भूटान के रास्ते पर…
बौद्ध धर्म से जुड़ी तीन जगहों ने बचपन से मेरा ध्यान खींचा है। एक अनोखी दुनिया जिनके साथ रहस्य, कहानियां और अनेक किवदंतियां जुडी हैं। जहां मठों में बौद्ध भिक्षु रहते है, असीम शक्तियों के साथ। कोई उड़ सकता है कोई पानी पर चल सकता है तो कोई पल झपकते गायब हो सकता है। ऐसी कहानियों से एक रहस्य भरी दुनिया का खाका बचपन से ही मेरे दिमाग में बन गया था।
इन तीन जगहों में से एक था लद्दाख, दूसरा तिब्बत और तीसरा था भूटान। दुनिया बदल गई। मैं भी बचपन से बाहर आ गया लेकिन इन जगहों के लिए दीवानापन बना रहा। कुछ साल पहले लद्दाख जाने का सपना तो पूरा हुआ, दिमाग में बने कुछ पुराने खाके मिटे तो कुछ नए बने। तिब्बत जाना अभी दूर है शायद एक दिन पूरा होगा । इसी बीच भूटान जाने का मौका मिल गया। मेरा दिल खुशी से भरा था क्योंकि सपने के एक और हिस्से को पूरा करने और देखने का मौका मिल रहा था। कई दिन पहले से भूटान की तैयारियां शुरू हुई। आखिरकार दिल्ली से हवाई जहाज में बैठ 4 ब्लॉगर साथियों के साथ भूटान के सफर पर निकल गया । पहले दिल्ली से पश्चिम बंगाल के शहर बागडोगरा तक हवाई जहाज और फिर वहां से सड़क के जरिए भूटान जाना था। मैं इस इलाके में पहले कभी नहीं गया था इसलिए उत्साह ज्यादा था।
सुना था कि भूटान बहुत रोमांचक होगा लेकिन मेरे सफर का रोमांच तो हवाई जहाज में ही शुरू हो गया। मानसून के इन दिनों में पूर्वी भारत के ऊपर उड़ान भर रहा हमारा हवाईजहाज घने बरसते बादलों के दबाव में कई जगह हिचकोले खा रहा था। बागडोगरा उतरने से कुछ पहले तो यह हालत थी कि पिछली सीट पर बैठे एक महाशय बाकायदा जोर-जोर से भगवान को याद कर रहे थे और उनके साथ आए सज्जन दिलासा दे रहे थे कि मैं हूं ना साथ कुछ नहीं होगा। मैंने मन ही मन सोचा कि भईए कुछ होगा तो तुम ही कौनसा बचा लोगे । सुपरमैन तो बन नहीं जाओगे। खैर कुछ मिनट तक यह दौर चला और उसके बाद हम सही सलामत बागडोगरा उतर गए। पर आगे के लिए सावधानी रखने का सबक भी मिला, साफ था कि भूटान में बरसात का ज्यादा जोर झेलने के लिए तैयार रहना होगा।
करीब दो घंटे की उड़ान के बाद मैं दोपहर करीब 12.20 बजे बागडोगरा पहुंचा । बागडोगरा छोटा सा हवाई अड्डा है। वायु सेना इसे अपने लिए इस्तेमाल करती है और यहां से सामान्य हवाईसेवा भी चलती है। बागडोगरा के हवाई अड्डे से एक के बाद एक उड़ते दिखाई देते हेलिकॉप्टरों को देखकर यह बात साफ थी कि यह वायुसेना के लिए यह हवाईअड्डा बेहद अहम है। ऐसा होना जरूरी भी है क्योंकि बागडोगरा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और चीन इन चार देशों की सीमा के पास है।
हवाईअड्डे से बाहर निकलने में ज्यादा देर नहीं लगी। बाहर भूटान बुकिंग की तरफ से दीपांजन हम लोगों को लेने के लिए कलकत्ता से आए थे। और आगे भूटान के पूरे सफर में दीपांजन हमारे साथ ही रहने वाले थे। यहां आप को बता दूं कि मेरे को मिलाकर कुल पांच ट्रैवल ब्लॉगर भूटान बुकिंग नाम की ट्रेवल कंपनी के निमंत्रण पर भूटान जा रहे थे। भूटानबुकिंग भूटान के कुछ अनछुए हिस्सों से हमारा परिचय करवाना चाहती थी।
बागडोगरा से निकल कर मुझे वहां से भारत और भूटान की सीमा पर पहले भूटान के शहर फुनशलिंग पहुंचना था। आज रात को फुनशलिंग में ही रूककर अगले दिन भूटान की राजधानी थिम्पू जाना था। बागडोगरा से फुनशलिंग करीब 170 किलोमीटर दूर है। सड़क के रास्ते भारत से भूटान जाने वालों के लिए सबसे आम रास्ता यही है। भारत के निवासियों को भूटान जाने के लिए किसी तरह के वीजा की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन आपको एक परमिट जरूर बनवाना होता है। अगर आपने पहले से परमिट नहीं बनवाया है तो यह काम फुनशलिंग पहुंच कर किया जा सकता है।
बागडोगरा हवाईअड्डे से बाहर निकल कर हम दोपहर का खाना खाने के लिए एक छोटे से रेस्टोरेंट में रूके। यहां पूरी तरह उत्तर भारत का पंजाबी स्टाइल खाना मिल गया । दीपांजन ने पहले ही बता दिया कि आज जी भर कर खा लीजिए कल से उत्तर भारत का दिल्ली वाला पंजाबी स्वाद वाला खाना नहीं मिलेगा। अगले दिन से हमें भूटान के खाने की आदत डालनी थी। रेस्टोरेंट का खाना काफी अच्छा था। खाना खाने के बाद हम लोग चल पड़े ।
पश्चिम बंगाल के इस इलाके को द्वार या डूअर्स के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल भूटान ,सिक्किम और दार्जिलिंग जैसे ऊंचे पहाड़ी जगहों तक जाने का रास्ते यहीं से होकर जाता है इसलिए इसे द्वार (दरवाजा) कहा जाने लगा शायद अंग्रेजों के आने के बाद द्वार से डोर (Door) और आखिर में डूअर्स(Dooars) हो गया। दार्जिलिंग से लगता डूअर्स का इलाका अपने चाय बागानों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
रास्ते के दोनों तरफ बड़े-बड़े चाय बागान दिखाई देते हैं। उन काम करते लोग तन्मयता से चाय की पत्तियां तोड़ते नजर आ रहे थे। चाय के बागान, हरे- भरे जंगल और नदियों से भरे डूअर्स के इलाके को पर्यटकों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार भी भरपूर कोशिश कर रही है। मैं यहां रूक तो नहीं पाया लेकिन इस इलाके में फिर से आने का पक्का इरादा बन गया । बारिश इस इलाके में बहुत होती है और शायद पानी का जमाव भी। इसलिए अधिकर घरों को जमीन से कुछ फीट ऊंचा उठाकर बनाया गया था। कंक्रीट के बने मकान पक्के खंभों पर बने थे तो बांस के बने घरों को बांस की ही बल्लियों पर बनाया गया था।
पूरा रास्ता बेहद हरा-भरा और नदी नालों से घिरा है। इस खूबसूरत रास्ते पर चलने में मजा आ रहा था। रास्ते में कई जगह घने जंगल भी पड़े। जलदापाड़ा राष्ट्रीय उद्यान भी इसी रास्ते में पड़ता है । इस उद्यान में हाथी और गैंड़े देखे जा सकते हैं। पश्चिम बंगाल के किसी इलाके में भी गैंड़े मिलते हैं यह जलदापाड़ा से गुजरने के दौरान ही पता चला । यह भी जानकारी मिली कि जिस हाइवे पर हम जा रहे हैं उस पर हाथियों की अकसर आवाजाही होती रहती है। थोड़ी देर में बादल छा गए और तेज बरसात भी होने लगी। अब तो रास्ते का मजा और भी बढ़ गया।
दार्जिलिंग जिले से गुजरते हुए तीस्ता नदी पर बने कॉरोनेशन ब्रिज को पार करना पडता है। इस पुल से पूरे वेग से बहती हुई तीस्ता नदी का शानदार नजारा दिखाई देता है। यहीं से एक रास्ता गंगटोक ( सिक्किम) के लिए निकल जाता है। अगर समय हो तो कुछ देर रुक पुल के पास रूका जा सकता है। 1941 में बना यह पुल इंजीनियरिंग का भी बेहतरीन नमूना है।
बारिश के बीच मौसम का मजा उठाते हुए अंधेरा होते-होते जयगांव पहुंचा। जयगांव भूटान की सीमा पर आखिरी भारतीय शहर है। हलचल शोर शराबे और ट्रैफिक जाम से भरा जयगांव भी किसी दूसरे भारतीय शहर की तरह ही था। ट्रैफिक जाम में घिसटते , फिसलते जयगांव से लगी भूटान की सीमा पर पहुंचा। दो देशों के बीच सीमा रेखा की जैसी तस्वीरें अब तक देखी थी उन सबसे बिल्कुल उलट थी यह सीमा। ना तो हथियारबंद जवान दिखाई देंगे, ना भयानक सुरक्षा के तामझाम और तो और कंटील तारों की बाड़ भी नहीं मिलेगी। बस अपनी गाड़ी को भूटान की सीमा पर लगे गेट तक ले जाइए। वहां खड़ा भूटान पुलिस का जवान पूछेगा कि कहां जाना है उसे बताइए और भूटान में दाखिल हो जाइए। तो इसी तरह मेरी गाड़ी भी भूटान में दाखिल हो गई। भूटान में दाखिल क्या हुए एकदम से सब कुछ जैसे शांत हो गया। अभी दो मिनट पहले मैं जयगांव में था शोरशराबे , भीड़ भरी सड़कें और ट्रैफिक जाम देख रहा था और अब ना तो भीड़ थी और ना ही शोरशराब और ट्रेफिक जाम उसे तो भूल ही जाइए। अब तो अगले 10 दिन ट्रैफिक जाम क्या होता है इसका पता भी नहीं चलना था।
एक पल में जैसे दुनिया बदल गई थी। भूटान की संस्कृति से हिसाब से सजी दूकानें और घर। सब कुछ व्यवस्थित। सड़क पर शांति से चलती गाडियां। जी हां भूटान में गाडियों के हॉर्न का इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर ही किया जाता है। शहरों में चलते समय शायद ही कभी हॉर्न सुनाई देगा।
मन ही मन मैं सोच रहा था कि दो करीबी देश लेकिन कितना कितना गहरा अंतर। एक तरफ अव्यवस्था हावी थी तो दूसरी तरफ सब कुछ व्यवस्थित सजा संवरा। रात को यहीं एक होटल में रूकना था। होटल के बाहर करमा हमारा इंतजार कर रहे थे। करमा से परिचय बहुत जरुरी था क्योंकि करमा अगले दस दिनों तक भूटान में गाइड के तौर पर साथ रहने वाले थे। भूटान के बारे में सारे प्रश्नों को जवाब करमा से ही मिलना था। करमा से मुलाकात हुई। करमा ने पारंपरिक सफेद कपड़े के दुप्पटा पहना कर सभी लोगों का स्वागत किया।
आज खाना खाने के बाद जल्दी ही सोना था क्योंकि कल सुबह जल्दी ही थिम्पु के लिए निकलना था। होटल में रात को खाना तो भारतीय ही था लेकिन इमादाशी नाम की भूटान डिश भी खाने के साथ मिली। स्थानीय चीज़ में भूटान की मिर्चों को मिलाकर यह सब्जी बनती है । खाने में इमादाशी स्वादिष्ट तो थी लेकिन उतनी ही तीखी भी। पहले ही दिन भूटान के खाने का स्वाद चखकर अच्छा लगा। एक तरह से इमाताशी भूटान का राष्ट्रीय व्यंजन ही है।
तो इस तरह पहला दिन पूरा हुआ। अगले दिन से असली सफर शुरू करना था।
अगले पोस्ट में फुंशलिंग से थिम्पू का सफर होगा और थिम्पू में बिताए पहले दिन की कुछ बाते होंगी।
कैसे पहुंचें-
1- बागडोगरा हवाईअड्डे से फुनशलिंग के लिए प्री-पेड टैक्सी ली जा सकती है। इंडिका का किराया करीब 2800 रूपये होगा।
2- बागडोगरा हवाईअड्डे से सिलीगुडी के लिए टैक्सी ले सकते हैं, किराया करीब 400 रूपये। फिर सिलीगुडी बस अड्डे से फुनशलिंग के लिए बस ली जा सकती है। बस करीब 6 घंटे लेगी।
नोट – भूटान की यह यात्रा भूटान बुकिंग की तरफ से प्रायोजित की गई थी।
10 thoughts on “भूटान के रास्ते पर…”
बहुत सूंदर, एक अलग ही दुनिया है भूटान. शायद अपने जैसा ये अकेला देश है विश्व में.
भूटान का आपका वर्णन रोचक है पर अगली पोस्ट का इंतजार लंबा है शायद फल भी मीठी ही होगा
धन्यवाद , अगली पोस्ट जल्दी ही लिखने वाला हूँ।
वाह, भूटान के बारे में पहली बार पढ़ा इस तरह से, मजा आ गया।
धन्यवाद..
Very nice butan
मुझे भूटान के बारे मे जानकारी देने के लिये आप का धन्यवाद.
क्या पासपोर्ट भी लगता हैं?….
किया बाइक लेके जा सकते हैं
बिल्कुल जा सकते हैं…
शानदार….. मैं भूटान जाने के लिए उत्सुक हूं।
आपकी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।