शेख़ ज़ायद मस्जिद, अबू धाबी
संयुक्त अरब अमीरात(UAE) की राजधानी है अबू धाबी। संयुक्त अरब अमीरात सात अमीरातों से मिल कर बना है और अबू धाबी उनमें सबसे महत्वपूर्ण अमीरात है। आमतौर से संयुक्त अरब अमीरात में घूमने के लिए दुबई सबसे लोकप्रिय जगह है। लेकिन दुबई के पास के दूसरे शहरों जैसे शारजाह और अबू धाबी में भी देखने के लिए काफी कुछ है। मेरी दुबई यात्रा के दौरान मैंने एक-एक दिन इन दोनों शहरों के लिए रखा था। आज बात करते हैं अबू धाबी की। अबू धाबी दुबई से करीब 150 किलोमीटर दूर है। अबू धाबी सबसे अमीर अमीरात है लेकिन फिर भी दुबई के मुकाबले यहां हर तरफ सादगी दिखाई देती है। यहां पर्यटकों की वैसी भीड़ नहीं नज़र आती है जैसी आप दुबई में देखते हैं। लेकिन अब अबू धाबी भी बदल रहा है। यहां बनी शेख़ ज़ायद मस्जिद को देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं। इसके साथ ही यहां पास के यास आइलैंड पर बना एडवेंचर पार्क फरारी वर्ल्ड भी लोगों को आकर्षित कर रहा है। फ़रारी वर्ल्ड में F1 रेसिंग ट्रेक भी देखा जा सकता है। हाल ही में अबू धाबी में पेरिस का प्रसिद्ध लूवर म्यूज़ियम भी खुला है। हालांकि मैं बस यहां की विशाल शेख़ ज़ायद मस्जिद देखना चाहता था। यह दुनिया की कुछ सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। मुझे केवल मस्जिद ही देखनी थी इसलिए एक दिन का समय काफी था।
दुबई से अबू धाबी कैसे जाएं
आबू धाबी पहुंचने के लिए मैंने दुबई की पब्लिक बस को चुना। दुबई से अबू धाबी जाने के लिए बस सबसे सही और सस्ता साधन है। दुबई के अल-घुबाईबा ( Al Ghubaiba) और इब्नबतूता मॉल बस स्टेशन से आबुधाबी सेंट्रल बस स्टेशन के लिए सीधी बस मिलती है। आबूधाबी के लिए अल-घुबाईबा ( Al Ghubaiba) से बस नंबर E100 और इब्नबतूता मॉल बस स्टेशन बस नंबर E101 मिलेगी। एक तरफ का किराया 25 दिरहम है। इन एयरकंडीशन आरामदायक बसों में आपको सफर का पता भी नहीं चलता। टिकट के लिए इन बसों में आपको Nol सिल्वर कार्ड लेना होगा। सिल्वर कार्ड 25 दिरहम का आता है जिसमें 19 दिरहम का ट्रैवल क्रेडिट मिलता है। ये बस हर बीस मिनट में अबू धाबी के लिए निकलती हैं। करीब दो घंटे में आप अबू धाबी पहुंच जाते हैं।
अबू धाबी बस स्टेशन से शेख जायद मस्जिद
बस से आप अबू धाबी के सेंट्रल बस स्टेशन पर पहुंचते हैं। इस बस स्टेशन के अंदर या ठीक बाहर बने स्टॉप से आपको अबू धाबी की बहुत सी जगहों पर जाने के लिए सिटी बस मिल जाएगी। अबू धाबी का बस स्टेशन साधारण सा है। बस स्टेशन में बड़ा सा हॉल है जहां वेटिंग एरिया , खाने-पीने की कुछ दुकानें और पूछताछ काउंटर बने हैं। मैंने पहले यहां कुछ खाया। मुझे यहां के अबू धाबी की शेख़ ज़ायद मस्जिद जाना था इसलिए मैंने पूछताछ काउंटर से वहां जाने वाली बस के बारे में पता किया। मुझे पता चला कि 54 नंबर की बस मुझे सीधे मस्जिद तक पहुंचा देगी। हालांकि पूछताछ पर बैठे व्यक्ति ने मुझे बस कहां से मिलेगी इसकी गलत जानकारी दी। बस स्टेशन के अंदर बहुत से प्लेटफार्म बने हैं जहां से सिटी बसें चलती हैं। लेकिन मेरी बस अंदर से नहीं बल्कि सड़क पर बने बस स्टॉप से मिलनी थी। कुछ देर इधर-उधर से पता करने पर मुझे पता चला की बस स्टेशन से बाहर निकल कर सड़क पर जाना होगा जहां से मुझे बस लेनी होगी।
बस का टिकट लेने के लिए बस स्टेशन पर वेंडिंग मशीन लगी थी। वहां टिकट के लिए कोई काउंटर नहीं था। बस वेंडिग मशीन में अपना आखिरी स्टेशन लिखिए, पैसे डालिए और आपका टिकट आपको मिल जाएगा। वेंडिग मशीन अगर इस्तेमाल ना कर पाएं तो कोई बात नहीं वहां खड़े गार्ड इसमें आपकी मदद कर देंगे। खैर टिकट लेकर मैं सड़क पर पहुंचा और वहां अपनी बस का इंतजार करने लगा। कुछ देर में बस आई उसका नंबर देख में बस में चढ़ गया। बस में कोई कंडेक्टर नहीं होता। आप पीछे के दरवाजे से बस के अंदर जाते हैं। दरवाजे के बाहर एक बटन लगा होता है उसे दबाने पर दरवाजा खुल जाता है। अंदर जाने पर आप दरवाजे के पास लगी मशीन पर अपनी टिकट छुआते हैं जिससे आपकी यात्रा दर्ज हो जाती है।
करीब 40-45 मिनट के सफर के बाद बस ने मुझे मस्जिद के पिछले गेट से कुछ दूरी पर उतारा। यहीं के मस्जिद की ख़ूबसूरती नज़र आने लगी थी। दोपहर का समय था इसलिए गर्मी बहुत थी। जहां उतरा वहां से गेट से होते हुए मस्जिद तक की दूरी काफी थी और तेज़ गर्मी में चलना मुश्किल लग रहा था लेकिन तभी मैंने देखा की गेट का पास एक गोल्फ कार्ट खड़ी थी। उसका ड्राइवर देखते ही समझ गया कि मैं मस्जिद देखने आया हूँ। उसने बैठने का इशारा किया। मैंने पूछा तो पता चला कि यह गोल्फ कार्ड गेट से मस्जिद के अंदर तक ले जाने के लिए चलाई जा रही है । इस सेवा के लिए कोई पैसा नहीं देना होता। मेरे पीछे कुछ दूसरे लोग भी मस्जिद की तरफ आ रहे थे। ड्राइवर ने उनको प्यार से बोला कि अगर वे पैदल ना चलना चाहें तो वे बस 5 मिनट इंतजार करें वह उनको लेने वापस आ रहा है। पांच मिनट में उसने मुझे मस्जिद के बाहर पहुंचा दिया। वहां सुरक्षा जांच के बाद आप मस्जिद में जा सकते हैं।
शेख़ ज़ायद मस्जिद
सुरक्षा जांच से बाहर निकलते ही आपको पूरी मस्जिद दिखाई देती है। यहां से आप पूरी मस्जिद को कैमरे में कैद कर सकते हैं। सफेद संगमरमर से बनी मस्जिद दिन की रोशनी में बहुत खूबसूरत दिखाई देती है। मैंने कुछ फ़ोटो लिए और आगे बढ़ गया। पैदल रास्ते से होते हुए मस्जिद के मुख्य बरामद तक पहुंच सकते हैं। पैदल ना चलना चाहें तो यहां भी गोल्फ कार्ट की सुविधा उपलब्ध है। मुख्य बरामदे के बाहर पानी से भरे तालाब बने हैं जो ख़ूबसूरत लगने के साथ यहां की गर्मी में ठंडक देने का काम भी करते है। मुख्य बरामदा बहुत विशाल है और इसमें बने गुम्बज में शानदार कारीगरी की गई है। बरामदे से मस्जिद का विशाल अहाता दिखाई देता है। नमाज के समय भीड़ ज्यादा होने पर लोग यहां से भी नमाज पढ़ते हैं। अहाता इतना विशाल है कि इसमें 31000 लोग एक साथ नमाज़ पढ़ सकते हैं। इसके फर्श को रंग बिरंगे संगमरमर से बने डिज़ाइनों से सजाया गया है। मस्जिद के अहाते से ही 4 बड़ी मीनारें दिखाई देती हैं। हर मीनार 106 मीटर ऊंची है। इस मस्जिद को बनाने में दुनिया भर की सभी प्रमुख इस्लामी वास्तुकला के डिज़ाइनों का प्रयोग किया गया है।
मस्जिद के बारे में बताने के लिए यहां फ्री गाइडेड टूर चलाए जाते हैं। मैं शुक्रवार को वहां पहुंचा था। शुक्रवार को दिन में मस्जिद पर्यटकों के लिए बंद रहती है और शाम 4.30 बजे के बाद ही पर्यटक अंदर जा सकते हैं। यहां बरामदे में एक बोर्ड लगा है जिस पर गाइडेड टूर से जुड़ी जानकारी लिखी गई है। अगर आप गाइडिड टूर का हिस्सा बनना चाहते हैं तो उस बोर्ड के पास खड़े हो जाएं। बोर्ड में लिख समय पर गाइड वहां पहुंच जाएंगें। शुक्रवार का पहला टूर शाम पांच बजे से था। ठीक पांच बजे कुछ गाइड वहां आए और मेरा टूर शुरू हुआ। गाइड मस्जिद के बनने की कहानी बताना शुरू करते हैं। गलियारे में आगे बढ़ते हुए वहां बनी की गई कलाकारी के बारे में बताते हैं। इस मस्जिद को बनाने में इटली, भारत, ग्रीस, ईरान, मौरक्को, चीन, ब्रिटेन, जैसे बहुत से देशों की चीजों का इस्तेमाल किया गया है। मस्जिद को पूरा बनने में करीब 11साल का समय लगा। मस्जिद को बनाने में भारत के संगरमर का भी इस्तेमाल किया गया है। गाइड एक-एक कर सभी चीजों की जानकारी देता है। आप उससे प्रश्न भी पूछ सकते हैं।
मस्जिद के गलियारे में संगमरमर के खंभे लगे हैं। इन खंभों को कीमती और अर्ध-कीमती पत्थरों जैसे लाजवर्त (lapis lazuli), लाल गोमेद ( red Agate), ऐमेथिस्ट (amethyst) से सजाया गया है। इन खंभों का डिज़ाइन अरब में बहुतायत से पाए जाने वाले ख़जूर के पेड़ों से लिया गया है। इसके गलियारों में कुल 1096 खंभे बनाए गए हैं। कीमती पत्थरों से खंभों को सजाने के लिए “पीट्रा ड्यूरा” का इस्तेमाल किया गया है।
Trivia – “पीट्रा ड्यूरा” पत्थरों में कीमती पत्थरों को जड़ने की कला है। इटली में जन्मी इस कला का इस्तेमाल ताजमहल को सजाने में भी किया गया है।
गलियारे के गुम्बजों पर कुरान की आयतें लिखी गई है। इन्हें लिखने के लिए कैलिग्राफी का इस्तेमाल किया गया है। कैलिग्राफी को हिन्दी में सुलेखन कहा जाता है। यहां गुम्बजों पर कैलिग्राफी की कई शैलियों को देखा जा सकता है। पूरी मस्जिद में कुल 82 गुम्बज बने हैं। मुख्य हॉल के बीच बना गुम्बज सबसे विशाल है।
Trivia- कैलिग्राफी की शुरुआत पश्चिम एशिया में ही हुई थी। यहां हाथ से कुरान लिखने के लिए इस कला का विकास किया गया।
मस्जिद के मुख्य पूजा हॉल की बहुत की विशेषताएं हैं। यहां की छत पर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा झाड़ फ़ानूस टंगा है। स्वरोस्की क्रिस्टल से बने इन झाड़ फ़ानूसों की ख़ूबसूरती देखते ही बनती है। मस्जिद में कुल 7 झाड़ फ़ानूस लगाए गए हैं। सबसे बड़े फ़ानूस का वजन 12 टन है। फ़ानूसों में 40 किलो शुद्ध सोने का इस्तेमाल किया गया है। मुख्य हॉल में दुनिया का सबसे बड़ा हाथ से बना गलीचा बिछाया गया है। 1200 कारीगरों ने दो साल की मेहनत से इसे तैयार किया है।
गाइड टूर की एक ख़ासियत है कि आप यहां के गाइड से इस्लाम से जुड़ा कोई भी सवाल कर सकते हैं। वे खुले दिल से आपके सवालों के जवाब देते हैं। मैं दूसरी बार यह मस्जिद देख रहा था। जब मैं पिछली साल यहां आया था तो गाइड एक महिला थीं। टूर के दौरान उन्होंने कहा था नमाज ध्यान और योग का मिश्रण है। मैंने उनसे पूछा कि आप क्या कह रही हैं- उन्होंने बात दोहराई कि मैं सही कह रही हूँ, नमाज, ध्यान और योग का मेल ही है। तब मैंने उन्हें कहा था कि काश आपकी यह बात भारत तक भी पहुंचती।
मस्जिद देख कर बाहर आने तक शाम होने लगी थी। मैने आने का यह समय जानबूझ कर चुना था ताकि लौटते समय अंधेरा हो जाए और कृत्रिम रोशनी में मस्जिद को देखा जा सके। सैंकड़ों बल्बों की रोशनी में नहाई मस्जिद बहुत शानदार दिखाई देती है। यहां आने के लिए ऐसा समय चुनें की शाम की रोशनी का अांनद ले सकें। मस्जिद पर की जाने वाले रोशनी की ख़ासियत यह है कि इसकी रोशनी चांद की रोशनी के हिसाब से घटती-बढ़ती है। इसलिए हर दिन इसकी रोशनी में फर्क दिखाई देता है। चांद के बढ़ने के साथ ही यहां के गुम्बजों पर रोशनी भी बढ़ती चली जाती है।
पर्यटकों के लिए मस्जिद खुलने का समय –
शनिवार से गुरूवार- सुबह 9 बजे से रात 10 बजे तक
शुक्रवार – शाम 4.30 से रात 10 बजे तक
गाइडेड टूर का समय –
रविवार से गुरूवार- सुबह 10, 11 और शाम 5 बजे
शुक्रवार – शाम 5 और 7 बजे
शनिवार- सुबह 10, 11, दोपहर 2, शाम 5 और 7 बजे
– ध्यान रखें कि रमज़ान के महीने में पर्यटकों के लिए मस्जिद खुलने का समय बदल जाता है। रमज़ान में शुक्रवार के दिन मस्जिद पर्यटकों के लिए बंद रहती है। बाकि के दिनों में सुबह 9 बजे से दोपहर 1 बजे के बीच पर्यटकों के लिए खोली जाती है। गाईड टूर केवल सुबह 10 और 11 बजे किए जा सकते हैं।