श्रीनगर की यात्रा (३) – डल के तैरते खेत
डल की एक खासियत है इसमें तैरते खेत। ये खेत जमीन पर मिलने वाले खेतों के जैसे ही होते हैं। जरुरत की सभी सब्जियां इसमें उगाई जाती है। देख कर आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं कि ये खेत वास्तव नें स्थिर ना होकर झील की सतह पर तैर सकते हैं। इन्हे देख कर तो मैं हैरत में पड गया था। ये तैरते खेत इस बात की मिसाल है कि आदमी अपने आस पास के वातावरण को किस हद तक अपने अनुरुप ढाल सकता है।
डल में वाटर लिली का पौधा बहुतायात में होता है। और इन तैरते खेतों को बनाने में भी इसी पौधे का इस्तेमाल किया जाता है। वाटर लिली के तने पानी पर तैरते रहते हैं इन्ही तनों को आपस में बांधकर एक सतह तैयार की जाती है जो कि पानी पर तैर सकती है। इसको झील के पानी में कुछ समय के लिए छोड दिया जाता है। शायद मिट्टी की हल्की परत भी बिछाई जाती है। इसके बाद मनचाहे फसल के बीज डाल दिये जाते हैं। थोडे ही दिनों में लहलहाती फसल दिखाई देने लगती है। मैने लोकी की अच्छी फसल इन खेतों में देखी।इन खेतों को शिकारे के पीछे बांध कर मनचाही जगह ले जाया जा सकता है।
8 thoughts on “श्रीनगर की यात्रा (३) – डल के तैरते खेत”
You have a very impressive blog.
litton loan
सुन्दर चित्र व बढिया वर्णन!
बढिया चित्र वर्णन,सुन्दर
बहुत सुन्दर तश्वीरें..
ye to rochak baat batayi aapne…
वीर तुम बढ़े चलो..धीर तुम बढ़े चलो…सामने पहाड़ हो या शेर की दहाड़ हो…बधाई।
तैरते खेत…लौकी की खेती भी…कमाल का वर्णन कर रहे हैं आप…
नीरज
सुना था, चित्रों में पहली बार देखा. रोचक.