रायगढ़ का चक्रधर समारोह – शास्त्रीय और लोक कलाओं का मंच
देश के आम छोटे कस्बों या शहरों जैसा ही है छत्तीसगढ़ का रायगढ़। यहां पहुंचने पर आप को कुछ खास नजर नहीं आएगा। लेकिन यह शहर कला की दुनिया में अपनी अलग ही पहचान रखता है। यही वजह है कि इसे छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है। इसी सांस्कृतिक नगरी की पहचान है यहां होने वाला वार्षिक चक्रधर समारोह।
रायगढ़ में कला का इतिहास
कला की दुनिया में रायगढ की यह पहचान बहुत पुरानी है। इसकी शुरूआत यहां के राजघराने के समय में ही हो गई थी। आज़ादी के पहले से ही यहां के राजघराने ने कला की विभिन्न विधाओं को संरक्षण देने का काम शुरू कर दिया था। संगीत, नृत्य और काव्य की धारा इस शहर में बहा करती थी। रायगढ की इस सांस्कृतिक विरासत को सबसे मजबूत करने का काम किया यहां के राजा चक्रधर सिंह ने। चक्रधर सिंह अच्छे तबला और सितार वादक होने के साथ तांडव नृत्य में भी निपुण थे। वर्ष 1924 में उनके गद्दी पर बैठने के साथ ही यहां कला की नई दुनिया का आगाज़ हुआ। उन्होंने कत्थक के लखनऊ और जयपुर घराने से जुड़े गुरूओं को रायगढ़ बुलाया। कत्थक की इन दोनों शैलियों के मेल से उन्होंने कत्थक की एक नई “रायगढ़ शैली” की शुरूआत की। राजा चक्रधर ने संगीत और काव्य पर बहुत से ग्रंथों की रचना की। उन्होंने कई बहुत से उपन्यास भी लिखे थे। उर्दू भाषा पर भी उनकी पकड़ बेहतरीन थी। उन्होंने फरहत के उपनाम से उर्दू भाषा में गज़लें लिखीं। उनका जन्म गणेश चतुर्थी के दिन हुआ था। उनके पिता ने उनके जन्म की खुशी में गणेश चतुर्थी के दिन शहर में उत्सव मनाना शुरू किया था। राजा चक्रधर की याद में 1985 से गणेश चुतुर्थी के अवसर पर यहां के राजघराने ने चक्रधर समारोह की शुरुआत की। इसमें देश के बड़े कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। बाद में साल 2001 में जिला प्रशासन ने उत्सव का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया तब से जिला प्रशासन इसे सफलतापूर्वक पूरा कर रहा है।
चक्रधर समारोह 2018
इस बार हुआ 34वां चक्रधर समारोह भी खास था। दस दिन तक चले इस उत्सव में देश के जाने माने संगीतकारों, नर्तकों, गायकों और कलाकारों ने हिस्सा लिया। यहां शास्त्रीय संगीत से लेकर गज़लों और आधुनिक म्यूज़िक बैंड्स ने भी अपनी कला का प्रदर्शन किया। एक छोटे से शहर में देश के नामचीन कलाकारों को बुलाना, उनकी व्यवस्था करना और सफल कार्यक्रम का आयोजन करवाना आसान काम नहीं हैं।
जिला प्रशासन पूरी मेहनत के साथ इस आयोजन का पूरा करवाता है। इसमें इसे स्थानीय लोगों का भी पूरा सहयोग मिलता है। कार्यक्रम में राजा चक्रधर के वंशज भी हिस्सा लेते हैं। शहर की प्रमुख इमारतों, चौराहों और कभी राजपरिवार का निवास स्थान रहे मोती महल को रोशनी से सजाया जाता है। यह गणेश चतुर्थी का समय होता है इसलिए शहर में सजे गणेश पंडालों में भी चहल-पहल होती है। मुझे दो दिन के लिए यह समारोह देखने का मौका मिला।
इस वर्ष के कार्यक्रम में छन्नूलाल मिश्रा, भजन सोपोरी, वारसी बंधु, रूपकुमार व सोनाली राठौर जैसे प्रख्यात कलाकारों ने हिस्सा लिया।
यहां होने वाली भारी भीड़ को देखकर मुझे ताज्जुब हो रहा था कि ऐसे छोटे शहर में शास्त्रीय संगीत के चाहने वालों की कोई कमी नहीं है। लोग देर रात कार्यक्रमों को देखने के लिए डटे रहते हैं।
छत्तीसगढ़ के लोक संगीत को मिलने वाला प्रोत्साहन चक्रधर संगीत समारोह की बड़ी खासियत है। इन वर्ष भी छत्तीसगढ़ के संगीत और गायन की बहुत सी प्रस्तुतियां यहां देखने को मिली। मुझे पंडवानी बेहद पसंद आई। पंडवानी को दुनिया भर में पहचान दिलवानी वाली तीजन बाई भी छत्तीसगढ़ से ही हैं। अब तीजन बाई के बाद राज्य की युवा पीढ़ी इस कला को आगे बढ़ाने के काम में लगी है।
पंडवानी एक एकल नाट्य कला है। इसमें पंडवानी जुड़ी है महाभारत के पांडवों से , इसलिए इसमें महाभारत की कथाओं का गायन किया जाता है। कलाकार की गायन शैली पंडवानी को खास बनाती है। कहानी के चरित्रों के हिसाब से चेहरे के हाव-भाव से लेकर आवाज़ में होने वाला उतार चढ़ाव अद्भुत लगता है। इस बार के चक्रधर समारोह में रश्नि वर्मा ने पंडवानी गायन किया।
रायगढ़ में क्या देखें
रायगढ़ में करीब दो दिन रूकना था और चक्रधर समारोह देर शाम ही शुरू होता था। इसलिए काफी समय था कि जिसमें आस-पास घूमा जा सकता था। छत्तीसगढ़ का यह इलाका पहाड़ों, नदियों, जंगलों और झरनों से भरा हुआ है। यहां देखने के लिए बहुत सी प्राकृतिक जगहें हैं जहां कुछ समय बिताया जा सकता है।