छोटा कैलाश- ट्रैकिंग का रोमांच- १
छोटा कैलाश कुमाऊं में एक पवित्र स्थान है। इसको तिब्बत के कैलाश मानसरोवर के बराबर ही माना जाता है। छोटा कैलाश एक तीर्थ के साथ ही ट्रैकिंग के लिए भी बेहतरीन है। ये उत्तराखँड के पिथौरागढ जिले मे चीन-तिब्बत की सीमा पर है। यहां तक पहुंचने के लिए तवाघाट से पहाडो की चढाई शुर करनी पडती है। तवाघाट से आने और जाने मे कुल मिलाकर २०० किलोमीटर से भी ज्यादा की पैदल दूरी पहाडों में तय करनी पडती है। मेरा भी पिछले कई दिनो से यहां जाने के बारे में सोच रहा था। मुझे ट्रैकिंग का शौक है मेरे यहां जाने के पीछे मेरा ये शौक ही कारण बना। छोटे कैलाश के इस ट्रैक को ट्रैकिग के आधार पर देखे तो कडे ट्रैक की श्रेणी मे रखा जाता है। लेकिन ये पूरा ही ट्रैक बेहद खूबसूरत पहाडो, नदियो, झरनो, फूलो की घाटियो से भरा पडा है, इसलिए थकान का अहसास ही नहीं होता।
मुझे तो दिल्ली से जाना था। कुमाऊं पर्यटन निगम यहा के लिए टूर ले जाता है। इसलिए मैने कुमाऊं पर्यटन के दफ्तर से यहा कि बुकिंग करवाई। पता चला कि तीन दिन बाद ही एक छोटा सा ग्रुप जाने वाला है जिसमे कुल छ ही लोग है सातवे के तौर पर मैने बुकिंग करवा ली। दिल्ली से दिल्ली तक इस पूरे सफर मे सत्रह दिन लगते हैं।
छोटा कैलाश करीब साढे चार हजार मीटर की ऊंचाई पर है। मौसम बेहद ठंडा और रास्ता बेहद कठिन है इसलिए तीन दिन मे ही मुझे काफी तैयारी करनी थी। इतनी ऊचाई पर जाने के लिए ठंडे और बरसात से बचने के लिए अच्छे गर्म कपडे सबसे पहली जरुरत होती है। उनके इंतजाम के बाद जरुरी दवाईयां रखनी थी। क्योकि पूरे रास्ते में करीब बारह दिन आम दुनिया से दूर पहाडो के बीच बिताने थे जहा किसी भी तरह की मेडिकल सहायता मिलना मुश्किल है। खैर तीन दिन कैसे बीत गये पता थी नही चला। जाने वाले दिन हम सभी को एक होटल मे मिलना था जहा से रात को हमारी यात्रा शुरु होनी थी। यहा मै अपनी ग्रुप के दूसरे छ लोगो से मिला। मुझे देखकर ताजुब्ब हुआ कुल सात लोगो मे से चार लोग ऐसे थे जिनकी उम्र साठ साल से ज्यादा थी। मैने आने से पहले पता किया था कि छोटे कैलाश का ये ट्रैक काफी कठिन माना जाता है। अगर आप को ट्रैकिग की आदत नही है तो इसे पूरा करना खासा मुश्किल है। यहां तो मेरे अलावा किसी ने भी पहले ट्रैंकिग नही की थी। मुझे लगा कि यहा तो मै अकेला ही रह जाऊंगा क्योकि मेरे उम्र का यहा कोई दिखाई नही दिया सिवाय अमेरिका में रहने वाले एक भारतीय डाक्टर के। अजय नाम का ये डाक्टर कुछ दिन पहले ही अपनी पढाई पूरी करके किस्मत आजमाने अमेरिका गया था। और मेरी ही तरह ये ही ट्रैकिग के लिए जा रहा था। मेरी जल्दी ही उससे दोस्ती हो गयी। अब मुझे लगा कि ठीक है नही तो सत्रह दिन काटना मुश्किल हो जाएगा। जब अजय से बत हुई तो पता चला कि ये बात उसके भी दिमाग मे भी चल रही थी। यहां हमारे टूर गाइड जीतू से सबकी मुलाकात हुई आगे के सफर में जीतू ही हम सबको ले जाने वाला था। जीतू भी मेरी ही उम्र का था इसलिए तस्सली हुई कि कोई और मिला जो साथ रहेगा। खैर हमको जीतू ने रास्ते मे आने वाली मुश्किलो के बारे मे बताया। हमे बताया गया कि क्या क्या दिक्कते सामने आ सकती है और उनसे बचने के लिए क्या किया जा सकता है। हमे क्या क्या जरुरी सामान ले जाना था इसकी लिस़्ट पहले ही हमे मिल चुकी थी। सबने अपना सामान एक बार चैक किया। फिर रात का खाना खाने के बाद हम लोग अपनी यात्रा के लिेए चल पडे। मई के महीना खत्म होने को था और दिल्ली मे बेहद गर्मी पड रही थी। लेकिन हमारे निकलने से पहले ही मौसम भी बदलने लगा और बरसात होने लगी। बरसात बेहद अच्छी लग रही थी। रात को करीब दस बजे हम चल पडे उत्तराखंड के लिए। अगले दिन हमारा पहला पडाव बनने वाला था अलमोडा जिले का जागेश्वर। सुबह सुबह हम हलद्वानी पहुचे। रात के पूरे रास्ते बरसात होती रही थी और अभी भी बरसात जारी थी। मुझे थोडा सा डर लग रहा था कि अगर आगे भी बरसात होती रही तो कुछ दिन के बाद हमारी पैदल चढाई से समय दिक्कत आ सकती है। खैर हलद्वानी से थोडा आगे काठगोदाम मे हम लोग पर्यटन विभाग के होटल मे सुबह की चाय के लिए रुके। काठगोदाम से ही पहाडी सफर की शुरुआत भी हो जाती है। इसके आगे ये पहाड हमारे साथ बने रहने वाले थे।
अब तक अजय से अच्छी दोस्ती हो गयी थी इसलिए रास्ता आराम से कट रहा था। ये इलाका मेरे लिए जाना पहचाना था इसलिए मे इसके बारे मे अजय को बता रहा था। करीब दस बजे हम लोग अलमोडा पहुचे। अलमोडा उत्तराखंड का जाना पहचाना हिल स्टेशन है। पर हमे यहा के करीब तीस किलोमीटर आगे जागेश्वर जाना था।
( जागेश्वर के बारे मे जानने के लिए मेरा जागेश्वर पर लिखा पुराना लेख पढे।)
3 thoughts on “छोटा कैलाश- ट्रैकिंग का रोमांच- १”
बहुत रोमांचकारी यात्रा रही होगी. बढ़िया तस्वीरें.
भाई, मजा आ गया. अभी दूसरा भाग पढता हूं.
good