केरल – अनोखा है यह राज्य
केरल घूमने के मेरे अनुभव को लिखते समय एक ख़बर मेरा ध्यान खींच रही है। हाल में आए आंकड़ों से पता चला है कि साल 2019 में केरल ने पर्यटकों की वृद्धि दर के मामले में पिछले 24 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। पिछले साल 1.95 करोड़ देशी और विदेशी पर्यटक केरल पहुंचे। साल 2018 और 2019 की भयानक बाढ़ और बरसात से हुई तबाही के बावजूद केरल ने यह मुकाम हासिल किया। बाढ़ के बाद केरल में पर्यटन से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं को तेज़ी के साथ खड़ा किया गया और केरल फिर से पर्यटकों का स्वागत करने के लिए तैयार था। यह ऊर्जा केरल में हर जगह दिखाई देती है। मैं तीन साल पहले केरल गया था। यहां की प्राकृतिक ख़ूबसूरती, इतिहास और लोगों के दोस्ताना व्यवहार ने मुझे ख़ासा आकर्षित किया।
ख़बूसरती जो मन मोह ले
कोच्ची एयरपोर्ट से बाहर निकलने के कुछ ही देर में यहां की ख़ूबसूरती मुझ पर असर दिखाने लगी। सड़कों के किनारे खड़े नारियल के पेड़ और जगह-जगह दिखाई देता समुद्र आप पर अलग ही छाप छोड़ते हैं। एयरपोर्ट से निकलते समय शाम होने लगी थी और रास्ते में ही टैक्सी ड्राइवर ने एक जगह गाड़ी रोककर मुझे डूबते सूरज का नज़ारा दिखाया। एक पर्यटक के नाते मेरे लिए केरल में अरब सागर में डूबते सूरज को देखना एक नया अनुभव था। मैं उस पल का पूरा मज़ा ले रहा था। लेकिन मैं यह देख कर ताज्जुब में था कि जिस जगह मैं खड़ा था वहां बड़ी संख्या में स्थानीय निवासी भी उसी नज़ारे का मज़ा ले रहे थे। अपनी स्कूटर, बाइक या गाड़ी से गुजरते लोग उस नज़ारे को देखकर कुछ देर ठहरे बिना नहीं निकल रहे थे। लोगों के मोबाइल में वह नज़ारा वैसे ही कैद हो रहा था जैसे कि पर्यटक के। हालांकि उनके लिए यह रोज़ाना का अनुभव होगा लेकिन यह दिखाता है कि लोगों में अपनी विरासत को लेकर कितना अपनापन है। शायद यही बात केरल को ख़ास बनाती है। जब लोग खुद अपने राज्य का महत्व समझेंगे तभी वे उसे दूसरों के लिए भी बेहतर बना पाएंगे।
अपने राज्य से प्यार
यही बात केरल की साफ-सफाई में भी दिखाई देती है। इस बारे में मेरा खुद एक सच्चा किस्सा बताता हूं। मेरी एक टीवी पत्रकार मित्र एक बार किसी रिपोर्टिंग के सिलसिले में केरल का सफ़र कर रहीं थी। सफ़र के दौरान एक बार कहीं जाते हुए टीम के किसी सदस्य ने पानी पीने के बाद प्लास्टिक की बोतल को गाड़ी की खिड़की से सड़क पर फेंक दिया। टैक्सी चला रहे ड्राइवर ने तुंरत गाड़ी रोकी। उसने कहा कि बोतल वापस उठाइए और कहा कि केरल को इस तरह गंदा मत करिए। ये दो उदाहरण इस बात को बताने के लिए काफी हैं कि यहां के लोग अपने राज्य से कितना प्यार करते हैं। यही वजह है कि पर्यटन की दुनिया में भी केरल अपनी छाप छोड़ रहा है क्योंकि पर्यटन के व्यवसाय का आधार ही बेहतर सेवा है।
घुमक्कड़ी के सरताज
बात केरल के लोगों की हो रही है तो घूमने के जुनून से जुड़े एक उदाहरण की चर्चा किए बिना यह अधूरी रह जाएगी। 67 साल के विजयन और 65 साल की मोहना कोच्ची में चाय की छोटी सी दुकान चलाते हैं लेकिन ये पति-पत्नी अव्वल दर्जे के घुमक्कड़ है।चाय की दुकान से होने वाली पूरी आमदनी को घूमने में लगा देते हैं। शौक ऐसा कि विजयन बैंक से कर्ज़ लेकर और किसी तरह पैसा जुटाकर विदेश घूमने जाते हैं। वापस आकर पैसा चुकाते हैं और फिर कहीं निकल पडने की तैयारी में लग जाते हैं। इन दोनों से मिलना मेरे केरल के सफ़र के सबसे यादगार हिस्सों में से एक है। मैं उनसे मार्च 2017 में मिला था। उस वक्त वे थाइलैंड से वापस ही आए थे और अर्जेंन्टीना, ब्राजील और चिली जाने का सोच रहे थे। साल 2007 से 2017 के बीच वे 19 देश घूम चुके थे। जिसमें अमेरिका, इजिप्ट , इजराइल, फिलिस्तीन, यूके, जर्मनी , फ्रांस, इटली, स्विटजरलैंड शामिल था। उनका सफ़र अभी भी जारी है। भारत का शायद ही कोई हिस्सा उन्होंने छोड़ा हो। मैंने विजयन से पूछा कि इतना घूमने के पीछे क्या प्रेरणा है तो विजयन ने बताया कि वे एक छोटे से गांव में पले-बढ़े थे। उनकी बचपन से इच्छा थी कि गांव से निकल कर एक बार कोच्चि जैसा बड़ा शहर घूम कर आएं। एक बार कोच्चि पहुंचने के बाद तो घूमने का ऐसा शौक लगा कि उनके कदमों ने रूकना ही छोड दिया।
विजयन ने दुकान में एक ग्लोब लगा रखा है बोलते हैं कि उसी पर नई-नई जगहें ढूंढता रहता हूँ। दुनिया भर के देशों का समय दिखाती घड़ियां उन्होंने टांग रखी हैं। जिससे घूमने का उनका जज़्बा बना रहता है। विजयन जैसे लोगों ने ही साबित किया है कि सपनों की उड़ान को छोटा मत करो बस उनका पीछा करते चलो। हम जैसे घुमक्कडों के लिए विजयन और मोहना बहुत बडी प्रेरणा है।
कला के अनोखे रंग – छाया कठपुतली (Shadow Puppetry)
केरल में कला के अनोखे रूप देखने को मिलते हैं। कुछ कलाएं तो ऐसी हैं जो अब धीरे-धीरे सिमटती जा रही हैं। ऐसी ही कला है- छाया कठपुतली या shadow puppetry। इसमें कलाकार दीए की रोशनी और चमडे की बनी कठपुतली के सहारे जादुई अहसास पैदा करते हैं।
यह कला केरल के त्रिचुर, पलक्कड और माल्लपुरम जिलों में पाई जाती है। इन जिलों से बहने वाली नीला नदी के किनारे स्थित 85 देवी भद्रकाली के मंदिरों में इसका प्रदर्शन किया जाता है। आमतौर पर इसमें कंबन रामायण की कहानियां दिखाई जाती है। पर अब यह कला धीरे-धीरे खत्म हो रही है। इसको करने वाले पुरवर समाज के लोगों में मुश्किल से 20-25 लोग ही हैं जो इसे अभी भी जिंदा रखे हुए हैं।
अपनी केरल यात्रा के दौरान मुझे इस कला के जानेमाने कलाकार रामचंद्र पुरवर से मिलने का मौका मिला। उनसे इस कला के बारे में काफी कुछ जानने को मिला। रामचंद्र जी अपने चारों बेटों के साथ इसे जिंदा रखने में लगे हैं। इसके लिए उन्होंने परंपरा से बाहर आकर आधुनिक विषयों को भी दिखाने शुरू किया है।
केरल विविध संस्कृतियों का मिलन स्थल भी रहा है। कोच्चि के मट्टनचेरी में पहुंच जाएं तो लगता है कि वक्त अभी भी हज़ारों साल पहले ठहरा हुआ है जब रोम और अरब के व्यापारी मसालों के व्यापार के लिए यहां आए करते थे। रोमन साम्राज्य के दौर से ही केरल के काली मिर्च, लौंग, इलायची जैसे मसालों के पीछे यूरोप दीवाना था। यहूदी व्यापारी भी यहां बड़ी संख्या में रहते थे। अब यहां गिनती के ही यहूदी परिवार बचे हैं लेकिन उनकी मट्टनचेरी के सिनेगाग (यहूदी मंदिर) ने उस दौर से जुड़ी यादों को संभाल कर रखा हुआ है। बाद ने यहां पहुंची यूरोपियों शक्तियों ने तो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास को ही बदल कर रख दिया। केरल ऐसे ही बहुत से किस्सों-कहानियों और लोगों से मिलकर बना है। इस अनोखे केरल को अनुभव करना है तो एक बार इस प्राचीन धरती पर ज़रूर आइए।
केरल पर्यटन ने #HumanByNature कैंपेन शुरू किया है। इसके तहत उन्होंने एक वीडियो बनाया है जो केरल के लोगों के रोज़ाना के जीवन, इतिहास, सांस्कृतिक और प्राकृतिक विविधता को ख़बूसरती से पेश करता है।
Disclaimer – This post has been written in collaboration with Kerala Tourism Board. Views expressed here are mine.