उत्तरे – सिक्किम का अनछुआ इलाका 

उत्तरे – सिक्किम का अनछुआ इलाका 

उत्तरे ( Uttarey) पहुंचते-पहुंचते शाम के सात बज चुके थे। अंधेरा हो चुका था। मार्च के आख़िरी हफ़्ते में मौसम भी ठंडा था। बारिश भी हो रही थी। अपने होमस्टे के बाहर सुखबीर जी अपने बेटे के साथ बारिश में हमारा इंतजार कर रहे थे। उन्होंने मुस्कराहट के साथ स्वागत किया। दिल्ली में घर से सुबह पांच बजे निकलने के बाद मैं शाम सात बजे उत्तरे पहुंचा था। उत्तरे सिक्किम के पश्चिमी कोने पर भारत-नेपाल सीमा पर बसा क़स्बा है। पहले दिल्ली से पश्चिम बंगाल के बागडोगरा के लिए फ्लाइट ली। बागडोगरा से उत्तरे 170 किलोमीटर की दूरी पर है। सिलीगुड़ी शहर के ट्रैफिक और पहाड़ी रास्तों पर इस दूरी को पूरा करने में आठ घंटे लग ही गए।

मेरा होम स्टे उत्तरे कस्बे से भी करीब आठ किलोमीटर दूर ऊपर पहाड़ पर था। आखिरी कुछ किलोमीटर की सड़क अभी बनी नहीं थी। पत्थरों के बने ऊंचे नीचे रास्ते के बीच हमारी गाड़ी यहां तक पहुंची। रात के अंधेरे में पहाड़ी रास्ता इतना मुश्किल और ख़तरनाक लग रहा था कि एक बार तो हमारी गाड़ी के ड्राइवर राजू ने बोल ही दिया कि आपको पहुंचाने के बाद मैं अब यहां नहीं आऊंगा। खैर, होम स्टे पहुंच ही गए।

सुखबीर जी ने गर्म चाय और पकोड़ों के साथ स्वागत किया। बारिश और ठंड के बीच इससे बेहतर क्या हो सकता था भला। जल्दी ही खाना भी तैयार हो गया। दाल, भात, आलू की सुखी सब्जी, मटर के पत्तों की सब्जी, बिल्कुल यहां का देसी खाना। खाने में मज़ा आ गया। बारिश के बाद रात को ठंड भी बढ़ गई। 

उत्तरे की सुबह

उत्तरे की सुबह- पीछे पहाडों पर बर्फ की सफ़ेदी

सुबह पहाड़ की ताज़ी हवा और परिंदों की आवाज़ के बीच पांच बजे ही आंख खुल गई। मैं अपने कमरे से बाहर आया तो देखा सुखबीर पहले ही उठ चुके थे। उन्होंने मुझे देखते ही कहा, ‘पीछे पहाड़ों पर नज़र डालिए।’  मैं पहाड़ों की तरफ़ देखा तो चारों तरफ़ सफेद परत दिखाई दी। उन्होंने कहा रात की बारिश का असर है, पहाड़ों पर रात बर्फबारी हुई है। सामने काफी नीचे तक पहाड़ों पर बर्फ की हल्की परत दिखाई दे रही है। अब उत्तरे की असली ख़ूबसूरती मेरे सामने थी। चारों तरफ ऊंचे पहाड़ और घने जंगल थे। नीचे घाटी में दूर-दूर तक खेत और उनके बीच बने घर नज़र आ रहे थे। तरह के तरह परिदों की आवाज़ें आ रही थीं। बुरांस (Rhododendron) के फूलों का मौसम था। कहीं-कहीं बुरांस के लाल फूलों से ढके पेड़ दिखाई दे रहे थे। पहाड़ियों के पीछे से उगते सूरज की लालिमा ने तो इस माहौल को और भी ख़ूबसूरत बना दिया। 

इकलतसुम होमस्टे ( IKLAITSUM Homestay ) से उगते सूरज का नज़ारा

मेरा होम स्टे ऊंचाई पर था तो यहां से नीचे घाटी में बसा उत्तरे कस्बा भी साफ नज़र आ रहा था। सुखबीर मेरे लिए कॉफी का गर्म प्याला ले आए और उनके साथ उनके होम स्टे, इकलतसुम होमस्टे ( IKLAITSUM Homestay ) के बारे में बातचीत होने लगी। 

इकलतसुम होमस्टे ( IKLAITSUM Homestay ) 

सुखबीर 2016 से यह होम स्टे चला रहे हैं। मेरे मन ने होमस्टे के नाम को लेकर सवाल था। उन्होंने बताया कि उनके तीन बच्चे हैं, दो लड़के और एक लड़की। उन तीनों के नाम के पहले दो अक्षर लेकर उन्होंने IKLAIT शब्द बनाया और SUM का मतलब स्थानीय भाषा में होता है, तीन। मतलब तीन बच्चों वाला होम स्टे। मुझे नाम रखने का यह अनोखा तरीका बहुत अच्छा लगा।

इकलतसुम होमस्टे ( IKLAITSUM Homestay )

इकलतसुम में तीन कमरों का एक सेट है जिसे पर्यटकों को दिया जाता है। हर कमरे के साथ बाथरूम है। एक कमरे में दो से तीन लोग आराम से रुक सकते हैं। एक कमरा थोड़ा बड़ा है जिसमें तीन डबल बेड लगे हैं। कमरे साफ सुथरे हैं। इस जगह पर प्रकृति के बीच रहने के लिए इससे ज़्यादा की शायद ज़रूरत भी नहीं है। सुखबीर रजिस्टर्ड ट्रेकिंग गाइड भी हैं इसलिए उनके पास ज़्यादातर बड़े ट्रेकिंग ग्रुप रुकने के लिए आते हैं। काफी विदेशी भी यहां ट्रेकिंग करने के लिए आते हैं। ज़रुरत पड़ने पर उनके पास एक छोटा कमरा और भी है। मैं उसी मैं रुका क्योंकि हम चार लोग थे और सबको अलग-अलग कमरा दिया गया था। 

यहां अलग से बड़ा डायनिंग हॉल और रसोई बनी है। जहां काफी लोग आराम से साथ खाना खा सकते हैं। यहां किराया 1500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। जिसमें तीनों समय का खाना भी है।

सुखबीर जी ने बताया कि गर्मी के मौसम में ऐसे लोग भी हैं जो इनके यहां एक-एक महीने तक रुकने के लिए आते हैं। गर्मी के मौसम में ठंडा पहाड़ी मौसम लोगों को इस तरफ खींचता है।

खाने में इनकी कोशिश होती है कि जितना हो सके स्थानीय खाना ही बनाया जाए। जिसमें दाल, चावल, मडुए की रोटी, तरह-तरह की हरी सब्ज़ियां शामिल होती हैं। मक्का भी यहां खूब इस्तेमाल होती है। मुझे भी तीन दिनों तक अलग-अलग तरह का खाना खाने को मिला। 

नाश्ते में शा फाले (Sha phaley)- तला हुआ तिब्बती व्यंजन जिसमें आलू या मीट भरा होता है
सुखबीर जी

सिक्किम में होमस्टे व्यवस्था

सिक्किम काफी समय से पर्यावरण हितैषी टिकाऊ विकास पर जोर दे रहा है। राज्य में प्लास्टिक थैलियों के इस्तेमाल पर रोक है। खेती भी पूरी तरह जैविक है। ऐसे में पर्यटन को बढ़ाने के लिए भी होम स्टे व्यवस्था को मज़बूत करने पर ध्यान दिया गया है। जिससे स्थानीय लोगों को रोज़गार भी मिले और पर्यटन के पड़ने वाले नुकसान को भी कम किया जा सके। 

उत्तरे और उसके आस-पास के गावों में फिलहाल 82 होमस्टे चल रहे हैं। हर गांव में पर्यटन विकास की समिति बनी जो सामुदायिक आधार पर पर्यटन से जुड़ी गतिविधियों को देखते हैं। आमतौर से 4-5 कमरों के होमस्टे हैं। कमरों के किराए भी समिति ही तय करती है। इस इलाके में होमस्टे के कमरों का किराया 1200-1500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन तय है। जिसमें तीन समय का खाना भी शामिल है। 

मैं क्यों आया उत्तरे

सिक्किम के सुदूर पश्चिमी इलाके के छोटे कस्बे उत्तरे में आने की वजह थी यहां होने वाला सिक्किम रुरल टूरिज़्म मीट, 2025। इसके लिए भारत के कई इलाकों से ट्रेवल राइटर यहां पहुचे थे। सिक्किम पर्यटन ने सिक्किम में ग्रामीण पर्यटन की संभावनाओं के बारे में बताने के लिए यह कार्यक्रम का आयोजन किया था। मैं पहली बार सिक्किम आया था। यहां आकर नए राज्य की संस्कृति और करीब से देखने का मौका मिला। 

ट्रेकिंग का ठिकाना- उत्तरे

फोकते दारा (Phoktey Dara) 

भारत-नेपाल सीमा पर बसा उत्तरे ट्रेंकिग शुरू करने के लिए बहुत बढ़िया जगह है। हिमालय के कई ट्रेकिंग रास्तों की शुरुआत उत्तरे से ही होती है। एक दिन से लेकर कई दिनों लंबे ट्रेक यहां से किए जा सकते हैं। मैंने यहां एक दिन का फोकते दारा (Phoktey Dara)  ट्रेक किया। जिसके लिए नेपाल सीमा पर Chewa Bhanjyang तक गाड़ी से जाया जाता है। वहां से फोकते दारा (Phoktey Dara) चोटी करीब 4 किलोमीटर है। एक ट्रेक को पूरा करने में करीब 6 घंटे लगे। रास्ता बुरांश के जगलों से भरा है। मौसम साफ रहने पर Chewa Bhanjyang के पास से माउंट एवरेस्ट और माउंट लाहोत्से को देखा जा सकता है। फोकते दारा (Phoktey Dara) चोटी करीब 3700 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां से कंचनजंगा का शानदार नज़ारा दिखाई देता है। लेकिन मौसम खराब होने से कंचनजंगा को मुझे नज़र नहीं आया लेकिन यह ट्रेक में मज़ा आया। इस ट्रेक को लंबे रास्ते से करने पर चार दिन लगते हैं। 

उत्तरे में और क्या देखें

काग्यू मठ ( kagyu Monastery) 

यह सिक्किम के सबसे पुराने बौद्ध मठ में से एक है। इसे 1711 में बनाया गया था। सड़क से 10 मिनट की चढ़ाई करने यहां पहुंचा जा सकता है। 

काग्यू मठ ( kagyu Monastery)

तेंजिंग हिलेरी पार्क

इस पार्क को माउंट एवरेस्ट पर सबसे पहले चढ़ने वाला पर्वतारोहियों, तेंजिंग नार्गे और एडमंड हिलेरी की याद में बनाया गया है।

असल में उत्तरे दौड़ भाग से दूर शांति में कुछ दिन बिताने वालों के लिए सही जगह है। शांति, मौसम और सुकून से कुछ समय बिताने का आनंद ही यहां की खासियत है। सिक्किम का मशहूर पर्यटन स्थल पेलिंग उत्तरे से केवल 30 किलोमीटर की दूरी पर है। पेलिंग कंचनजंगा के नज़ारों के लिए प्रसिद्ध है। उत्तरे के साथ पेलिंग और गंगटोक को शामिल करते हुए 5-6 दिन का अच्छा टूर प्लान बनाया जा सकता है। सिक्किम का यह इलाका मुझे बहुत पसंद आया। अगर आप घूमने के लिए भीड़ से दूर किसी शांत पहाड़ी इलाके की तलाश में है तो उत्तरे आ सकते हैं। यह आपको निराश नहीं करेगा। 

पेलिंग से दिखाई देता कंचनजंगा पर्वत

कहां रुकें

सिक्किम आ रहे हैं तो यहां के होमस्टे में रुककर देखिए। उत्तरे में काफी सारे होमस्टे मिल जाएंगे। सिक्किम पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर होमस्टे की जानकारी दी गई है। इसके अलावा Uttarey Ecotourism Development and Service Co-operative Society Limited की बेवसाइट से भी होमस्टे की जानकारी ले सकते हैं।   उत्तरे में कुछ होटल और रिजॉर्ट भी हैं। 

कैसे पहुंचे 

श्चिम बंगाल का बागडोगरा उत्तरे का सबसे नज़दीका हवाई उड्डा है। बागडोगरा के लिए देश के लिए कई बड़े शहरों से सीधी हवाई सेवा उपलब्ध है। यहां से उत्तरे की दूरी 170 किलोमीटर है। सड़कों की हालत बहुत अच्छी नहीं है, इसलिए थोड़े लंबे सफर के लिए तैयार रहें। हवाई उड्डे से उत्तरे के लिए टैक्सी ले सकते हैं। बागडोगरा के पास सिलीगुड़ी शहर है जहां से उत्तरे से शेयर टैक्सी मिल जाती है। न्यू जलपाइगुड़ी नज़दीकी रेलवे स्टेशन है। यहां से भी टैक्सी या शेयर टैक्सी ली जा सकती है। 

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