गुनेहड़ की वो शाम
गुनेहड़ में शाम होने वाली है। आसमान में बादल छाए हैं। हिमाचल के इस पहाड़ी गांव के लिए आज की शाम कुछ अलग होने वाली है। गांव के चौक में आज काफी हलचल है। चौक क्या , एक छोटा सा खुला चौकोर हिस्सा है जिसके चारों तरफ कुछ 5-7 दुकानें बनी हैं। यही गांव का बाज़ार भी है। चौक में एक तरफ मंच तैयार किया जा रहा है। मंच के पास ही एक घर के बाहरी अहाते में फैशन शो की तैयारियां चल रही हैं। गांव की लड़कियां रैंप पर चलने का अभ्यास कर रही हैं। लाइटें लग चुकी है, साउंट सिस्टम को दुरूस्त किया जा रहा है। पूरे दिन बरसात होने के बाद फिलहाल बारिश रुकी हुई है लेकिन आसमान बादलों से भरा पड़ा है। आधा जून बीत चुका है तो इस इलाके में मानसूनी बारिश कभी भी आ सकती है। लग रहा है कि बादल भी गुनहेड़ की माहौल का जायज़ा ले रहे हैं। चौक में लोगों का जुटना भी शुरू हो गया है। पूरे गांव की महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग अपनी जगह पर बैठ गए हैं। सिर्फ गुनेहड ही नहीं आस पास के दूसरे इलाकों से भी लोग यहां आए हैं। कुछ पर्यटक भी अपनी सीट पर बैठे दिखाई दे रहे हैं।
दरअसल यह सब गुनहेड़ में होने वाले फ्रेंक के मेले के आखिर दिन की तैयारियां हैं। गुनहेड में होनें वाले शॉपआर्ट आर्टशॉप (ShopArt ArtShop) फेस्टिवल को गांव वाले फ्रेंक वाला मेला ही कहते हैं। क्योंकि इसे करवाने वाले हैं जर्मनी से गुनहेड़ आकर बसे फ्रेंक।
फ्रेंक और उनके मेले में जानने के लिए मेरा पुराना लेख पढें।
फ्रेंक मेले की आखिरी तैयारियों में व्यस्त दिखाई देते हैं। अंधेरा होते होते पूरा चौक लोगों से खचाखच भर जाता है। दुकानों के बाहर, छतों पर , जमीन पर , जिसको जहां जगह मिली वहीं जम गया है।
मेले की शुरूआत होती है स्थानीय गद्दी और बड़ा भंगाली समुदाय के कपडों से जुडें फैशन शो से। इस फैशन शो को दिल्ली की फैशन डिजाइनर रेमा कुमार ने तैयार किया है। लेकिन खास बात यह है कि फैशन शो के रैंप पर चलने वाली सब लड़कियां इसी गांव की रहने वाली हैं। लड़कियां पारंपरिक गद्दी और बड़ा भंगाली कपड़ों से सजी हैं। मंच पर उनके आते ही तालियों से उनका स्वागत किया जाता है। लड़कियां गांव वालों के सामने फैशन शो कर रही हैं और गांव के लोग दिल से उनका स्वागत कर रहे हैं। साफ दिखाई देता है कि गुनेहड़ में यह मेला एक बदलाव ला रहा है। गांव के साथ जुडकर कला को आगे ले जाने की फ्रेकं की सोच की यहां साकार होती नजर आती है।
इसी फैशन शो के बाद मलेशिया से आए फिल्म निर्देशक के.एम.लो की फिल्म दिखाई गई। के.एम. दुनिया भर में टुकटुक सिनेमा के नाम से स्थानीय लोगों के साथ मिलकर फिल्म बनाने का प्रयोग करते हैं। इस बार के मेले में उन्होंने गांव के बच्चों को लेकर एलियन और पृथ्वी पर होने वाले उनके हमले को लेकर फिल्म तैयार है। गांव के हर बच्चे ने इसमें कुछ ना कुछ पात्र जरूर निभाया है। फिल्म से दिखाने से पहले के.एम. मंच पर आते हैं और उन्हें देखकर सबसे ज्यादा खुशी बच्चों को ही होती है।
इसके बाद दिखाई जाती है अमित वत्स की 3मिनट फिल्में। अमित ने पिछले एक महीने में गांव के रहने वालें तीन लोगों की जिंदगी पर 3 मिनट की तीन फिल्में तैयार की हैं। अमित अलग-अलग इलाकों में जाकर आम लोगों के विषयों से जुडी फिल्में छोटी फिल्में बनाते हैं।
गांव के इस चौक की हर दुकान कांगड़ा की पारम्परिक चित्रकारी से सजी है। पूरा चौक अपने आप में एक कला दीर्घा नजर आता है। दीवारों पर सजे इन खूबसूरत चित्रों को गार्गी चंदोला ने स्थानीय कांगडा चित्रकारों की टीम के साथ मिल कर तैयार किया है।
इसी चौक में गुनहेड़ पॉप नाम की एक दुकान भी खुली है जिसमें भड़कीले रंगों में चित्र सजे नजर आ रहे हैं। लंदन में स्टूडियो चलाने वाली केतना पटेल ने इसे तैयार किया है। इस बार फ्रेंक के साथ मेला आयोजित करने में केतना की भी भूमिका रही है। केतना के इस काम को गांव वालो ने इतना पसंद किया कि उन्होंने भी जी भर के पॉप आर्ट में अपना योगदान किया।
इस बीच चौक में चल रहे रंगारंग कार्यक्रम में भी जोश बढ़ गया है। अब लोगों के बीच गुनेहड़ के स्थानीय गायकों की टोली अपनी गीत गा रही है और लोग उनका साथ देने के लिए नाचने लगे हैं। बीच- बीच में बारिश की भी फुहारें पड़ने लगती हैं। बारिश तेज होने लगती है लेकिन फिर भी सब लोग अपनी जगहों पर जमें हैं किसी तरह की अफरा-तफरी नहीं। बारिश के बीच ही इलाके के एक और प्रसिद्ध गायक मंच पर आते हैं भगवान शिव का एक भजन गाते हैं और आश्चर्यजनक रूप से बारिश थम जाती है। माहौल में और भी उत्साह आ जाता है। एक के बाद एक गानों का दौर जारी है।
इसी चौक के कुछ दूरी पर दिल्ली के कलाकार पुनीत कौशिक का ग्लास आर्ट है जो रात की रोशनी में खूबसूरत दिखाई दे रहा है। यहां एक दुकान जयपुर से आई नीरजा और स्प्रिहा ने भी लगाई हैं। नीरजा रद्दी कागज के इस्तेमाल से कपड़ा बनती हैं। उसी कपड़े से बनी चीजों को उन्होंने अपनी दुकान में सजाया था। कागज के कपड़े से बनी दरियां, बैग और दूसरे सजावटी सामान । और आखिर में हैं टेरिकोटा आर्टिस्ट मुदिता की टेरिकोटा से बनी कलाकृतियां।
अलग- अलग तरह के कलाकारों को एक जगह लाकर किसी गांव के बीचों बीच कला के प्रदर्शन का यह एक अनूठा प्रयोग है। शॉपआर्ट आर्टशॉप (ShopArt ArtShop) का यह दूसरा आयोजन है इससे पहले 2013 में फ्रेंक ने इसे पहली बार आयोजित किया था। फ्रेंक का मकसद कला को आम लोगों के जीवन के साथ जोड़ने के साथ ही गांव के विकास में उसका इस्तेमाल करना था। धीरे-धीरे फ्रेंक अपने सपने को पूरा करने के करीब जा रहे हैं।
रात के गहराने के साथ ही कार्यक्रम को खत्म करने का समय हो जाता है। रात 10 बजे के बाद कार्यक्रम की इजाजत नहीं है। लेकिन नाच गाने के दौर के बीच कोई हटने के तैयार नहीं हैं। आखिरकार फ्रेंक किसी तरह गायकों को मंच से हटाकर कार्यक्रम को बंद करवाते हैं। मैं मंच के नीचे ही खड़ा था तो मुझसे मिलते हैं। मिलने पर फ्रेंक यह नहीं पूछते कि कार्यक्रम कैसा रहा ? शायद प्रशंसा लेना उनके स्वभाव में नहीं है। मुझे देखते ही फ्रेंक का पहला वाक्य होता है कि काश यह गांव ऐसा ही बना रहे , दूसरे कस्बों की तरह यहां भी हर घर में गाड़ियों का जमघट ना लगे। दरअसल गांव में मेला देखने के लिए इतने लोग आ गए थे कि गांव में पहली बार जाम जैसी स्थिति बन गई थी।
एक दिन बाद में फ्रेंक से विदा लेने के लिए मिलता हूं। मैंने पूछा, “तो अगला मेला कब होने जा रहा है?”
फ्रेंक का जवाब, “अभी तो मुझे कुछ दिनों तक खूब सोना है।”
फ्रेंक भले ही जवाब ना दें लेकिन पक्का है कि उनकी आंखों में अगले शॉपआर्ट आर्टशॉप (ShopArt ArtShop)के सपने ने आकार लेना शुरू कर दिया होगा।
2 thoughts on “गुनेहड़ की वो शाम”
Behtareen lekhaan!
धन्यवाद राजीव..