‘बरातघर’ न बन जाएं हमारे टाइगर रिज़र्व
कुछ महीने पहले मैं घूमने के लिए कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व गया था। मैं जिस रिज़ॉर्ट में था वह कॉर्बेट के आम होटलों वाले इलाके से दूर शांत गांव में जंगल के किनारे बना था। रिज़ॉर्ट के मैनेजर ने बात करते हुए दुखी मन से कहा, “पूरा कॉर्बेट तो अब बरातघर बन गया है। हमारे जैसे कुछ ही रिज़ॉर्ट बचे हैं जहां कुछ शांति है।”
जो उन्होंने कहा वही मुझे भी अपनी कॉर्बेट की यात्रा में महसूस हुआ। मैं दिसंबर के महीने में वहां था। इस समय शादियों का मौसम पूरे उफान पर होता है। इसका असर कॉर्बेट में भी साफ दिखाई दे रहा था। कॉर्बेट में अधिकतर रिज़ॉर्ट और होटल रामनगर से ढिकुली जाने वाली सड़क और रामनगर से कॉर्बेट के झिरना ज़ोन की तरफ जानी वाली सड़क पर हैं। इस समय अधिकतर रिज़ॉर्ट्स के बाहर बैंड-बाजे वालों की आवाजाही दिखाई दे रही थी। डेस्टिनेशन वेंडिग की चाह रखने वालों के लिए कॉर्बेट नए ठिकाने के तौर पर उभर रहा है। दिल्ली और आस-पास के शहरों से इसकी नज़दीकी से इसे और भी बढ़ावा मिला है।
शादियों का मतलब है भीड़, शोर-शराबा, प्रदूषण, बैंड-बाजे, ढोल नगाड़ों की आवाजें और देर रात कर कानफाडू आवाज़ में बजते डीजे। ये सब किसी शहर, गांव या कस्बे में हो तो चल जाता है। लेकिन अगर यही सब देश के सबसे लोकप्रिय नेशनल पार्क के किनारे रोज़ हो रहा हो तो सोचिए वहां रहने वाले वन्य जीवन पर उसका क्या असर होगा?
शादियों के समय आने वाली भीड़ वन्य जीवों को देखने के लिए बल्कि मौज मस्ती के यहां पहुंचती है। शादी में लाखों रुपये देकर रिज़ॉर्ट बुक कर रहे लोगों से वन्य जीवों के प्रति संवेदना रखने की बात सोचना बेकार है और लगभग यहीं हाल रिज़ॉर्ट्स का भी है जो ऐसे पैसे वाले ग्राहकों को खोने का जोखिम नहीं उठाना चाहते। लेकिन इसका असर धीरे-धीरे कॉर्बेट के वन्यजीवों को ही उठाना होगा।
हालांकि रिज़ॉर्ट वाले बातचीत के दौरान नियमों का पालन करवाने की बात करते हैं लेकिन मैंने खुद देर रात तक चलते डीजे की आवाजें सुनी हैं। नियमों के हिसाब से रात दस बजे के बाद तेज़ आवाज़ में चलने वाले डीजे बंद करने होते हैं। लेकिन सोच कर देखिए क्या जंगल के जानवर यह जानते हैं। 10 बजे शोर बंद करने का नियमों इंसानों के लिए तो फिर भी ठीक हो सकता हैं लेकिन वन्यजीवों के लिए नहीं। जंगल के किनारे तो दिन के किसी भी समय होने वाला शोर उनके लिए परेशानी ही खड़ी करेगा।
सैंकड़ों होटलों और ज़रूरत से ज़्यादा पर्यटन के कारण कॉर्बेट जैसी जगहों पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों की बात की जाती रही है और डेस्टिनेशन वेंडिग का बढ़ता चलन इस नुकसान को बढ़ा ही रहा है।
बात केवल शोर शराबे या भीड़ तक ही सीमित नहीं है। शादियों के नाम पर होने वाली सजावट और बचे हुए खाने-पीने की चीज़ों के कारण हर दिन न जाने कितना कूड़ा पैदा हो रहा है। जब हमारे बड़े शहरों में ही कचरे के प्रबंधन की सही सुविधाएं मौजूद नहीं है तो ऐसे में जंगल से किनारे छोटे कस्बों में इन सुविधा की बात करना ही बेकार है।
केवल शादी ही नहीं, कॉरपोरेट इंवेट, जन्मदिन और शादी की सालगिरह मनाने के लिए भी बड़ी संख्या में लोग कॉर्बेट जैसी जगहों का रुख कर रहे हैं। मैं अपने अनुभव से बता सकता हूं कि इनमें से ज़्यादातर लोग ऐसे होते हैं जिन्हें वन्यजीवों या पर्यावरण को लेकर कोई मतलब नहीं होता। उनके लिए गोवा और कॉर्बेट में कोई अंतर नहीं।
एक होटल मालिक से मैंने इस बारे में बात की, उन्होंने कहा कि अगर डेस्टिनेशन वेंडिग जैसी नहीं करेंगे तो हम होटल चला ही नहीं पाएंगे। लेकन तर्क में सच्चाई कम और जल्द पैसा बनाने की ललक ज़्यादा दिखाई देती है। क्या वाकई दुनिया का हर होटल या रिज़ॉर्ट केवल डेस्टिनेशन वेडिंग जैसी चीज़ों के दम पर ही चल रहा है? अभी भी देश में बहुत से नेशनल पार्क है जहां डेस्टिनेशन वेंडिग जैसी चीज़ें नहीं पहुंची हैं औऱ वहां भी होटल और रिज़ॉर्ट बखूबी चल रहे हैं।
लेकिन डर यह है कि जल्दी मुनाफा कमाने की यह ललक हमारे देश के दूसरे नेशनल पार्कों को अपनी ज़द में न ले ले। अभी तक डेस्टिनेशन वेंडिग के लिए कॉर्बेट का ही नाम सुनाई देता था लेकिन अब रणथम्भौर जैसी जगहों पर भी यह होने लगा है।
आज टीवी चैनल पर हमारे केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का बयान सुन रहा था। उन्होंने बताया कि देश में बाघों की संख्या में इतनी बढ़ोतरी हुई है कि कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व जैसे पार्क बाघों को रखने की क्षमता के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुके हैं। अब यह देखा जा रहा है कि कैसे इस क्षमता को बढ़ाया जाए या बाघों को नए इलाके दिए जाएं। यह तो खुशी की बात है लेकिन इसके साथ ही यह भी देखना ज़रूरी है कि कोई एक टाइगर रिज़र्व कितने होटलों या पर्यटकों का बोझ सहन कर सकता है, और क्या कहीं पर्यटन उस इलाके की धारण क्षमता से ज़्यादा तो नहीं हो रहा।
आज 9 अप्रेल है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज देश में बाघों की संख्या के नए आंकड़े जारी किए हैं। उन्होंने खुशी जताई है कि देश में बाघों की संख्या 3167 तक पहुंच चुकी है। वाकई यह खुशी की बात कि हमारा देश लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके बाघों को उस स्थिति से बाहर निकाल कर वर्तमान स्थिति तक लेकर आया है। लेकिन अभी भी देश में वन्य जीवों के लिए काफी कुछ किया जाना बाकी है। बढ़ते पर्यटन के असर को नापना भी उसमें शामिल होना चाहिए। पर्यटन ज़रूरी है, लेकिन यह भी देखना ज़रूरी है कि पर्यटन संतुलित हो जो हमारे विकास का आधार बने, विनाश का नहीं…
और हां, अगर डेस्टिनेशन वेडिंग ही करनी है तो देश में ठिकानों की कमी नहीं है, पर हो सके तो जंगलों को छोड़ दें..
2 thoughts on “ ‘बरातघर’ न बन जाएं हमारे टाइगर रिज़र्व ”
विचारणनीय
जी, इस पर जल्दी ही ध्यान दिया जाना चाहिए।