भूटान की पहचान – टाइगर नेस्ट – Trek to Tiger’s nest ( Taktsang) Monastery
टाइगर नेस्ट मठ आज पूरी दुनिया में भूटान की पहचान है। यह भूटान के सबसे पवित्र बौद्ध मठों में से एक है। इस बौद्ध मठ को तक्तसांग मठ ( Taktsang Monastery) भी कहा जाता है। पारो घाटी में एक ऊंची पहाड़ी चट्टान पर टंगा सा दिखाई देता यह मठ यहां आने की इच्छा रखने वालों को चुनौती सी देता लगता है। यह मठ करीब 3120 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाडी कगार पर बना है। पारो शहर से मठ की चढाई शुरू करने की जगह करीब 12 किलोमीटर दूर है। रास्ते में कुछ जगहों से टाइगर नेस्ट दिखाई देता है। सड़क से देखने पर पहाड की सीधी कगार पर टंगे मठ पर चढना अंसभव सा ही लगता है।
मैं और मेरे ट्रेवल ब्लागर दोस्तो ने टाइगर नेस्ट का सफर सुबह जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी शुरु करने का सोचा। सुबह जल्दी चढ़ाई करने पर सुबह की ठंडक और कम भीड के बीच आराम से चढाई कर सकते हैं। हम सब तैयार होकर करीब आठ बजे होटल से निकले। चढाई शुरू करने की जगह से करीब 8.30 बजे हमने मठ के लिए 5.5 किलोमीटर की चढ़ाई शुरू की। जहां से चढ़ाई शुरू होती है वह जगह घने जंगल के बीच है।
रास्ते से ठीक पहले एक पटरी बाजार है जहां से यादगार के तौर पर टाइगर नेस्ट से जुडी चीजों की खरीदारी की जा सकती है। इसी छोटे से बाजार से होकर हम आगे बढ़े। आगे बढ़ते ही चीड़ और दूसरे पहाडी पेडों का जंगल शुरू हो जाता है। घने और शांत जंगल के बीच थोड़ा सा आगे बढने के बाद पानी का एक झरना है जिस पर पानी मदद से घूमने वाले बौद्ध प्रार्थना चक्र बने हैं।
बौद्ध धर्म में पवित्र माने जाने वाले रंग बिरगी पताकाएं भी खूब दिखाई देती है। जंगल में रूककर थोडे फोटो लिए और आगे बढे। कुछ आगे बढने पर चढाई से सामना होता है। रास्ता कच्चा है और संभल कर आगे बढने में ही समझदारी है। लेकिन आराम से चलते रहे तो चढ़ाई का पता नहीं चलता। कई जगहों से पारो घाटी का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। आंखों से सामने पूरी पारो घाटी नजर आती है।
लगभग आधा सफर तय करने के बाद एक बडा प्रार्थना चक्र आता है। हम यहां कुछ देर रूके पीछे से आ रहे सब लोगो को साथ लिया और आगे बढे। यहां मुझे पानी पीने की खाली प्लास्टिक बोतलों से बने बहुत से प्रार्थना चक्र भी दिखाई दिए।
पर्यटकों की बढती तादात से पर्यावरण पर पडते प्रभाव को कुछ कम करने का यह अच्छा प्रयास है। अच्छी बात यह है कि पर्यावरण और स्थानीय संस्कृति पर पडने वाले प्रभाव को देखते हुए ही भूटान में बहुत देर से और धीर-धीरे देश के इलाकों को पर्यटकों के लिए खोला गया है। और आज भी इस देश में पर्यटक के तौर पर आने पर बहुत से नियम और कायदों का पालन करना पडता है।
इसी जगह के पास एक रेस्टोरेंट भी बना है जो मुख्य रास्ते से थोड़ा हट कर है। चाहें तो वहां आराम कर सकते हैं लेकिन अधिकतर पर्यटक मठ से वापसी के दौरान वहां खाना खाने के लिए रूकते हैं। हम भी सीधे आगे बढे और वापसी में रूकने का तय किया।
मठ से करीब एक किलोमीटर पहले एक व्यूपांइट आता है। यह जगह ऊंचाई में मठ के लगभग बराबर और उसके ठीक सामने हैं। इसलिए यहां से मठ की सबसे शानदार तस्वीरें ली जा सकती हैं। इसी वजह से इस जगह को व्यू पाइट कहते हैं। व्यूपांइंट पर हम सबने भी फोटो खिंचवाए। मठ के बहुत सारे फोटो लिए। सुनहरा छत से बना मठ बेहद शानदार लगता है। नीचे से जिस मठ तक पहुचना असंभव लग रहा था यहां पहुंच कर लगता है कि मंजिल पर पहुंच ही जाएंगे।
व्यूपाइंट के बाद मठ तक पहुंचने के लिए सीधे घाटी में उतराई शुरू होती है। यहां से उतरने के लिए सीढियां बनी हैं। सीढियों से उतरते ही एक बडा विशाल झरना है जिसे पुल से पार किया जाता है। इस झरने को पवित्र माना जाता है।
घाटी में उतरने के बाद मठ से पहुंचने के लिए करीब 150 सीढियां चढनी पडती हैं। इस तरह से करीब 750 सीढियों का सफर तय करके मठ तक पहुंचा जा सकता है।
मठ पर पहुंच कर अनोखी शांति का एहसास होता है बस झरने के पानी गिरने की आवाज सुनाई देती है। मठ के बाहर से खडे होकर फोटो लिए जा सकते हैं। मठ के अंदर कैमरा या मोबाइल ले जाना मना है। इसलिए यहां बाहर बने लॉकर में सब सामान रखा। लॉकर पर कोई देखभाल करने वाला या कोई ताला नहीं है अलमारी में बने छोटे – छोटे लॉकर हैं जिनमें सामान रखिए भगवान भरोसे सामान छोडिए और चले जाइए। शायद बौद्ध धर्म का असर है कि भूटान में अपराध बेहद कम होते हैं इसलिए मठ जैसी जगहों पर चोरी के बारे में किसी ने नहीं सोचा होगा। लेकिन बेहतर होगा कि आप एक छोटा ताला साथ ले जाएं और लॉकर पर लगा दें। मैं एक छोटा ताला अपने साथ रखता हूं तो यहां वह काम आया, सबका सामान लॉकर में रखा और बिना चिन्ता के मठ में चले गए।
पहाडी की कगार पर बना मठ कई हिस्सों में बना है। कगार से साथ ऊपर उठते कई मंदिरों का समूह है। यहां कुल चार मुख्य मंदिर हैं। इसमें सबसे प्रमुख भगवान पद्मसंभव का मंदिर है जहां उन्होंने तपस्या की थी। इस मठ के बनने की कहानी भी भगवान पद्मसंभव से ही जुडी है।
कैसे बना टाइगर नेस्ट
भूटान की लोककथाओं के अनुसार इसी मठ की जगह पर 8वीं सदी में भगवान पद्मंसभव ने तपस्या की थी। पहाडी की कगार पर बनी एक गुफा में रहने वाले राक्षस को मारने के लिए भगवान पद्मसंभव एक बाघिन पर बैठ तिब्बत से यहां उड़कर आए थे। यहां आने के बाद उन्होंने राक्षस को हराया और इसी गुफा में तीन साल, तीन महीने, तीन सप्ताह, तीन दिन और तीन घंटे तक तपस्या की । भगवान पद्मसंभव बाघिन पर बैठ कर यहां आए थे इसी कारण इस मठ को टाइगर नेस्ट भी बुलाया जाता है। भगवान पद्मसंभव को स्थानीय भाषा में गुरू रिम्पोचे की कहा जाता है।
यहां सबसे पहले वर्ष 1692 में मठ परिसर बनाया गया। उसके बाद समय – समय पर यहां निर्माण का काम होता रहा। कुछ वर्ष पहले 19 अप्रेल 1998 के दिन मठ में भयानक आग लगी जिसके बाद मठ का बडा हिस्सा नष्ट हो गया था। जिसके बाद इसे फिर से बनाया गया है।
मठ सभी मंदिरों को देखते हुए करीब 2 घंटे बिताने के बाद वापसी का सफर शुरू किया। कुछ देर में व्यूपांइट पर पहुंचे। इस समय तक दोपहर बाद का समय हो चुका था। इस समय सूरज मठ के सामने था इसलिए मठ के अच्छे फोटो आ रहे थे। दरअसल सूरज मठ के ठीक पीछे से ही निकलता है इसलिए सुबह के समय अच्छे फोटो लेना मुश्किल है, दोपहर बाद सूरज मठ के सामने आ जाता है जिससे व्यूपांइंट से मठ के अच्छे फोटो लिए जा सकते हैं।
वापसी में हम सब लोग खाना खाने के लिए आधे रास्ते में बने रेस्टोरेंट में रूके। रेस्टोरेंट से मठ का नजारे लेते हुए खाना खाने का आनंद लिया जा सकता है। यहां से भी मठ के अच्छे फोटो आते हैं कई लोग जो टाइगर नेस्ट तक नहीं जा पाते यहीं से फोटो लेकर वापस चले जाते हैं।
टाइगर नेस्ट के पूरे रास्ते में खाने की यही एक जगह है , 400 रूपये की एक थाली जिसमें भरपेट खा सकते हैं। खाना साधारण लेकिन बेहतर था। इतना थककर आने के बाद इस खाने की बहुत जरुरत पडती है।
भूटान की इस मामले में दाद देनी पडेगी कि पर्यटन के दबाव के बावजूद उन्होंने अपने नियमों से समझौता नहीं किया है। 5.5 किलोमीटर की चढाई के पूरे रास्ते में एक ही रेस्टोरेंट को इजाजत दी गई है। इसके उलट भारत में किसी भी धार्मिक जगह की चढाई पर चले जाइए पूरा रास्ता खाने पानी का दुकानों से भरा मिलेगा। जिसके कारण हर जगह गंदगी और प्लास्टिक नजर आती है।
एक बात और पता चली कि यहां के स्थानीय गाइड और लोग मिलकर अकसर रविवार के दिन चढाई के पूरे रास्ते की सफाई करते हैं। रास्ते में पडे कचरे और प्लास्टिक की बोतलों को एक जगह जमा करके नीचे लाया जाता है। पर्यावरण के महत्व को भूटान के लोगों ने अच्छे से समझा है। ये कुछ अच्छी बातें हैं जो भूटान से सीखी जा सकती हैं।
खाना खाने के बाद हमने भी थोडा तेजी से उतरना शुरू किया। शाम होने के साथ आसमान में बादल दिखाई देने लगे थे। बरसात होने पर परेशानी खड़ी हो सकती थी। एक बार हल्की बूंदा-बांदी तो जरूर मिली लेकिन तेज बरसात का सामना नहीं करना पडा। करीब 4 बजे तक हम नीचे आ चुके थे। नीचे बने पटरी बाजार से मठ की यादगार के तौर पर कुछ चीजें खरीदी और पारो के लिए निकल गए।
Note- मेरी भूटान यात्रा को ट्रेवल कंपनी भूटान बुकिंग ने प्रायोजित किया था।
My trip to Bhutan was sponsored by travel company Bhutan Bookings. For any booking you can contact them.
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10 thoughts on “भूटान की पहचान – टाइगर नेस्ट – Trek to Tiger’s nest ( Taktsang) Monastery”
आभासी तौर पर ही सही ये चढ़ाई आपके साथ हमने भी चढ़ ली।
भूटान का सफर जारी है.. आगे भी साथ चलिए..
Great Post with awesome real picture. Love it
Thank you..
Interesting read.. Loved your picturesque description of Tiger’s nest.
Thank you Shweta..
बहुत बढ़िया लिखा है. भूटान के सफर की यादे ताज़ा हो गई. ये मेरे जीवन के यादगार पलों में से एक था.
Wow… Nice article
I love taktsang…. I have been there soooo many times….