छोटे ल्हासा मैक्लोडगंज धर्मशाला की सैर (२)

छोटे ल्हासा मैक्लोडगंज धर्मशाला की सैर (२)

शाम को हम पहुँचे नामग्याल मठ लेकिन मठ के दरवाजे पर आकर ही मैं ठिटक गया। मठ के दरवाजे पर तिब्बत की आजादी के सघर्ष के फोटो लगाये गये थे। चीन के अत्याचार की कहानी उनसे साफ नजर आ रही थी।

उसको देखते हुए हम आगे बढे और मठ के अन्दर पहुँचे तो वहां भी विरोध के वही स्वर दिखाई दे रहे थे। चारो और चीन विरोधी नारे लिखे गये थे। कुछ तस्वारे तो इतनी ज्यादा भयानक थी कि देखा ही नहीं जा रहा था।


खैर हम चले मठ को देखने के लिए। मठ में देखने के लिए दो मुख्य मंदिर हैं जिनमे से एक कालचक्र मंदिर है और दूसरा भगवान बुद्ध का है। मंदिर अंदर से निहायत ही खूबसूरत हैं। मूर्तियों को सोने के रंग से रंगा गया था।

तिब्बत की पूरी कला वहां नजर आती है। दीवारों पर तिब्बत की मशहूर थंका चित्रकारी की गई थी जो देखने के लायक है। उन मूर्तियो की खूबसूरती से आंखें हटाने का मन ही नहीं करता है।


थोडी देर में हम मंदिर देख कर बाहर निकले मंदिर के चारो और तिब्बती चक्र लगे हैं। इनमें लाखों की संख्या में मंत्र लिख कर रखे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन चक्रों को एक बार घूमाने से ही लाखों मंत्रों का फल मिल जाता है।

मंदिर के सामने के बरामदे में लोग बौद्ध तरीको से प्रार्थना और ध्यान कर रहे थे। सिर्फ तिब्बती ही नही वहां बडी संख्या में विदेशी भी थे जो ध्यान और प्रार्थना कर रहे थे। बरामदे के सामने से धौलाधार की पहाडियो को बडा ही सुन्दर नजारा दिखाई दे रहा था। हल्की हल्की बरसात भी हो रही थी ऐसे में घाटी से उठते बादलो को देखना दिल लुभाने वाला अनुभव था।
हम बहुत देर तक वहां खडे होकर तस्वीरें उतारते रहे। उसके बाद हम मठ की निचली मंजिल पर पहुँचे। शाम को वहां का नजारा ही बदला हुआ था । वहां बडी संख्या में बौद्ध भिक्षु धर्म और दर्शन पर चर्चा कर रहे थे।


उनका चर्चा करने का तरीका बडा ही अलग था। वही तरीका देखने के लायक था। दो या तीन भिक्षु एक साथ बैठकर किसी विषय पर बात करते हैं जिसमें से एक खडी रहता है जो बोलने के साथ ही हाथो से इशारे भी करता रहता है। इसको पूरी तरह से समझाया नहीं जा सकता है इसे देखने के लिए खुद आपको ही धर्मशाला जाना होगा।


मठ में हम कुछ घंटे बिता चुके थे जब शाम घिरने लगी तो हम बाहर चल दिये ।मठ के बाहर एक बार फिर तिब्बती विरोध दिखाई दिया। शाम को बडीं संख्या में तिब्बती आजादी के समर्थन में पूजा यात्रा निकाल रहे थे। हाथों में मोमबत्ती लिये ये लोग अपना शांत विरोध जता रहे थे।


वहां से निकल कर हम मैक्लोडगंज के बस अड्डे पहुँचे जो यहां का मुख्य चौक भी है। इसी चौक से एक सडक मठ की तरफ जाती है जिसे टेम्पल रोड कहा जाता है। इसी से लगी हुई दुसरी सडक है जिसे जोगीवारा रोड कहा जाता है।


दोनो ही सडको पर तिब्बती सामान की दुकाने हैं। यहां से बौद्ध पूजा का सामान और तरह तरह के वाद्य यंत्र खरीदे जा सकते हैं। तिब्बत की मशहूर थंका चित्र भी यहां से खरीद सकते हैं।


मुझे यहां पर कीमती पत्थरों से बने आभूषण लगभग हर दुकान पर बिकते दिखाई दिये। जोगीवारा सडक पर घुसते ही एक दुकान है जहां तिब्बती कपडे बनाये जाते हैं जहा से आप तिब्बती कपडे अपने हिसाब से खरीद सकते हैं।


साथ ही जोगीवारा सडक पर खाने के रेस्टोरेंट भी बडी संख्या में हैं जहा तिब्बती के साथ ही इटालियन और फ्रेच खाना भी खाया जा सकता है।
मैनें अच्छे तिब्बती रेस्टोरेंट का पता किया। तो पता चला कि स्नो लायन तिब्बती खाने के लिए अच्छी जगह है। ये भी जोगीवारा सडक पर घुसते ही है। यहां मैने मोमो खाये जो बाकई बेहतरीन था। हर तरह का तिब्बती खाना यहां मिलता है। इसलिए अगर घूमने आये है तो यहां जरुर आईये।
यहां के मैन्यू अलग चीज मुझे दिखाई दी सेब की चाय जो वाकई एक अलग स्वाद था । खा पीकर बाहर निकले तब तक रात के आठ बज चुके थे। बाजार देखते हुए होटल पहुँचे कुछ आराम करके खाना खाया और सोने के लिए चले गये ।
अगले दिन सुबह से ही बरसात हो रही थी इसलिए बाहर नहीं निकले और होटल में ही आराम किया। बारह बजे तक हमने होटल से चैक आउट किया। तब तक बरसात भी ऱुक चुकी थी हमारी वापसी की बस भी रात के आठ बजे थी इसलिए हम एक बार फिर मठ की तरफ चल दिये ।
उस मठ में कुछ ऐसी बात है जो आप को अपनी और खींचती है। वापस जाकर हमने जी भर के फोटो खींचे । दो तीन घंटे बिताकर होटल वापस आये और खाना खाकर सामान लेकर वहां से चल पडे। रास्ते में फिर स्नोलायन पर रुके इस बार मैने बनाना केक और तिब्बती चाय का मजा लिया। तब तक शाम के चार बज चुके थे।

तो हमने बस अड्डे से निचले धर्मशाला के लिए बस पकड ली क्योकि हमारी बस निचले धर्मशाला से ही थी। चलते चलते मेरी नजर इस दुकान पर पडी जो पिछ्ले डेढ सौ साल से इसी जगह पर कमोबेश इसी हालत में हैं। ये सब चीजे हैं जो किसी जगह को आम घूमने के इलाको से अलग बनाती है। वहां से बस लेकर इस जगह को अलविदा कर हम चल दिये ।

कहां ठहरे-

हिमाचल पर्यटन का होटल भागसू रुकने के लिए अच्छी जगह है। जहां नौसौ से दो हजार तक के कमरे हैं। इसी के पास पर्यटन विभाग ने नया क्लब हाउस बनाया है जहां जो रुकने के लिए अच्छा है। क्लब में डोरमैट्री सुविधा भी है। इसके अलावा होटल बडी संख्या मैं हैं जहां हर बजट के हिसाब से कमरे मिल जाते हैं।
क्या खायें-
होटल भागसू का खाना काफी अच्छा है । इसकी खासियत है कि पहले से बताकर यहां हिमाचली खाना बनवाया जा सकता है। तिब्बती खाने के लिए होटल भागसू के सामने पेमाथांग और जोगीवारा रोड पर स्नोलाईन रेस्टोरेंट में जाया जा सकता है। इटालियन के लिए स्नोलायन के पास ही निक्स ईटालियन किचन है।

7 thoughts on “छोटे ल्हासा मैक्लोडगंज धर्मशाला की सैर (२)

  1. बुद्ध की मूर्तियाँ सुन्दर है !!हर कोई इस जग में एक मुसाफिर ही होता है….मगर आपकी यात्राएं काफी रोचक है .

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