास हत्ता में 5000 साल पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं। इसके बाद के वर्षों में भी दुबई के इलाके में हमेशा लोगों के रहने के अवेशष मिले हैं। हत्ता से मिली चीज़ों को भी इस म्यूज़ियम में दिखाया गया है। दुबई में मिले कुछ अवशेष तो यहां की सभ्यता को करीब 7000 साल पीछे ले जाते हैं। सब देखने के बाद म्यूज़ियम में बनी दुकान से आप दुबई से जुड़ी चीजों की खरीदारी करते हुए यहां से बाहर निकल सकते हैं।


इस म्यूज़ियम ने दुबई को लेकर मेरी समझ को काफी बढ़ाया। म्यूज़ियम जैसी जगहों का काम भी यही होता है वे आपको कुछ ऐसा दिखाते हैं जो या तो आपको पता नहीं होता या जो आपको कभी बताया नहीं जाता।

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