श्रीनगर की यात्रा (४)- शंकराचार्य मंदिर और मुगल बगीचे

श्रीनगर की यात्रा (४)- शंकराचार्य मंदिर और मुगल बगीचे

दूसरा दिन-
श्रीनगर में दूसरे दिन हमारा सफर शूरू हुआ शंकराचार्य मंदिर के दर्शन के साथ। ये मंदिर डल के पास एक पहाड जिसे तख्त-ए-सुलेमानी कहा जाता है पर बना है। शिव का ये मंदिर करीब दो हजार साल पुराना है। जगदगुरु शंकराचार्य अपनी भारत यात्रा के दौरान यहां आये थे। उनका साधना स्थल आज भी यहां बना हुआ है। मंदिर का फोटो लेने की अनुमति नहीं है। लेकिन ऊँचाई पर होन के कारण यहां ये से श्रीनगर और डल का बेहद खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। मंदिर के नीचे तक जाने के लिए सडक बनी है फिर भी करीब दो सौ सीढियां तो आपको चढनी ही पडती हैं।

परी महल –
मंदिर के दर्शन के बाद हमने शुरु किया संसार भर में प्रसिद्ध मुगल बागीचों का सफर। इसमें पहली कडी था परी महल जिसको शाहजहां के बेटे दाराशिकोह ने बनवाया था। कहा जाता है कि पहले ये एक बौद्ध मठ था जिसे दाराशिकोह ने वेधशाला में बदलवा दिया था। यहां का बगीचा बेहद खूबसूरत है और ऊँचाई के कारण झील का विहंगम रुप यहां से देखा जा सकता है।

चश्म-ए-शाही-

परी महल के ही नजदीक है चश्म-ए-शाही का बागीचा। इस बागीचे को शाहजहां ने १६३२ में बनवाया था। मुगल स्थापत्य का बेजोड नमूना है चश्म-ए-शाही। मुगल बागीचो के शौकीन थे इसलिए हर जगह उन्होने शानदार बागीचे बनवाये थे। मुगल बागीचो की खासियत होता था उनका एक के बाद एक छत बनाकर उँचाई की आर बढते जाना, साथ ही बगीचों में बहते पानी की नहरे, फव्वारे भी लगाये जाते थे। कमोबेश यही रुप आप आज भी यहां आकर देख सकते हैं। मुगल बागीचों को फूलों के पौधो ओर पेडो से सजाया जाता था। चश्म-ए-शाही को मुगलिया सुन्दरता को आज भी यहां आकर महसूस किया जा सकता है।

इस बागीचे की एक और खासियत यहां बहने वाला झरना हैं। इसके पानी को सेहतमंद माना जाता है। मैने जब इसे पीकर देखा तो पता चला कि वाकई पानी का स्वाद बेहतरीन है। कहा जाता है कि भारते के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु इसी चश्मे का पानी पिया करते थे।


निशात बाग-


इसेक बाद हम पहूँचे निशात बाग देखने कि लिए। ठीक डल के सामने बना है ये बागीचा। इसमें जाते समय में सोच रहा था कि आज तक जिस निशात के बारे में सिर्फ किताबों में ही पढा है क्या उसे मैं सचमुच देख पा रहा हूँ। वाकई ये इतना सुन्दर है कि अन्दर जाते ही मै तो सब कुछ भूल कर कभी बागीचे तो कभी उसके सामने पसरी पडी झील को ही निहारता रहा। यहां आकर उस बात का मतलब समझ आता है जिसमें कश्मीर को जन्नत बताया गया है। ये बागीचा सभी मुगल बागीचों में सबसे बडा है। इसके पीछे पहाड पसरे पडे हैं तो सामने है डल झील। इसको १६३३ में शाहजहा ने ही बनवाया था।

शालीमार बाग-
शालीमार को मुगल बादशाह जहांगीर ने बनवाया था। मुगल कलाकारी की पूरी झलक इसमें भी देखने को मिलती है। इसकी खासियत है इसके बीच बनी चौडी नहरे जिनको रंगबिरगें पत्थरो से सजाया गया था, साथ ही नहरो के बीच बने छोटे ताल जिनमें बैठने के लिए बारादरी बनवाई गयी है।

इस तरह हमारा श्रीनगर के मुगल बागीचो का सफर तो पूरा हुआ लेकिन दुसरे दिन का हमारा सफर अभी बाकी है जिसके चर्चा अगली बार…………………………………..

3 thoughts on “श्रीनगर की यात्रा (४)- शंकराचार्य मंदिर और मुगल बगीचे

  1. अच्छा लगा इन खूबसूरत दृश्यों को देख के। बाग तो वाकई बेहद सुंदर दिख रहे हैं।

  2. जिन बगीचों की तारीफ में लोग बरसों से कसीदे पढ़ रहे हों उन के बारे में मैं क्या कहूँ? शब्द ही कम पड़ रहे हैं…या यूँ कहूँ इसकी खूबसूरती को बताने के लिए शब्द ही नहीं बने हैं…
    नीरज

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