मसूरी- पहाडों की रानी

मसूरी- पहाडों की रानी

मसूरी उत्तराखंड का एक जाना पहचाना हिल स्टेशन है। इसकी खूबसूरती के कारण इसको पहाडों की रानी कहा जाता है।

मेरी मसूरी से जान पहचान बहूत पुरानी है। जहां तक मुझे याद आता है कुछ पांच या छ साल की उम्र में पहली बार मसुरी गया था। उस वक्त की ज्यादा याद तो नहीं है लेकिन फिर भी माल रोड पर घूमना आज भी यादों में बसा है।

फिर पिछले तीन चार साल में कई बार मेरा मसुरी जाना हुआ। अपने ये अनुभव ही मैं सबके साथ बांट रहा हूं। देहरादून घाटी से तीस किलोमीटर दूर है मसूरी। देहरादून से ही चढाई शुरु हो जाती है। साथ ही शुरू हो जाता है हसीन पहाडी वादियों का सफर भी।

समुद्र से दो हजार मीटर की उंचाई पर बसा है ये प्यार हिल स्टेशन। इस हिल स्टेशन को अंग्रेज आफिसर ने १८२५ में खोजा था। उसके बाद से ही दिल्ली का गर्मी से बचने के लिए मसूरी अंग्रेजों की पसंदीदा जगह बन गया।

अंग्रजों के जमाने में बनी इमारतें आज भी उस दौर की याद ताजा करवा देती हैं। हर हिल स्टेशन की तरह ही मसूरी की पहचान भी इसकी माल रोड ही है। ये सडक पूर्व में पिक्चर पैलेस से लेकर पश्चिम में पब्लिक लाईब्रेरी तक फैली है।

सडक के एक ओर देहरादून घाटी है जहां से देहरादून शहर दिखाई पडता है। रात को माल रोड पर खडे होकर देहरादून की जगमगाती रोशनियों को देखना बेहद खूबसूरत लगता है। शाम को तो जैसे पूरा मसूरी ही माल रोड पर निकल आता है।

उंचाई पर बसे होने के कोहरा और बादल हर समय यहां खेल खेलते रहते हैं। कभी तो माल रोड आपको धूप में चमकती नजर आती है औऱ अचानक ही बादलो से ढक जाती है। शाम के समय घाटी से उठते बादलों के बीच माल रोड पर घूमने के आनंद को बता पाना संभव ही नहीं है।

इस सडक पर चाहे जितना भी घूमें आपका मन कभी नहीं भरेगा। माल रोड पर कपडों, और सजावटी समानों की दुकाने हैं।माल रोड का एक सिरा पहूचता है पिक्चर पैलेस पर जो मसूरी का बाजार है।

माल रोड के बीच में है रोप वे स्टेशन जहां से केबल कार में बैठकर मसूरी की दूसरी सबसे उंची चोटी पर पहूंचा जा सकता है। इस चोटी को गन हिल भी कहा जाता है, क्योकि अँग्रेजों के जमाने में यहां तोप रखी जाती थी। इस तोप को दिन में एक बार चलाया जाता था जिससे लोग सही समय का अंदाजा लगाते थे।

मुझे कहा गया था कि गन हिल से पहाडों के सुन्दर नजारे दिखाई देते हैं। लेकिन यहां पहुच कर दुख हुआ कि यहां चोटी के चारों ओर खाने पीने के दुकाने और रेस्टोरेट बना दिये गये हैं। जिससे नजारो के नाम पर आपको सिर्फ दुकाने ही दिखाई देती देती है। सही नजारे देखने के लिए खुली जगह तलाश करना पडती हैं। इसलिए यहां से तो मै जल्दी ही वापस हो लिया।

वापस आकर मैं चल पडा उस झरने को देखने जिसके लिए मसूरी पूरी दूनिया में जाना जाता है। इस को कैम्प टी फाल के नाम पहचाना जाता है। मसूरी से लगभग १५ किलोमीटर दूर है ये झरना।

मैंने इसकी खूबसूरती के बारे में आज तक बस सुना ही था। सडक से कुछ नाचे उतर कर जाना पडता है इसको देखने। बडे मन से मै इसको देखने पहूचा। लेकिन यहां आकर तो मन गनहिल से भी ज्यादा खराब हो गया। घाटी में बहते इस झरने को भी चारो और से उंची उंची कंक्रीट की बदसूरत इमारतो से घेर दिया गया है। जिनमे रेस्टोरेंट खोल दिये गये हैं। इसमें नहाते समय आपको लगेगा ही नहीं कि किसी पहाडी झरने में नहा रहें हैं। झरने के जो पानी इकठ्ठा हो रहा था उसमें भी गंदगी थी। मैं तो बिना नहाये ही वापस लौट आया। लेकिन मैं सोच में पड गया कि पर्यटन सुविधाऐं बढाने के नाम पर हम प्रकृति के साथ कैसा खिलवाड करते जा रहे हैं?

Leave a Reply

Your email address will not be published.