छोटा कैलाश- ट्रैंकिग का रोमांच-२
जागेश्वर में शाम को मंदिर के दर्शन के बाद हम घूमने निकले। यहा चारो तरफ देवदार के घने जंगल है जिनमे घूमने का अपना अलग ही मजा है। जंगल में तरह तरह की चिडिया दिखाई दी जिन्हे मैने पहले कभी नहीं देखा था। दिल्ली की गर्मी के बाद जागेश्वर की ठंडक बेहद सुकुन दे रही थी।
अगले दिन हमें जागेश्वर से २०० किलोमीटर दूर धारचूला जाना था। भारत नेपाल सीमा पर बसा धारचूला कैलाश मानसरोवर और छोटा कैलाश यात्रा के लिेए आधार शिविर का काम करता है। ये सफर करीब बारह घंटे का है इसलिए हमे सुबह सात बजे अपना सफर शुरु करना था। सुबह हम सही समय पर यात्रा शुरु कर दी क्योकि धारचूला तक रास्ता सीधी खडी घाटियो से गुजरता है और ऐसे में रात का सफर खतरनाक हो सकता है।
जागेश्वर से निकलते ही असली उत्तराखंड दिखाई देने लगता है। रास्ते में देवदार और चीड के जंगल मन खुश कर देते हैं। बर्फीले पहाड भी गाहे बगाहे दिखाई देते रहते हैं। इन सबको देखते हुए समय कब बीतता है इसका पता ही नहीं चलता।
हमारे दोपहर के खाने का इंतजाम पाताल भुवनेश्वर में किया गया था। पाताल भुवनेश्वर में जमीन से करीब १०० मीटर नीचे गुफाओ की पूरी कडी है जिनमें चूना पत्थर से अद्भूत सी दिखाई देती रचना बनी है। मान्यता है कि इन गुफाओ में चारों लोक, चारों धाम और तैतीस करोड देवी देवताओ का वास है। यहा के पुजारी बताते है कि भगवान शिव यही से कैलाश पर्वत जाया करते थे और ये गुफा सीधे कैलाश से जुडी है। इन गुफाओ में चूना पत्थर की रचनाऐ बनी है जिनको पुजारी देवताओ की अपने आप बनी मूर्तियां बताते हैं। इसलिए मानने वालो के लिए ये जगह तीर्थ से कम नही है।
लेकिन विग्यान के आधार पर देखें तो ये चूने पत्थर की बनी आकृतियां है। जो हजारो सालो से टपकते पानी में मौजूद चूने के जमने से बन जाती है। दुनिया के बहुत से हिस्सो में इस तरह की गुफाए मिलती है। मै पहले भी इस तरह की गुफा जम्मू के पास कटरा से करीब १०० किलोमीटर दूर देख चुका हूं। जिसे शिवखोडी कहा जाता है शिवखोडी मे भी वही कहानी बताई जाती है जो मैने पाताल भुवनेश्वर में सुनी ( शिवखोडी की यात्रा के बारे मे बाद में लिखूंगा)।
पंचाचूली का नजारा
पाताल भूवनेश्वर से पंचाचूली की पांचो चोटियो का खूबसूरत नजारा हमने देखा। दोपहर का खाना यहां के कुमाऊं पर्यटन के होटल में खाना खाकर हम चल पडे धारचूला के लिए। पहुचते पहुचते हमे करीब सात बज ही गये। धारचुला मे रात हो जाने के कारण हम कुछ देख नही सके। ये कस्बा काली नही के किनारे बसा है। काली नदी यहां भारत और नेपाल की सीमा बनाती है। काली नदी के एक ओर धारचूला तो दूसरी तरफ नेपाल का शहर है। हमारा होटल भी काली के किनारे ही था इसलिए अच्छा लग रहा था। सारे दिन के सफर से थके हम जल्दी ही आराम करने चले गये। अगले दिन से हमें छोटा कैलाश की पैदल यात्रा शुरु करनी थी। इस तरह हमारा दूसरा दिन खत्म हो गया…………………..
काली के दूसरी तरफ दिखाई देता नेपाल
2 thoughts on “छोटा कैलाश- ट्रैंकिग का रोमांच-२”
दीपांशु जी,
ट्रैकिंग का शौक तो मुझे भी बहुत है, लेकिन साथ के अभाव मे यह शौक ज्यादा फल-फूल नही रहा है.
अगर चाहो तो अपना कोई सम्पर्क नम्बर दे दो.
फ़िर दोनो इकट्ठे जाया करेंगे.
bahut achcha laga raha hai ye vritant. photo bhi manmohak hain
Aur haan blog par aapki wapasi ka swagat hai.