मेरी श्रीनगर यात्रा (१)
पहला दिन
एक हफ्ते पहले से मन दिल्ली में नहीं लग रहा था। चाह रहा थी कि अभी उड कर कश्मीर की वादियों में चला जाउँ। धरती के स्वर्ग को देखने के लिए इच्छा बढती ही जा रही थी। आखिर कार चौदह की रात आ गई पूरी रात ही जैसे आंखों ही आंखो में कटी। पन्द्रह की सुबह मैं दिल्ली हवाई अड्डे पर था। कश्मीर को देखने की इच्छा इतनी ज्यादा थी कि हवाई जहाज में खिडकी की सीट ली ताकि पहला नजारा उपर से ही देख सकूँ। लगभग नौ बजे उडान शुरू हुई और दस बजे पायलेट नें बताया कि हम बस उतरने ही वाले हैं। उपर से ही सुन्दरता दिखाई देने लगी थी।
आसमान से ही नजारे अपने कैमरे में लेकर हम श्रीनगर की धरती पर उतरे।
श्रीनगर एक घाटी में बसा है इसलिए एकदम से एहसास नहीं होता कि किसी हिल स्टेशन में आ गये है। किसी मैदानी शहर जैसा ही लग रहा था श्रीनगर का पहला ऱुप। एयरपोर्ट शहर से पन्द्रह बीस किलोमीटर दूर है इसलिए टैक्सी लेकर हम शहर की तरफ चल दिये। वहा भी प्री पेड की सुविधा है। हवाई अड्डे पर ही पर्यटक सूचना केन्द्र है वहां से सारी जानकारी ली जा सकती है। वही से पता चला कि डल झील से सामने ही बिलवर्ड रोड है जहां पर बडा संख्या में होटल हैं । बिलवर्ड रोड को श्रीनगर का पर्यटन केन्द्र कह सकते हैं। ये सडक डल झील के समानान्तर बनी है जिसके एक और डल तो दूसरी और होटल बने हैं। हम भी यहां पहुचे और होटल का पता किया इस रोड पर होटल थोडे मंहगे हैं कमरे दो हजार से पांच हजार के बीच मिल जाते हैं। हमने रहने के लिए गगरी बल का इलाका चुना ये बिलवर्ड रोड के ठीक पीछे की इलाका है औऱ थोडा सस्ता भी है। यहां भी बडा संख्या में होटल हैं एक हजार रुपये में अच्छा कमरा मिल जाता है। यहीं हमने होटल लिया। होटल साफ सुथरा था किसी तरह की कमी नहीं थी। कुछ आराम करने के बाद खाना खाकर हम लोग घूमने के लिए निकले।
श्रीनगर आने पर सबसे पहले हर कोई डल झील को ही देखना चाहता है। हम भी सबसे पहले डल के किनारे ही पहुँचे। जब झील को पहली बार देखा को देखता ही रह गया। विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अब तक जिस डल के बारे में पढा भर था या दूसरों से सुना था आज मैं इसके सामने खडा हूँ। डल में तैरते रंग बिरंगे शिकारे अलग ही छटा बिखेर रहे थे। सडक पर थोडी थोडी दूर पर शिकारो के खडे होने की जगह बनी है जहां से शिकारे लिए जा सकते हैं। शिकारे वाले से चार सौ रुपये से बात शुरु हुई और आखिर में ढाई सौ रुपये में ले चलने पर बात तय हो गई। करीब तीन घंटे का ये सफर आपको एक दुसरी ही दुनिया की सैर कराता है
ये दुनिया है जो डल में बसी है जिसमें झील में बसे बाजार हैं, घर हैं दुकाने हैं स्कूल और अस्पताल हैं। तैरते खेत हैं तो नाव बनाने के कारखाने भी हैं। यानि वो सब कुछ जो एक शहर में होता है आपके डल में मिल सकता है। झील की दुनिया का सफर अगले अंक में।………………………………………
5 thoughts on “मेरी श्रीनगर यात्रा (१)”
बहुत सुंदर
बहुत ही सुंदर वर्णन और चित्रण। साधुवाद।
अद्भुत है…दिव्य है..आपका वर्णन…शायद हिंदी में इस तरह काल दूसरा ब्लॉग दुर्लभ है। बधाई स्वीकार करें।
डल झील के दर्शन और भ्रमण से तबियत एकदम चकाचक हो गयी…
नीरज
पर्यटक रुचि जागृत करने और पुरानी यादें ताजा कर देने वाला सुंदर पोस्ट.