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संस्कृतियों का संगम है मलेशिया का मलक्का शहर
मलक्का के डच स्कवायर पर बनी लाल रंग की इमारतें बरबस आपका ध्यान खींचती हैं। मलक्का पर डच कब्जे के दौरान इन्हें बनाया गया था। बाद में अंग्रेजी दौर में इन्हें लाल रंग से रंगा गया। यह मलक्का का ऐतिहासिक इलाका है। 2-3 किलोमीटर में फैले इस छोटे से इलाके ने मलक्का के 600 सालों के इतिहास को समेट रखा है। यही वजह है कि साल 2008 में यूनेस्को ने इस ऐतिहासिक इलाके को विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिया।
सुमात्रा से आए राजा परमेश्वर ने साल 1396 में मलक्का नदी के किनारे मलक्का शहर की नींव डाली थी। हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाले मलक्का जलडमरूमध्य के किनारे बसे मलक्का की भौगोलिक स्थित बहुत अहम थी। यही वजह थी की 15 वीं शताब्दी में मलक्का दुनिया के सबसे समृद्ध बंदरगाह शहरों में से एक बन गया था। यूरोप, अरब, भारत और चीन सहित दुनिया भर के व्यापारी यहां आया करते थे। ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स से पता चलता है उस समय मलक्का शहर में 84 भाषाओं को बोलने वाले लोग रहा करते थे। बड़ी संख्या में भारत, चीन और दक्षिण एशिया के देशों से आकर लोग यहां बसने लगे। यहीं से मलक्का में संस्कृतियों का मेल शुरू हुआ।
मलक्का की समृद्धि को देखकर यूरोप की औपनिवेशिक ताकतें इस शहर की तरफ आकर्षित हुई। 1511 में पुर्तगालियों ने इस शहर को अपने कब्जे में ले लिया। उसके बाद डच और आखिर में ब्रिटेन ने इसे अपने कब्जे में रखा।
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डच स्क्वायर में सबसे पहली नज़र टाउन हॉल की विशाल इमारत पर जाती है। इसे डच शासनकाल में साल 1650 में बनवाया था। अब इस इमारत में म्यूजियम बना है जहां मलक्का के इतिहास की जानकारी दी गई है। इसी के पास क्राइस्ट चर्च है। इन दोनों इमारतों को डच वास्तुकला से बनाया गया है। टाउन हॉल के पीछे की पहाड़ी पर पुर्तगालियों के समय बने सेंट पॉल चर्च के खंडहर देखे जा सकते हैं।
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इसी पहाड़ी के ठीक नीचे पुर्तगालियों ने एफामोसा नाम का किला बनवाया था। 500 साल पुराने इस किले का बस एक दरवाज़ा ही शेष बचा है पर यह दरवाजा इतिहास की बहुत बड़ी धरोहर है। यह दरवाजा एशिया में बचा हुआ सबसे पुराना यूरोपीय निर्माण है।
मलक्का के सुल्तान का महल भी इसी इलाके में था। लकड़ी के इस विशाल और शानदार महल की हूबहू नकल अब बनाई गई है। मलक्का की पारम्परिक वास्तुकला को समझने के लिए यह महल बिल्कुल सही जगह है।
संस्कृतियों का मेल मलक्का की हार्मनी स्ट्रीट में साफ दिखाई देता है। इस स्ट्रीट पर बना
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मलेशिया का सबसे पुराना हिन्दू मंदिर है। साल 1781 में हिन्दू तमिल समुदाय ने इसे बनवाया था। इस मंदिर की बनावट आम तमिल मंदिरों से अलग नज़र आती है। मंदिर का गोपुरम साधारण है। द्रवि़ड़ शैली के गोपुरम की तरह इसमें न तो बहुत सारी मूर्तियों दिखाई देती हैं और न ही इसे सजाने में तेज़ रंगों का इस्तेमाल किया है।
इसी मंदिर से सटकर बनी है कांपुग क्लिंग मस्जिद। साल 1748 में बनी इस मस्जिद को भारतीय मुस्लिम व्यापारियों ने बनवाया था। इस मस्जिद की वास्तुकला में चीनी ,सुमात्रा और मलय शैली के साथ गहरा हिन्दु प्रभाव नज़र आता है। मस्जिद से कुछ आगे जाएं तो साल 1673 में बना चीनी मंदिर है। यह मलेशिया का सबसे पुराना चीनी मंदिर है। एक ही सड़क पर अलग-अलग धर्मों के इन पूजास्थलों होने के कारण ही इसे हार्मनी स्ट्रीट कहा जाता है।
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भले ही मलक्का में राज करने वाले लोग बदलते रहे लेकिन यहां बाहर से लोगों के आने का सिलसिला चलता रहा। भारत से आए तमिल जिस इलाके में बसे उसे लिटिल इंडिया कहा जाता है। लिटिल इंडिया वाकई किसी छोटे भारत जैसा ही लगता है। यहां आकर ऐसा लगता है जैसे दक्षिण भारत के ही किसी इलाके में आ गए है। भारतीय स्वाद वाले रेस्टोरेंट्स से लेकर कपड़ों और पूजा सामग्री तक यहां सब कुछ मिलता है।
चीन से आए लोग जहां बसे उसे चाइनटाउन कहा जाता है। चाइनाटाउन की जोंकर स्ट्रीट खरीदारी करने और चीनी खाने के शौकीनों के लिए पसंदीदा जगह है। सप्ताहांत के दिनों में जोंकर स्ट्रीट में लगने वाला स्ट्रीट मार्केट अपने खाने-पीने की दुकानों के कारण अलग पहचान रखता है। चाइनटाउन के घरों की बनावट भी अलग है। ये घर चौड़ाई में कम और लंबाई में ज्यादा होते हैं। बाज़ार में बने घरों की सबसे निचली मंजिल पर दुकान होती थी और पहली मंजिल पर लोग रहा करते थे। इसलिए इन घरों को शॉपहाउस कहा जाता है।इन घरों की बनावट में चीनी और डच प्रभाव नज़र आता है।
चाइनाटाउन का इलाका डच स्क्वायर के ठीक सामने है। बीच से बहती मलक्का नदी इन दोनों इलाकों को अलग करती है। शहर की पहचान रही मलक्का नदी वक्त के साथ गंदे नाले में बदल गई थी। लेकिन पिछले 20 सालों की मेहनत के बाद इसे फिर से साफ-सुथरा बना दिया गया है। आज पर्यटक इसके पानी में बोटिंग का मज़ा लेते हैं। इसके दोनों किनारे पर खुले कैफे और रेस्टोरेंट्स देर रात तक दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों से गुलजार रहते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है। सैंकड़ों साल पहले इस नदी के किनारे दुनिया भर से आने वाली हज़ारों नावें और व्यापारी डेरा डाले रहते हैं और आज उनकी जगह पर्यटकों ने ले ली है।
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कैसे पहुंचे- मलक्का मलेशिया की राजधानी कुआला लम्पुर से करीब 150 किलोमीटर दूर है। यहां तक टैक्सी या बस से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
(Note- मेरा यह लेख इंडिया टुडे हिन्दी पत्रिका की वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुका है।)
मलक्का पर बनाए गए मेरे Youtube वीडियो
मलक्का ट्रैवल गाइड बुक- मलक्का के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए नीचे बताई गाइड बुक पढ़ी जा सकती है।