मेरी श्रीनगर यात्रा (२) – डल झील का सफर
पहला दिन डल का सफर
पहले दिन हम निकल पडे शिकारे से डल झील के सफर पर। जहां से आप शिकारा लेते हैं यानि बिलवर्ड रोड । वहां पर झील एक नहर के रुप में हैं इसलिए डल की असली रुप को आप समझ ही नहीं पाते हैं। लेकिन थोडी ही देर में आप खुली झील में पहुचते और दिखाई देता हैं डल झील का असीम विस्तार दूर दूर तक पानी ही पानी दिखाई देता है।
डल का विस्तार इतना ज्यादा है कि एक बार में आप उसे पूरा देख ही नहीं सकते हैं। खुली डल में ही झील की असली खूबसूरती नजर आती है फैला पानी ऐसा आभास देता है कि छोटे से समुद्र में आ सैर कर रहें हो। आस पास चलते शिकारे , हाउस बोट एक अलग ही संसार आप को नजर आने लगता है।
शिकारे वाला हमें सबसे पहले नेहरु पार्क में ले गया ये पार्क डल झील के बीच एक टापू पर बनाया गया है। इस जगह से डल के चारों और के नजारे देखें जा सकते हैं। मौसम भी बेहद सुहावना हो रहा था हल्की हल्की बूँदाबांदी भी हो रही थी। ऐसे मौसम में पार्क में खडे होकर सामने के ऊँचे पहाडों पर छाते जा रहे बादलों को देखना अनोखा अनुभव है।
पार्क में बाहर से आये पर्यटक ही नहीं बल्कि श्रीनगर के स्थानिय लोगों का भी जमावडा लगा हुआ था। बडी संख्या में युवक वहा मौज मस्ती कर रहे थे। मैने पुछा तो पता चला कि उस दिन रविवार था और रविवार को यहां के बाशिंदे भी नेहरु पार्क में आते हैं। वहां खडे होकर मैं तो डल को ही निहारता रहा वहा से जाने का मन ही नहीं कर रहा था। लेकिन शिकारे वाले ने कहा की आगे आप को डल मे बसी दुनिया दिखायेगें। जहां पूरा शहर ही झील में बसा पडा है।
हम अब नेहरु पार्क से आगे चल पडे। थोडा आगे जाने पर डल मे सजी दुकाने नजर आने लगी। जरुरत का हर सामान वहां मिल रहा था। इन दुकानो को झील में ही बनाया गया था। दुकानों से झील में रहने वाले लोग सामान खरीदते हैं। वहीं कश्मीर के हस्त शिल्प का सामान भी मिल रहा था जहां से पर्यटक भी खरीदारी करते हैं। झील के बीच में गलियां बनी थी जिनमें चलता शिकारा हमें वेनिस में चलने का आभास दे रहा था।
2 thoughts on “मेरी श्रीनगर यात्रा (२) – डल झील का सफर”
गर आसमान साफ होता तो और भी खूबसूरत लगता ये नज़ारा। आप बताते रहिए हम पढ़ रहे हैं।
बहुत आनंद आ रहा है…शब्दों में बयां करना मुश्किल है…आपने तो डल झील के वो हिस्से दिखाएँ हैं जो आम तौर पर देखने को नहीं मिलते. बहुत खूब
नीरज