श्रीनगर- गढवाल

श्रीनगर- गढवाल





इस बार में लिख रहा हूं अपनी श्रीनगर यात्रा के बारे में। ये वो नहीं जिस के बारे में आप सब सोच रहें हैं। ये श्रीनगर उत्तराखंड में है। अपने काम से दो दिन की छुट्टी ले कर में पहुंचा श्रीनगर अपने एक दोस्त के पास।
श्रीनगर हरिद्वार से लगभग १३० किलोमीटर दूर है। ये छोटा सा कस्बा हरिद्वार से बद्रीनाथ जाने वाले रास्ते पर है। अलकनंदा नदी के किनारे बसा है श्रीनगर।
मैं दिल्ली से बस पकड़ कर पहूंचा हरिद्वार तब तक दोपहर हो चुकी थी। लगभग एक बजे मैंने श्रीनगर की बस पकडी। सफर पहाडी रास्ते पर होने के कारण लगभग ५ घंटे लग जाते हैं। पूरा ही रास्ता बेहद खूबसूरत है।
ॠषिकेश से आगे का सारा सफऱ पहाडी ऱास्ते का है। गंगा नदी पूरे रास्ते में आपका साथ बनाये ऱखती है। पहाडी घाटीयों में बहती गंगा को देखते कब समय कट जायेगा आप को पता भी नहीं चलेगा। कहीं कहीं तो गंगा इतनी तेज बहती है कि बस में बैठे हुए भी मन में डर का एहसास होने लगता है।
श्रीनगर के रास्ते में आता है देवप्रयाग आता है। देवप्रयाग में ही गंगोत्री से आती भागीरथी और बद्रीनाथ से आती अलकनंदा का संगम होता है। इस संगम के बाद ही नदी को गंगा नाम मिलता है।
देवप्रयाग हिन्दुओं का तीर्थ स्थान भी है। इस संगम में नहाने से पुण्य मिलता है ऐसा माना जाता है। यहां काफी मंदिर हैं बद्रीनाथ जाने वाले यात्री यहां स्नान जरुर करते हैं। हांलाकि मैं बस में बैठा था इसलिए यहां उतर नहीं सका।
श्रीनगर पहुंचते पहुंचते शाम होने लगी थी। नवंबर का महीना खत्म होने को था इसलिए मौसम में ठंड भी होने लगी थी। पहुचते ही स्वेटर की जरुरत लगने लगी जबकि दिल्ली में उस समय ठंड शुरु भी नहीं हुई थी। मौसम में इस बदलाव से लग गया कि में किसी पहाडी जगह पर आ चुका हूं।
श्रीनगर की समुद्र तल से उंचाई तो बस पांच सौ अस्सी मीटर ही है लेकिन चारों और से पहाडो से घिरा होने के कारण मौसम हिल स्टेशन जैसा ही है।
शहर में उतरते ही मुझे काफी भीड दिखाई दी। अनिल(मेरा दोस्त) से पूछा तो पता चला कि वैकुंठ चतुर्दशी का मेला चल रहा है। दूर दूर से लोग इस मेले में आते हैं। ये मेला कमलेश्वर मंदिर में लगता है। शाम को ज्यादा कुछ देख नहीं सकते थे इसलिए थोडी देर मेला और बाजार देख कर हम घर चले आये।
अगले दिन सुबह मैं जल्दी उठ गया। छत पर पहुचा तो देखा कि घर के पीछे ही पहाड हैं सुबह सुबह कोहरे से ढके पहाड सुन्दर लग रहे थे।
फिर मै निकला श्रीनगर को देखने सबसे पहले तो मैंने कमलेश्वर मंदिर देखा। अलकनंदा नदी के किनारे बना है ये शिव मंदिर। इसके बारे में कहा जाता है कि भगवान राम ने यहां शिव की अराधना की थी। कमल के फूल कम पडने पर उन्होने अपनी आंख निकाल कर शिव को चढा दी थी। तब से मंदिर का नाम भी कमलेश्वर हो गया।
मान्यता है कि वैकुंठ चतुर्दशी के दिन पति पत्नी पूरी रात दिया हाथ में लेकर मंदिर में खडे रहें तो उन्हे संतान मिल जाती है। मुझे पता चला कि रात को मंदिर में तिल रखने की भी जगह नहीं थी।
मंदिर देखने के बाद में पहुंचा अलकनंदा के किनारे पर। इस घाटी में नदी बहुत चौडे पाट में बहती है। पूरे वेग से बहती नदी को देख मन खुश हो गया। मैं काफी देर तक नदी के किनारे बैठा रहा।
यहां आप साफ स्वच्छ बहती अलकनंदा को देख सकते हैं। इस को देखकर समझ आता है कि मैदानों में हमारी नदियों का गंदगी से कैसा बुरा हाल हो चुका है। पहाडों पर बहती निर्मल गंगा तो अब हमारे शहरों में आकर गंदा नाला बन कर रह गयी है।
हांलांकि यहां भी मैंनें देखा कि कुछ जगहों पर शहर का गंदा पानी सीधा ही नदी में मिल रहा है इसको रोकने की जरुरत है। कम से कम पहाडों पर तो हमारी नदियां मैली नहीं होनी चाहिए।
नदी के किनारे पर ही पहाडी शैली में बना पुराना मंदिर दिखाई दिया। देखकर तो एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना लग रहा था। लेकिन वहां किसी तरह की जानकारी नहीं थी। मंदिर में एक बाबा थे उन्होने बताया कि इस मंदिर को पांडवों ने बनाया था। मंदिर का स्थापत्य सचमुच देखने लायक था। श्रीनगर के आस पास और भी मंदिर हैं जिन्हे देखा जा सकता है।
उसके बाद मैं मेला देखने निकल गया। मेले में अच्छी खासी भीड़ थी। गढवाल की संस्कृति वहां दिखाई दे रही थी। आधुनिक कपडों के साथ ही स्थानीय पोशाकों में भी लोग दिखाई दे रहे थे।

इस तरह दो दिन बिताने कि बाद में वापस चल पडा दिल्ली की औऱ लेकिन मन में यहां फिर आने की आशा लिए।

श्रीनगर हरिद्वार से बद्रीनाथ जाने वाले रास्ते पर है। इसलिए दिल्ली बद्रीनाथ जाने वाले लोगों के लिए रात को रुकने के लिए ये अच्छी जगह है। इस बहाने आप इसे घूम सकते हैं। अगर हरिद्वार या ॠषिकेश घूमने आ रहे हो तो भी एक दिन बिताने के लिए यहां आया जा सकता है।

रुकने के लिए गढवाल टूरिज्म का रेस्ट हाउस है ये बस अ़ड्डे के पास ही बना है। श्रीनगर से दो किलोमीटर दूर श्रीकोट में भी गढवाल टूरिज्म का रेस्ट हाउस है यहां भी रुका जा सकता है।

One thought on “श्रीनगर- गढवाल

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