फुनशलिंग से थिम्पू की ओर…
फुनशलिंग में एक रात बिताने के बाद अगले दिन सुबह हम सभी थिम्पू के लिए निकले। फुनशलिंग से थिम्पू करीब 170 किलोमीटर दूर है और इसे तय करने में पांच से छ: घंटे लगते हैं । फुनशलिंग से पहाड़ों का असली सफर भी शुरू हो जाता है। फुनशलिंग से निकलते ही थिम्पू जाने वाले रास्ते से कुछ हट कर करबंदी बौद्ध मठ ( karbandi Monastry) बना है इसे रिचेनडिंग मठ (Richending Gompa) भी कहते हैं।
यह हमारी भूटान यात्रा का सबसे पहला मठ था। शहर से कुछ ऊंचाई पर बने इस मठ से फुनशलिंग , भारत के शहर जयगांव और बंगाल के नदियों से घिरे मैदानी इलाकों का जबरदस्त नजारा देखने को मिला। दूर- दूर तक बंगाल के हरे- भरे जंगल दिखाई दे रहे थे। हम शायद सही समय पर नहीं पहुंचे थे इसलिए यह मठ बंद मिला। लेकिन चारों तरफ दिखाई दे रहे दृश्यों ने मन मोह लिया। कुछ देर रूक कर फोटो लिए और थिम्पू के लिए रवाना हुए।
सफर पर आगे बढ़ने के साथ ही रास्ते के दृश्य भी बदलने लगे। ऊंचाई बढ़ने के साथ सड़क के दोनों तरफ पहाड़ी पेड़ पौधे नजर आने लगे। जंगल भी ज्यादा हरा और घना दिखाई दे रहा था। दूर-दूर जहां तक नजर जाए पहाड़ पेड़ों से भरे नजर आ रहे थे। भारत के पहाडी इलाकों में भी जंगल नजर आते हैं लेकिन इतने घने पहाड़ी जंगल मैंने इससे पहले केवल अरूणाचल प्रदेश में ही देखे थे। शायद हिमाचल या उत्तराखंड जैसे पहाडी राज्यों में आबादी का दबाव ज्यादा है जिसके कारण जंगल कम नजर आने लगे हैं। थिम्पू के आधे रास्ते पर चूखा नाम की जगह पड़ती है। चाय पीने का मन करने लगा तो सब लोग चूखा में ही रूके।
सड़क के किनारे के रेस्टोरेंट में चाय पीने पहुंचे तो पता चला की भूटान की नमकीन बटर चाय भी मिल जाएगी। तो बस बटर वाली चाय का ही आर्डर दे दिया। मक्खन वाली चाय जिसे लद्दाख में गुड़गुड़ चाय भी कहते हैं , ऊंचाई वाले सभी हिमालयी इलाकों में पी जाती है। इसे लकड़ी से बने एक खोखले बेलनाकार बरतन में चाय के उबले पानी, मक्खन और नमक डालकर बनाया जाता है। बरतन में सबकुछ डालने के बाद काफी देर तक उसे लकड़ी से हिला कर मिलाया जाता है जिससे गुड-गुड जैसी आवाज निकलती है। इसलिए इसे गुड-गुड चाय भी कहते हैं। ऊंचाई वाले इलाकों में सर्दी से बचने के लिए कैलोरी की काफी जरूरत होती है और मक्खन वाली चाय उस जरूरत को पूरा करती है।
चाय पीने के बाद बाहर आए तो सड़क से चूखा जलविद्युत परियोजना का कुछ हिस्सा दिखाई दिया। चूखा में वांग-चू (नदी) पर जलविद्युत परियोजना बनी है। भूटानी भाषा में नदी को चू(Chu) कहा जाता है। दूर से ही सही परियोजना के कुछ फोटो लिए। साथ में बताता चलूं कि 336 मेगावाट की चूखा जलविद्युत परियोजना भारत के सहयोग से ही बनाई गई है। यह भूटान की सबसे बड़ी और शुरूआती परियोजनाओं में से एक हैं।
भूटान इस मामले में खास है कि यहां बिजली का उत्पादन खपत से ज्यादा है। इसलिए बिजली की कटौती कहीं दिखाई नहीं देती। इसके साथ यही बिजली भूटान की कमाई का सबसे बड़ा जरिया भी है। भारत बड़े पैमाने पर भूटान से बिजली खरीदता है।
यहीं पहली बार समझ में आया की भूटान सिर्फ देखने में ही नहीं बल्कि काम करने के तरीकों में भी हमसे बेहतर है। सड़क के दूसरी और एक लंबा प्लेटफार्म बना था जिस पर भूटान की पारम्परिक स्थापत्य कला की याद दिलाती छत पडी थी। उस प्लेटफार्म पर कुछ स्थानीय महिलाएं छोटी सी दुकान लगाकर रोजमर्रा की जरूरत का सामान बेच रहीं थी। कुछ फल, सब्जियां, स्थानीय पनीर, और भूटान में सबका पसंदीदा सूखा चीज। सड़क के किनारे का यह बाजार भारत में जगह-जगह दिखाई देने वाले बेतरतीब ठेलों से कहीं अलग और खूबसूरत था। कल फुनशलिंग की शांति में मन मोह लिया था तो आज भूटान में लोगों के काम करने के तरीके ने।
चूखा में ही भारत सीमा सड़क संगठन का कैम्प भी था। फुनशलिंग से थिम्पू जाने वाले हाईवे का निर्माण और इसकी देखभाल भारतीय सीमा सड़क सगठन ही करता है। सडक काफी बेहतर बनी हुई थी। सिर्फ यही नहीं आगे भी हमें जो भी हाईवे भूटान में दिखाई दिए सभी का जिम्मा भारतीय सीमा सड़क संगठन के ही पास है। चूखा में समय बिताने के बाद हम थिम्पू के लिए निकल लिए।
दोपहर होते –होते गाड़ी थिम्पू पहुंची। थिम्पू छोटा शहर है। आबादी भी ज्यादा नहीं है। पहली ही नजर में शहर बहुत व्यवस्थित नजर आता है। साफ सुथरी सड़कें, सड़कों के किनारे बने खूबसूरत घर और दुकानें। हर तरफ एक व्यवस्था दिखाई देती है।
भूटान के कानून के अनुसार इमारत को बाहर से भूटानी स्थापत्य के हिसाब से ही बनाना पड़ता है। इसलिए रंगबिरंगी इमारतें बहुत सुन्दर दिखाई देती हैं। भूटान भूकम्प के लिहाज से बेहद संवेदनशील है इसलिए भूकम्प को लेकर यहां कड़े कानूनों का पालन किया जाता है। कोई भी इमारत पांच मंजिल से ऊंची नहीं हो सकती। इसके साथ ही इमारत का भूकम्परोधी तकनीक से बना होना जरूरी है। इसकी मंजूरी के बिना आप इमारत बना ही नहीं सकते।
थिम्पू पहुंचते – पहुंचते दोपहर हो चुकी थी। तो पहले होटल ताज ताशी पहुंचे। भूटान के जोंग ( किला) के नमूने पर इस होटल को बनाया गया है। होटल में खाना खाने के बाद थिम्पू को देखने का सफर शुरू हुआ।
सबसे पहले थिम्पू के मोटीथांग टाकिन संरक्षण केन्द्र (Motithang Takin Preserve) में पहुंचे। थिम्पू आने से पहले तक मैंने टाकिन(Takin) नाम के जानवर के बारे में सुना ही नहीं था। जानकर चौंक गया कि टाकिन भूटान का राष्ट्रीय पशु है। कुछ-कुछ गाय जैसा दिखाई देने वाले टाकिन बेहद सुस्त जीव होता है। भारी – भरकम टाकिन गाय और बकरे का मिलाजुला रूप लगता है। इसी वजह से टाकिन को लेकर कई किवदंतियां भी प्रचलित हैं।
भूटान की लोककथा है कि टाकिन को तिब्बत से आए एक संत द्रुपका कुनले ने उत्पन्न किया था। उन्होंने एक बकरे के सिर को गाय की हड्डियों से जोड़ दिया जिससे टाकिन की उत्पत्ति हुई। इसी महत्व को देखते हुए टाकिन को भूटान का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया।
टाकिन को देखने के बाद अगली जगह थी शाक्यमुनी बुद्ध की मूर्ति। हाल ही में थिम्पू शहर की ऊंची पहाड़ी पर भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा बनाई गई है। प्रतिमा 51.5 मीटर ऊंची है और विश्व की सबसे ऊंची बुद्ध प्रतिमाओं में से एक है। अभी भी उस जगह को बनाने का काम चल ही रहा है। ऊंचाई पर होने के कारण यहां से पूरे थिम्पू शहर का शानदार नजारा दिखाई देता है। सिर्फ थिम्पू ही नहीं पिछले कुछ वर्षों में विशाल बुद्ध मूर्तियां भारत के लद्दाख और स्पिति में भी बनाई गई हैं। अंधेरा होने लगा था इसलिए आज का सफर यहीं खत्म करके वापस होटल पहुंच गए। होटल में कुछ देर आराम के बाद थिम्पू की नाइट लाइफ को देखने के लिए निकलना था। थिम्पू की नाइट लाइफ सुनकर आप चौंक गए होंगें। तो अगले पोस्ट में बात थिम्पू की रात की चमचमाती जिंदगी पर…..
कैसे पहुंचें- फुनशलिंग से थिम्पू के लिए आसानी से टैक्सी मिल जाती है।
भूटान की बस सेवा से भी थिम्पू पहुंचा जा सकता है। फुनशलिंग बस अड्डे से थिम्पू के लिए बस मिल जाती हैं। किराया करीब 230 रूपये। भूटान में बस सेवा निजी हाथों में हैं और कई कम्पनियां बसों को चलाती हैं। बसों के रूप में टोयाटा की छोटी कोस्टर बसों का इस्तेमाल किया जाता है। जो आरामदायक भी हैं।
नोट – भूटान की यह यात्रा भूटान बुकिंग की तरफ से प्रायोजित की गई थी।
4 thoughts on “फुनशलिंग से थिम्पू की ओर…”
आपके लेख को पढ़ने के साथ उसकी कल्पना करना भी आसान हो जाता है ।
मनमोहक
बहुत बहुत धन्यवाद
भूटान की बढ़िया बात ये है कि जितना सुंदर देश है उतने ही सुंदर उसके रास्ते हैं. यहाँ मंज़िल और रास्ते एक समान प्रभाव छोड़ते हैं.
Apne gade lay kar ja saktay hai