तीसरा दिन-
तीसरे दिन हम चल पडे कश्मीर के खूबसूरत हिल स्टेशन पहलगाव देखने के लिए। पहलगाव जाने के एक कारण ये था कि हमें आगे अमरनाथ की चढाई करनी थी और पहलगाव अमरनाथ यात्रा का पहला स्थान है जहां ये यात्रा शुरु की जाती है। श्रीनगर से पहलगाव के रास्ते में भी देखने के लिए काफी कुछ है इसलिए हमने सुबह सवेरे ही पहलगाव के लिए निकलने तय किया जिससे रास्ते का भी पूरा मजा लिया जा सके। लगभग आठ बजे हम निकल पडे अपने सफर पर। सुबह का समय था श्रीनगर की सडके अभी खाली थी सुबह के उन्नीदे पन में ही हम शहर से बाहर आ गये ।
जैसे ही बाहर आते हैं एक बार फिर से कश्मीर का असली सौन्दर्य दिखाई देने लगता है। सडके के दोनों और फैले खेत, सडके किनारे नहरों में कलकल बहता मीठा पानी जिसे देखते ही मन डुबकी लगाने के लिए मचलने लगता है। इन खेतों में काम करते महनत कश लोगों को देखना अलग ही अनुभव है।
थोडा आगे चलते ही हमें केसर के खेत दिखाई दिये गाइड ने बताया कि अभी तो ये खाली हैं क्योकि अभी केसर उगाने का मौसम नहीं है लेकिन कुछ महीने के बाद इनमें केसर लहलहाने लगेगी। इन्ही खेतों के किनारे छोटी छोटी दुकाने हैं जहां से असली केसर खरीदी जा सकती है।
अब तक हमें निकले एक घंटा हो चुका था और सबको भूख लगने लगी था इसलिए नाश्ते के लिए रास्ते में था। हमने अपना नाश्ता रास्ते के वैष्णो ढाबे पर किया। ये ढाबा देखकर थोडा ताजुब्ब भी हुआ क्योकि श्रीनगर के बाहर वैष्णों ढाबे अब दिखाई नहीं देते। शर्मा जी के इस ढाबे पर हमने गरमागरम पराठों और राजमे का आन्नद लिया । राजमा बहुत ही अच्छा था वैसे भी कश्मीर का राजमा बेहद अच्छा माना जाता है।
बैट बनाने का काऱखाना।
कश्मीर में पाये जाने वाली विलो पेड की लकडी बैट बनाने के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। यहां भी विलो और अखरोट की लकडी से बैट बनाये जा रहे थे। ये तकनीक के लिहाज से तो अच्छे नहीं थे लेकिन कश्मीर की याद के तौर पर जरुर खरीदा जा सकता है। कारखाना देखने के बाद मैने भी पास की दुकान के एक बैट खरीद ही लिया। रास्ते में भी सडके के दोनो और बैट की लकडी सूखती दिखाई दे रही थी।
ढाबे से करीब दस किलोमीटर दूर था अवन्तिपुर, जहां नौ वी शताब्दी में बने अवन्तिपुर शहर के अवशेष देखे जा सकते हैं। अवन्तिरपुर श्रीनगर से करीब तीस किलोमीटर दूर है। अवन्तिपुर को राजा अवन्तिपुर ने नौ वीं शताब्दी में बसाया था। अब शहर के अवशेष तो नहीं हैं लेकिन उस समय के दो मन्दिर जिसमें एक शिव मन्दिर और है दूसरा विष्णु मन्दिर है के अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं ।
भगवान विष्णु का मन्दिर पहलगाव जाने सडक किनारे पर है जिसे पुरात्तव विभाग ने संरक्षित कर रखा है। मन्दिर का परिसर बडा ही विशाल है मुख्य द्वार तो देखते ही बनता है उस पर बडी ही कुशलता से मुर्तियां उकेरी गयी है। मुख्य द्वार के सामने है मन्दिर का गर्भ गृह जिस तक पहुचने के लिए साढियां चढनी पडती हैं। उपर बस एक चबूतरा ही बचा है जिस में कभी भगवान विष्णु की भव्य प्रतिमा हुआ करती थी। मुख्य मन्दिर के चारो ओर कम उचाई के चार चबूतरे बने हैं जिन पर चार देवताओ के मन्दिर हुआ करते थे।
इसके बाद मन्दिर के चारो और की दीबार पर ६९ छोटे मन्दिर बने थे। जिसे देख कर उस समय की भव्यता का अनुमान आसानी के लगाया जा सकता है। मन्दिर को बनाने के लिए स्थानिय पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। मुझे तो देख कर ताजुब्ब हो रहा था कि उस जमाने में इतने विशाल पत्थरो को कैसे यहां तक लाया गया होगा।
वहां के गाईड ने तो एक बडी ही आश्चर्य जनक बात बताई की इन पत्थरो को जोडने के लिए किसी भी तरह के बाईन्डिग मैटेरियल का इस्तेमाल नहीं किया है। पत्थरो को आपस में जोडने के लिए अनोखी विधी का प्रयोग किया गया जैसा कि आप फोटो में देख रहे हैं एक पत्थर में छेद बनाया जाता था दूसरे में नुकीला हिस्सा जिन्हे आपस में एक दूसरे पर बिठा दिया जाता था। भारी वजन से ये आपसे में जुडे रहते थे। बाद में ये मन्दिर झेलम नदी में आयी एक बाढ में खत्म हो गया था।
भारत की प्राचीन विरासत को देखने के बाद हम आगे बढे। रास्ते के सुन्दर नजारे हमारे सफऱ को शानदार बना रहे थे। अभी तक हम घाटी के मैदानी इलाके में थे लेकिन अब पहाडी रास्ता शुरु हो चुका था। अब हमारे सफर में साथ थी पहलगाव से आती लिद्दर नदी। एक ओर बहती नदी तो दूसरी और ऊँचे पहाड मन मोह रहे थे। तभी मुझे लिद्दर नदी में चलते राफ्ट दिखाई दिये गाईड ने बताया कि पास में ही राफ्टिग करवाई जाती है। मेरा तो मन मचल पडी करने के लिए पिछली बार जब श्रीनगर ( गढवाल) गया था तो ऱाफ्टिग नहीं कर पाया था पर तबसे ही मन में हसरत थी जो आज मुझे पूरी होती लगी।
अखिरकार हम ने भी अपना गाडी रोकी और ऱाफ्टिग करने के चल पडे। हमें सेफ्टी जैकेट और हैलमेट पहनाये गये साथ ही इन्सट्रकटर नें जरुरी हिदायते हमें बताई। इसके बाद हम उतर गये नदी के तेज पानी में बहने के लिए। राफ्ट मे बैठने से पहले तो थोडा डर लग रहा था लेकिन बैठने के बाद वो भी दूर हो गया। मै तो सबसे आगे ही बैठा था जैसे ही हमारी ऱाफ्ट तेज लहर से टकराती थी ठंडा पानी मेरे ही उपर होता था।
हालांकि हमने तीन चार किलोमीटर ही राफ्टिग की लेकिन जिस रोमाच का अनुभव मैने किया उसे शब्दों में बताया ही नहीं जा सकता। जब हम नीचे उतरे तो सारे कपडे भीग चुके थे। मै तो ठंड से कांप रहा था लेकिन जिस रोमाच को मैने महसूस किया उसके सामने ये परेशानी कुछ भी नहीं थी।
खैर मजा लेकर हम आगे बढे पहलगाव के लिए थोडी ही देर में देवदार के जंगल दिखाई देने लगे। गाईड ने बताया कि पहलगाव आने ही वाला है। देवदार और चीड के घने जंगलो के बीच से निकल कर हम आगे चलते जा रहे थे। रास्ते की खूबसूरती बता रही थी कि हम वाकई किसी जन्नत में जा रहे हैं। आखिरकार हम पहलगाव पहुच ही गये। पहलगाव की खूबसूरती अगली बार………………………………………
7 thoughts on “श्रीनगर की यात्रा (६)- श्रीनगर से पहलगांव का सफर”
वाह..खूबसूरत नज़रों के साथ साथ रोमांच के अनूठे पल भी जी लिए आपने…राफ्टिंग भी कर ली…और मुहं में पानी ला देने वाले परोंठे भी खा लिए…अब आगे क्या होगा?
नीरज
अबकी और अच्छा लिखा है…बस इतना ख्याल रखना कि हिंदुस्तानी शब्द का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा हो…और संयुक्त अक्षरों से जितना बच सको उतना अच्छा…कुल मिलाकर कहने का मतलब ये कि इसे बिल्कुल टीवी स्क्रिप्ट बना दो…बाद बाकी तो झक्कास है।
अच्छा. बस फोटो पर थोड़ा काम करते और रोचक हो जाता.
अच्छा लगा। आपके साथ पटेगी। एक दो दिन मे मलाणा के लिए निकलुंगा साथ चलेंगे?
bahut achhe lage photoes…dekh kar maza aagaya…jab pics mein ye haal hai to real mein kitna achha lagta hoga…bahut achha
ठीक लिख रहे हो मुसाफिर, मेरी इच्छा है कि कभी मंगल ग्रह की सैर भी कर आओ…
पिछले हफ्ते आपकी ये पोस्ट नहीं देख पाया। पत्थरों वाली जानकारी काफी रोचक लगी। इसी तरह घुमाते रहिए।