अमृतसर हेरिटेज वॉक- झरोखे से झांकता इतिहास
अमृतसर अनोखा शहर है। इसकी शुरुआत एक धार्मिक जगह के तौर पर
हुई। गुरु रामदास जी ने सन् 1574 में इसकी नींव रखी थी। शहर बढने के साथ ही यहां राजस्थान जैसे
इलाकों से व्यापारियों को बसाया गया। जिससे यह उत्तर भारत से अफगानिस्तान तक के
इलाके की प्रमुख व्यापारिक मंडी में बदल गया। एक धार्मिक शहर से व्यापारिक शहर बनने तक के दौर में अमृतसर ने बहुत उतार चढ़ाव देखे। अमृतसर के विकास की यह कहानी यहां कि
गलियों, बाजारों, हवेलियों और किलो में साफ दिखाई देती है।
हुई। गुरु रामदास जी ने सन् 1574 में इसकी नींव रखी थी। शहर बढने के साथ ही यहां राजस्थान जैसे
इलाकों से व्यापारियों को बसाया गया। जिससे यह उत्तर भारत से अफगानिस्तान तक के
इलाके की प्रमुख व्यापारिक मंडी में बदल गया। एक धार्मिक शहर से व्यापारिक शहर बनने तक के दौर में अमृतसर ने बहुत उतार चढ़ाव देखे। अमृतसर के विकास की यह कहानी यहां कि
गलियों, बाजारों, हवेलियों और किलो में साफ दिखाई देती है।
इस कहानी को देखने का सबसे बेहतर जरिया है अमृतसर हेरिटेज वॉक। कुछ साल पहले पंजाब पर्यटन विभाग ने इसको शुरु किया है।
सुबह सवेरे शुरु होने वाले इस वॉक के लिए हमारे गाइड थे
देवेन्द्र सिंह जी। आप इन्हें अमृतसर के इतिहास का चलता फिरता इनसाइक्लोपीडिया भी
कह सकते हैं।
देवेन्द्र सिंह जी। आप इन्हें अमृतसर के इतिहास का चलता फिरता इनसाइक्लोपीडिया भी
कह सकते हैं।
देवेन्द्र जी हेरिटेज वॉक के बारे में बताते हुए |
देवेन्द्र जी के साथ सभी लोग अमृतसर के टाउन हॉल पर जमा
हुए। टाउन हॉल से ही हैरिटेज वॉक की शुरुआत होती है। तो सबसे पहले बात टाउन हॉल की
। फिलहाल जो टाउन हॉल हमें दिखाई देता है
इसको पंजाब की जीत के बाद अंग्रेजो में प्रशासनिक कार्यालय के तौर से काम करने के
लिए सन् 1866 में बनवाया था।
हुए। टाउन हॉल से ही हैरिटेज वॉक की शुरुआत होती है। तो सबसे पहले बात टाउन हॉल की
। फिलहाल जो टाउन हॉल हमें दिखाई देता है
इसको पंजाब की जीत के बाद अंग्रेजो में प्रशासनिक कार्यालय के तौर से काम करने के
लिए सन् 1866 में बनवाया था।
टाउन हॉल |
अंग्रेजी वास्तुकला की झलक इसके स्थापत्य में भी
दिखाई देती है। लेकिन इस का इतिहास और भी पुराना है। इसी जगह पर सबसे पहले महाराजा
रणजीत सिंह ने प्रशासनिक भवन बनवाया। महाराज रणजीत सिंह के समय बनी इमारत सिक्ख
वास्तुकला के अनुसार बनी थी। लेकिन सिक्ख विरासत को मिटा कर अपनी पहचान स्थापित
करने के लिए उस इमारत को बाद में अंग्रेजो
ने गिराकर टाउन हॉल का निर्माण किया। अभी
भी इसमें प्रशासनिक दफ्तर काम कर रहे हैं। लेकिन टाउन हॉल की बेहद जर्जर हालत में है। अब धीरे-धीरे यहां से सभी कार्यालयों को
हटाया जा रहा है। उसके बाद इमारत को फिर से सहेज कर इसे पर्यटकों के लिए खोला
जाएगा।
दिखाई देती है। लेकिन इस का इतिहास और भी पुराना है। इसी जगह पर सबसे पहले महाराजा
रणजीत सिंह ने प्रशासनिक भवन बनवाया। महाराज रणजीत सिंह के समय बनी इमारत सिक्ख
वास्तुकला के अनुसार बनी थी। लेकिन सिक्ख विरासत को मिटा कर अपनी पहचान स्थापित
करने के लिए उस इमारत को बाद में अंग्रेजो
ने गिराकर टाउन हॉल का निर्माण किया। अभी
भी इसमें प्रशासनिक दफ्तर काम कर रहे हैं। लेकिन टाउन हॉल की बेहद जर्जर हालत में है। अब धीरे-धीरे यहां से सभी कार्यालयों को
हटाया जा रहा है। उसके बाद इमारत को फिर से सहेज कर इसे पर्यटकों के लिए खोला
जाएगा।
यहां अंग्रजों के समय के समय रहे प्रशासनिक कार्यालयों के
कुछ निशान अभी भी दिखाई देते हैं।
कुछ निशान अभी भी दिखाई देते हैं।
अंग्रेजों के समय की निशानी |
टाउन हॉल से कुछ आगे बढते ही आता है गुरुद्वारा सारागढ़ी।
गुरुद्वारा सारागढ़ी
गुरुद्वारे की खासियत
यह है कि अपने 21 बहादुर सिक्ख सैनिकों की याद में खुद अंग्रेजो में 1902 में इसे
बनवाया था। इन 21 सैनिकों ने वजीरस्तान के इलाके में सारागढ़ी के किले को बचाने के
लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी।
यह है कि अपने 21 बहादुर सिक्ख सैनिकों की याद में खुद अंग्रेजो में 1902 में इसे
बनवाया था। इन 21 सैनिकों ने वजीरस्तान के इलाके में सारागढ़ी के किले को बचाने के
लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी।
गुरुद्वारा सारागढ़ी |
सारागढ़ी के बारे में जानने के लिए सारागढ़ी गुरुद्वारे पर
लिखा मेरा पोस्ट पढ़ें।
लिखा मेरा पोस्ट पढ़ें।
किला अहालूवालिया
सारागढ़ी गुरुद्वारा से कुछ आगे है किला आहलूवालिया। अमृतसर
की रक्षा के लिए इसके चारों तरफ बनाए गए किलों में एक है किला आहलूवालिया। बीते
वक्त में कभी शानदार रहा यह किला समय की मार के आगे बेदम हो चुका है।
की रक्षा के लिए इसके चारों तरफ बनाए गए किलों में एक है किला आहलूवालिया। बीते
वक्त में कभी शानदार रहा यह किला समय की मार के आगे बेदम हो चुका है।
किला अहालूवालिया की जर्जर हालत |
किले के अंदर एक बड़ा चौक है जिसके चारो तरफ हवेलियां और
मकान बने हैं। इन हवेलियों में कभी सैनिक और किले की अधिकारी रहा करते थे। बाद में
अंग्रेजों के समय यहां बाहर से आए व्यापारियों को बसा दिया गया। वक्त से आगे यहां
की हवेलिया अपनी चमक खो रही है। अधिकतर मकानों को आधुनिक सीमेंट से लीप दिया गया
है लेकिन फिर भी पुराने दिनों के अवशेष नजर आ ही जाते हैं।
मकान बने हैं। इन हवेलियों में कभी सैनिक और किले की अधिकारी रहा करते थे। बाद में
अंग्रेजों के समय यहां बाहर से आए व्यापारियों को बसा दिया गया। वक्त से आगे यहां
की हवेलिया अपनी चमक खो रही है। अधिकतर मकानों को आधुनिक सीमेंट से लीप दिया गया
है लेकिन फिर भी पुराने दिनों के अवशेष नजर आ ही जाते हैं।
किला अहालूवालिया की हालत |
किला एक तरह से थोक बाजार और गोदाम में बदल गया है। हर तरफ
दुकानों के बोर्ड लगे नजर आते हैं। हमारे विरासत के साथ हम किस हद तक खिलवाड़ कर
सकते हैं इसका जीता जागता उदाहरण है किला आहलूवालिया।
दुकानों के बोर्ड लगे नजर आते हैं। हमारे विरासत के साथ हम किस हद तक खिलवाड़ कर
सकते हैं इसका जीता जागता उदाहरण है किला आहलूवालिया।
सरकार अगर चाहे तो किले के पुराने वैभव को लौटा कर इसे
पर्यटकों की चहेती जगह के रुप में बदला जा सकता है। किले की बुरी हालत से रुबरु
होकर गंदी गलियों में होकर हम आगे बढे।
पर्यटकों की चहेती जगह के रुप में बदला जा सकता है। किले की बुरी हालत से रुबरु
होकर गंदी गलियों में होकर हम आगे बढे।
आगे की गलियों हवेलियों से भरी
पड़ी हैं। शहर बनना शुरु होने के बाद गुरुओं और बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने देश
के दूसरे इलाकों से व्यापारियों को यहां लाकर बसाया। जिसमें राजस्थान के मारवाड़ी
भी शामिल थे। उन्हीं व्यापारियों ने यहां शानदार हवेलियां बनवाई। इन हवेलियों की
खूबसूरती देखते ही बनती हैं। लकड़ी पर कुराई के काम के साथ बने झरोखे और खिडकियां,
शेखावटी शैली में बने भित्ती चित्र आपके अनायास उस पुराने दौर में ले जाते हैं जब
इन हवेलियों में व्यापारियों की चहल – पहल रहती होगी।
पड़ी हैं। शहर बनना शुरु होने के बाद गुरुओं और बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने देश
के दूसरे इलाकों से व्यापारियों को यहां लाकर बसाया। जिसमें राजस्थान के मारवाड़ी
भी शामिल थे। उन्हीं व्यापारियों ने यहां शानदार हवेलियां बनवाई। इन हवेलियों की
खूबसूरती देखते ही बनती हैं। लकड़ी पर कुराई के काम के साथ बने झरोखे और खिडकियां,
शेखावटी शैली में बने भित्ती चित्र आपके अनायास उस पुराने दौर में ले जाते हैं जब
इन हवेलियों में व्यापारियों की चहल – पहल रहती होगी।
किला अहालूवालिया के दरवाजे पर लकड़ी का सुंदर काम |
हवेलियों पर बने झरोखे |
हवेलियों पर बने भित्ति चित्र- रेलगाड़ी दिखाई दे रही है |
इन हवेलियों के स्थापत्य में कहीं-कहीं यूरोपीय प्रभाव भी साफ नजर आता है। घरों और दुकानों को सजाने के लिए यूरोप से लाई गई टाइल्स का बखूबी इस्तेमाल हुआ है।
यूरोपियन टाइल्स का इस्तेमाल |
आज ज्यादातर हवेलियां बुरी हालात में हैं। बहुतों पर ताले
पड़े हैं। या फिर इनमें रहने वाले किसी तरह से इनका वजूद बचाए हुए हैं।
पड़े हैं। या फिर इनमें रहने वाले किसी तरह से इनका वजूद बचाए हुए हैं।
हवेलियों की हालत |
इसी तरह की
राजस्थान से आए सिंघानिया परिवार की हवेली में हमें जाने का मौका मिला। देवेन्द्र
जी हवेली में रहने वाले सिंघानिया परिवार को जानते थे।
राजस्थान से आए सिंघानिया परिवार की हवेली में हमें जाने का मौका मिला। देवेन्द्र
जी हवेली में रहने वाले सिंघानिया परिवार को जानते थे।
हवेली में पहली
मंजिल पर जाने के लिए बनी लकड़ी की सीढ़ियों से ही इसकी भव्यता का अंदाजा लग रहा
था। ऊपर जाकर हवेली के कमरों में बेल्जियम के स्टेन ग्लास से बनी खिड़कियां दिखाई
दी, जो आज भी सूरज की रोशनी में कमरे को सतरंगी रोशनी से भर देती हैं।
मंजिल पर जाने के लिए बनी लकड़ी की सीढ़ियों से ही इसकी भव्यता का अंदाजा लग रहा
था। ऊपर जाकर हवेली के कमरों में बेल्जियम के स्टेन ग्लास से बनी खिड़कियां दिखाई
दी, जो आज भी सूरज की रोशनी में कमरे को सतरंगी रोशनी से भर देती हैं।
स्टेन ग्लास की खिड़कियां |
कमरों में
आज भी उस दौर का पुराना फर्नीचर रखा है। सिंघानिया परिवार अपनी आय से इसको बचाने
की कोशिश कर रहा है। लेकिन इसकी भव्यता को बनाए रखना आसान काम नहीं है। सरकार चाहे
तो इनकी हवेलियों को किस्तम पलट सकती है। अमृतसर की उजाड़ होती हवेलियों को पर्यटन
की शान बनाया जा सकता है।
आज भी उस दौर का पुराना फर्नीचर रखा है। सिंघानिया परिवार अपनी आय से इसको बचाने
की कोशिश कर रहा है। लेकिन इसकी भव्यता को बनाए रखना आसान काम नहीं है। सरकार चाहे
तो इनकी हवेलियों को किस्तम पलट सकती है। अमृतसर की उजाड़ होती हवेलियों को पर्यटन
की शान बनाया जा सकता है।
खैर हवेलियों को देखते हुए हम पहुंचते हैं जलेबीवाला चौक।
चौक पर मौजूद जलेबी की प्रसिद्ध दुकान के कारण इसका यह नाम पडा। किसी जमाने में यह
चौक चाय की सबसे बड़ी मंडियों में से एक था। चौक में चारों तरफ दुकानों के ऊपर की
पहली मंजिल पर लोग खड़े होकर चाय का भाव लगाते है। चाय के भाव लगाने वालों के शोर से
यह चौक गुलजार रहता था।
चौक पर मौजूद जलेबी की प्रसिद्ध दुकान के कारण इसका यह नाम पडा। किसी जमाने में यह
चौक चाय की सबसे बड़ी मंडियों में से एक था। चौक में चारों तरफ दुकानों के ऊपर की
पहली मंजिल पर लोग खड़े होकर चाय का भाव लगाते है। चाय के भाव लगाने वालों के शोर से
यह चौक गुलजार रहता था।
जलेबीवाला चौक |
आपको की पढ़कर कुछ अज़ीब लगा होगा कि पंजाब का शहर अमृतसर
चाय की मंडी कैसे बना, जिसका चाय से दूर-दूर तक
लेना देना नहीं है। दरअसल अमृतसर के विकास के दौर में देश के दूसरे इलाकों के
व्यापारियों के आने का सिलसिला अंग्रेजो के समय में भी चालू रहा। उस दौरान अमृतसर आज
के पाकिस्तान, अफगानिस्तान और कश्मीर जाने वाले माल की बड़ी मंडी हुआ करता था। इसी
समय यहां बसे व्यापारी आसाम से खुली चाय मंगावाकर उसे अफगानिस्तान और कश्मीर तक
भेजा करते थे। चाय का यह व्यापार इतना फैल चुका था कि आजादी से पहले तक अमृतसर चाय
की ग्रेडिंग करने का सबसे बड़ा केन्द्र हुआ करता था। यहां की हरी चाय ( ग्री टी)
की बहुत मांग थी। चाय के इस कारोबार की कुछ निशानियां आज भी बाजार में दिखाई दे
जाती है।
चाय की मंडी कैसे बना, जिसका चाय से दूर-दूर तक
लेना देना नहीं है। दरअसल अमृतसर के विकास के दौर में देश के दूसरे इलाकों के
व्यापारियों के आने का सिलसिला अंग्रेजो के समय में भी चालू रहा। उस दौरान अमृतसर आज
के पाकिस्तान, अफगानिस्तान और कश्मीर जाने वाले माल की बड़ी मंडी हुआ करता था। इसी
समय यहां बसे व्यापारी आसाम से खुली चाय मंगावाकर उसे अफगानिस्तान और कश्मीर तक
भेजा करते थे। चाय का यह व्यापार इतना फैल चुका था कि आजादी से पहले तक अमृतसर चाय
की ग्रेडिंग करने का सबसे बड़ा केन्द्र हुआ करता था। यहां की हरी चाय ( ग्री टी)
की बहुत मांग थी। चाय के इस कारोबार की कुछ निशानियां आज भी बाजार में दिखाई दे
जाती है।
80 साल से है यह चाय की दुकान |
इतिहास की इन्हीं पन्नो को पढते हुए हम आगे बढते रहे। लेकिन
रास्ते में दिखाई देती पुरानी दुकानों या हवेलियों को देखते ही कदम फिर से रुक
जाते थे।
रास्ते में दिखाई देती पुरानी दुकानों या हवेलियों को देखते ही कदम फिर से रुक
जाते थे।
गलियां |
यहां से निकल कर अखाड़ा संगल वाला पर पहुंच कर हमें समय की
कमी के कारण अमृतसर हैरिटेज वॉक का अपनी सफर खत्म करना पड़ा।
कमी के कारण अमृतसर हैरिटेज वॉक का अपनी सफर खत्म करना पड़ा।
अखाड़ा संगल वाला |
लेकिन अमृतसर हैरिटेज
वॉक में अभी और भी कई जगहें जिन्हें अगर आप जाएं तो जरुर देखें।
वॉक में अभी और भी कई जगहें जिन्हें अगर आप जाएं तो जरुर देखें।
कैसे जाएं– अमृतसर हैरिटेज वॉक पंजाब पर्यटन विभाग आयोजित
करता है। हर सुबह और शाम को यह वॉक होती है। ज्यादा जानकारी के लिए पर्यटन विभाग
से संपर्क करें।
करता है। हर सुबह और शाम को यह वॉक होती है। ज्यादा जानकारी के लिए पर्यटन विभाग
से संपर्क करें।
पर्यटन विभाग के कार्यालय रेलवे स्टेशन, हवाईअड्डे, और श्री
हरमिंदर साहब पर हैं।
हरमिंदर साहब पर हैं।
पंजाब पर्यटन की वेबसाइट – www.punjabtourism.gov.in
हैरिटेज वॉक के लिए देविन्दर जी से भी संपर्क किया जा सकता
है उनकी वेबसाइट – http://heritagewalk.webs.com
है उनकी वेबसाइट – http://heritagewalk.webs.com