पुरानी दिल्ली के इतिहास का सफ़र
पुरानी दिल्ली के चटकारों के बाद चलते हैं दिल्ली के इतिहास के सफर पर। पर ये सफर कुछ अलग हैं इसमें कुछ रंग बिरंगी लाईटें हैं और कुछ आवाजें। इन को मिला कर बनाया गया है लाल किले में होने वाला लाईट एंड साउँड प्रोग्राम।
इसमें रंग बिरंगी लाईटों और आवाजों के साथ कहा गया है दिल्ली का इतिहास। पुरानी दिल्ली में लालकिले के बनने से लेकर उसके बसने की पूरी कहानी बेहद ही उम्दा तरीके से कही गया है। ये ही नहीं ब्लकि देश के आजाद होने तक की पूरी कहानी और उसमें लाल किले के योगदान को इसमें बताया गया है।
शुरुआत होती है शाहजहां के नया शहर बसाने की इच्छा और उसके लिए यमुना के किनारे के इलाके को पसंद करने से। और खत्म होती है देश की आजादी के साथ जवाहर लाल नेहरु के लाल किले में तिरंगा फहराने से।
लगभग चालीस मिनट के शो के लिए लाल किले के दिवाने खास को ही मुख्य मंच बनाया गया है। आवाजो का इतना बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है कि जब शाहजहां पहली बार किले में आते हैं तो लगता है कि ये सब आपके सामने ही हो रहा है।
अगर आप पुरानी दिल्ली को जानना और समझना चाहते हैं तो इससे बेहतर कोई और नहीं बता सकता। दिल्ली घूमने आने वालों को जरुर जाना ही चाहिए साथ ही दिल्ली वालो के भी इसे देखना चाहिए। मैने खुद इसको पांच छ बार देख चुका हूँ लेकिन फिर भी जब भी मौका लगता है इसे देख ही लेता हूँ।
इसे देखते समय आपको ऐसा लगता है कि खुद इतिहास ही आपके सामने घटित हो रहा है। आप अपने को मुगलों के दौर में ही खडा पायेंगे। इसलिए एक बार इसे जरुर देखें।
ये हर शाम लालकिला बंद होने के बाद हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में किया जाता है। मैने देखा है कि ज्यादातर लालकिला देखने वाले लोग किला घूम कर ही चले जाते हैं। उनको पता ही नहीं होता कि लाईट सांउँड भी देखने लायक है। इसलिए दिल्ली आयें तो इसे देखना ना भूलें।
4 thoughts on “पुरानी दिल्ली के इतिहास का सफ़र”
मैंने भी बहुत बहुत साल पहले यह लाल किले का रोशनी और ध्वनी का प्रोग्राम देखा था, ज़ँजीरों से खींचे जाने वाले कैदी को लाने की ध्वनि का रोमाँच अभी भी याद है.
मेरे चिट्ठे पर आप की प्रशँसा के लिए धन्यवाद.
सुनील
Nicely written, as good as the essays in our hindi books.
A very brief and concise piece of writing. Keep vsiting places and showing us the glimpse of diversity called- INDIA.
Great effort!
बहुत ही सुंदर शब्दों में आपने इस बात को बयान किया है… मैं पुरानी दिल्ली का होते हुऐ भी इस रोमाच का मज़ा नहीं ले पाया…
पुरानी दिल्ली पर मे लिखता हूं और चल रहे माहौल को आपके बीच रखता हूं कि पुरानी दिल्ली का मज़ा और पेचीदगी आपको क्या एहसास दिलाती है। पढ़ियेगा जरूर।