छोटा कैलाश- ट्रैकिंग का रोमांच-६
चार जून- चढाई का चौथा दिन
चार जून- चढाई का चौथा दिन
चार तारीख को हमें नबीढांग जाना था। नबीढांग वो जगह थी जहां से हमें हमारी यात्रा के पहले दर्शन होने थे। नबीढांग में हमें ऊँ पर्वत के दर्शन करने थे। गुंजी से नबीढांग करीब अठारह किलोमीटर का सफर है। गुंजी से नौ किलोमीटर दूर कालापानी तक का सफर आसान है और काली नदी के किनारे लगभग सपाट रास्ते पर ही चलता है। इसलिए इस रास्ते पर ज्यादा थकान महसूस नहीं होती। ये रास्ता जल्दी ही पूरा हो जाता है। इसलिए यात्रा मे पहली बार हम सुबह को आराम से उठे।
गुजी मे सुबह का नजारा बेहद जबरदस्त था। कैम्प के सामने ही बर्फीले पहाडो का नजारा देखने के लायक था। हमने खूब सारे फोटो लिए। फिर नाश्ता करके सब साढे आठ बजे नबीढांग के लिए चल पडे। एक तो आसान रास्ता और दूसरा इतने दिन तक चलने की आदत के कारण हम तेजी से चल रहे थे। रास्ता बेहद खूबसूरत था। चारो और घना जंगल था जिसमे हम तेजी से चले जा रहे थे। साथ बहती काली नदी भी माहौल के शानदार बनाये रखती है। अब काली नदी अपना भयावह रुप छोड कर शान्त हो चुकी थी। हालांकि बहाव अब भी तेज था लेकिन ये उतना खतरनाक नही था जितना गुजी से पहले के रास्ते पर था। हम कालापानी के लिए बढ रहे थे। गुजी से कालापानी का नौ किलोमीटर की दूरी तय करने में हमें बस तीन घंटे ही लगे।
कालापानी दरअसल काली नदी का उद्गम स्थान है। काली नदी के निकलने की जगह पर काली मां का मंदिर बना हुआ है। यहां भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस का बडा कैम्प है। ये लोग ही मंदिर की देखभाल भी करते हैं। यहां हमने मंदिर के दर्शन किये।
मां काली की मूर्ति के नीचे से ही नदी का उद्गम माना जाता है। यहा से निकलने वाले पानी को यात्री घर भी ले जाते है। ये पानी इतना मीठा है कि लगता है जैसे किसी ने चीनी मिला दी है। मंदिर से आगे ही कुमांऊँ पर्यटन का कैम्प है जहा पर हमारे दोपहर के खाने का इंतजाम था।
कालापानी मे ही हमे नाग नागिन पर्वत दिखाई देते है। इस पर्वत की ऊँचाई ऊँ पर्वत के बराबर ही है। ऐसा माना जाता है कि अगर आप को ये पर्वत साफ दिखाई दे रहा है तो आगे ऊँ पर्वत के दर्शन भी आसानी से हो जायेगें।
ऊँ पर्वत के दर्शन आसानी से नही होते और ज्यादातर समय ये बादलो से घिरा रहता है। आज हमे नाग नागिन पर्वत साफ दिखाई दे रहा था इसलिए कैम्प के लोगो ने बताया कि आप को ऊँ पर्वत के दर्शन भी हो जायेंगे
खैर थो़डे आराम और खाना खाने के बाद हम चल दिये नबीढांग के लिए जो कालापानी से नौ किलोमीटर दूर है। यहा से रास्ता कठिन है क्योकि नबीढांग काफी ऊचाई पर हो है हमे भी अब ऊचाई के लिए बढना था। ये रास्ता घास के खूबसूरत मैदानो से होकर जाता है। यहां पर ऊँचाई के कारण पेड पौधे साथ छोड देते है। सिर्फ घास और छोटी झाडियां ही दिखाई देती है। पहाड भी बिल्कुल नंगे हो जाते है। हल्की धूप होने के बावजूद अब हवा मे ठंडक होने लगी थी। इस इलाके मे हमेशा ही ठंडी और तेज हवाये चलती रहती है जिनसे बचना जरुरी है नही तो बीमार होने का खतरा बना रहता है।
नबीढांग से दो किलोमीटर पहले ही वो जगह आती है जहां से ऊँ पर्वत के पहले दर्शन होते है। नीचे कैम्प के लोगों की बात सही थी ऊँ पर्वत बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था। मै तो इसे देखता ही रह गया। ऊँ पर्वत को एक बार देखा तो आखे हटाने का मन ही नही कर रहा था। जिस के दर्शन के लिए हम इतने दिन से चल रहे थे वो विशाल पर्वत अपने पूरे रुप मे मेरे सामने था। विग्यान भले ही कुछ भी कहे कि ये पर्वत एक भौगोलिक रचना है। लेकिन मुझे तो आध्यात्मिक अनुभव हो रहा था। ऐसा लगता था कि जैसे सचमुच ही भगवान मेरे सामने खडे है।
कुछ देर बाद मै हमारे कुमाऊँ पर्यटन के कैम्प के लिए चल दिया। शाम के चार बजे हम लोग नबीढांग पहुचे। कैम्प के लोगो मे भोल शंकर के जयघोष के साथ हमारा स्वागत किया। नबीढांग का ये कैम्प तेरह हजार फीट से भी ज्यादा की ऊँचाई पर बना है। इसलिए पहली बार हमे यहा फाईबर ग्लास के बने हट मे रहना था। इतनी ऊँचाई पर भी ये हट काफी गर्म बने रहते है।
सुबह उठे तो मौसम खुला था। हमे ऊँ पर्वत फिर से साफ दिखाई दे रहा था। नबीढांग कैलाश मानसरोवर की यात्रा मे भारत की तरफ आखिरी पडाव है। यहा से यात्री आठ किलोमीटर दूर लिपूलेख दर्रे तक जाते है। लिपूलेख के बाद ही सब चीन की सीमा शुरु हो जाती है। हमारे कैम्प से लिपूलेख का रास्ता साफ दिखाई दे रहा था। सुबह कुछ फोटो और लेने और नाश्ता करने के बाद हम वापस चल दिये गुजी के लिए।
हमारे यात्रा कार्यक्रम के हिसाब से हमे आज कालापानी रुकना था लेकिन कैलाश मानसरोवर के पहले यात्रा दल आने का कारण कुछ बदलाव किया गया। हमे अब सीधे ही गुजी जाना था। सुबह आठ बजे यात्रा शुरु करके रास्ते मे कालापानी रुकते हुए हम शाम चार बजे तक गुंजी पहुच गये। अगले दिन आदि कैलाश के लिए सफर शुरु करना था।
13 thoughts on “छोटा कैलाश- ट्रैकिंग का रोमांच-६”
बेहतरीन वृतांत और उम्दा तस्वीरें.
अभी तक के वृत्तान्तों मे आज का वृत्तान्त सबसे रोमांचकारी लगा.
पहले ही पता चल जाता है कि ॐ पर्वत के दर्शन होंगे. बस तो जी, हम तो जब भी जायेंगे पहले कालापानी मे ही रुके रहेंगे,जिस दिन भी नाग नागिन पर्वत दिखेंगे उसी दिन ॐ पर्वत के लिये चल पडेंगे.
आप सचमुच भाग्यशाली हैं जी
प्रणाम
अच्छा लग रहा है आपका ये सफ़र.. पहाड़ों पर मौसम अगर साफ हो तो खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है।
हिन्दी में इतना बढ़िया वर्णन और जानकारी के लिये साधुवाद।
एक से लेकर अबतक के सारे अंक पढ गया। आनंद आ गया। आपसे ईर्ष्या भी हुई कि आपकी तरह यात्रा करने का मौका मुझे नहीं मिल रहा है।
आपकी इस बात में जबरदस्त सच्चाई दिखी-
विग्यान भले ही कुछ भी कहे कि ये पर्वत एक भौगोलिक रचना है। लेकिन मुझे तो आध्यात्मिक अनुभव हो रहा था।
behtreen post lagayi hai apne blog pe…aaj hikafi sari post per li…
आपका लेखन और साथ के चित्र रोमांचक और रोचक हैं, सफर जारी रहे.
DEPANSHU JI APKI YATRA KE BARE MAIN PADHA BAHUT ACCHA LAGA.APSE BAAT KARNE KI ICCHA HAIN YEH MERA NO HAIN 09813040862.PLZ CALL ME.
मेरी भी बहुत इच्छा है ऊँ पर्वत जाने की आपका लेख मददगार बनेगा।
आपके बाकि के लेख अभी नहीं पढे है। तीन चार ही पढे है, बिल्कुल निराले है।
yeerygood
बढ़िया विवरण। बहुत दिनों के बाद ऐसा पढ़ रहा हूं। साधुवाद।
बहुत बढिया दीपांशु जी ………आपकी इस यात्रा को पढकर मजा आ गया । यात्राऐं तो हम भी काफी करते है और हिमालय को पसंद करते है पर ऐसी ट्रेकिंग अभी तक नही की है