छोटा कैलाश- ट्रैकिंग का रोमांच-४

छोटा कैलाश- ट्रैकिंग का रोमांच-४

दो जून – चढाई का दूसरा दिन- गाला से बुद्धि

गाला मे सुबह चार बजे ही हमे चाय दे दी गई। जिससे हम लोग समय से उठ कर तैयार हो सके। इस मामले में मै कुमाऊं पर्यटन के लोगों की सेवा भावना की दाद दूंगा। इतनी ठंड में भी वो हर वक्त हमारी जरुरत को पूरा करने के लिए तैयार रहते थे।
इतनी ऊंचाई पर ठंड में काम करना आसान काम नही होता। हम सभी पांच बजे तक सफर के लिए तैयार हो चुके थे। सुबह सुबह बोर्नविटा मिला दूध पीने के बाद हम साढे पांच बजे तक चल पडे।
आज पूरे इक्कीस किलोमीटर का सफर था जिसमें लगभग पूरा दिन लगना था। इसलिए सुबह के मौसम का फायदा उठाते हु्ए मै, अजय और विश तो तेजी से आगे चल दिये। हमारे सुबह के नाश्ते का इंतजाम लखनपुर में एक ढाबे में था।


गाला से लखनपुर सात किलोमीटर था। लेकिन ये सात किलोमीटर सबसे कठिन था इस रास्ते में हमे एक बार थोडी चढाई के बाद चार हजार से ज्यादा सीढियां उतरनी थी। कहने के लिए तो ये सीढियां थी, लेकिन सीढियो के नाम पर ढेडे मेडे पत्थर पडे थे। पत्थरो पर लगातार उतरना आसान नही था। रास्ता भी कही कही तो बेहद खतरनाक हो रहा था। कुछ जगहो पर तो बस पैर रखने भर की जगह ही होती थी। अगर फिसले तो सीधे हजारो फीट गहरी खाई मे समा जाएगे। लेकिन रास्ते देखने लायक था। हरे भरे ऊंचे पहाड, जगह जगह निकलते झरने रास्तो को मनमोहक बनाये रखते हैं। चलते चलते थकान होती तो आराम करने के रुक जाते थे। सीढियां उतरते उतरते तो दम फूलन लगा था। लेकिन ज्यादा आराम भी नही कर सकते नही तो आप आगे बढ ही नही सकते। खैर ढाई घँटे तक चलने का बाद सुबह के आठ बजे हम लखनपुर पहुचे। लखनपुर मे पहाड के किनारे पर एक छोटे से पहाडी ढाबे में नाश्ते का इंतजाम था। वो गर्म पूरी जैसा कुछ बना रहा था लेकिन पूरे दिन के सफर के देखते हुए मैने तो रोटी खाना ही पसंद किया। नाश्तेा के कुछ देर तक हमने यही आराम किया। रास्ते के ढाबे गांव वालो के लिए रात को रुकने के होटल के तौर पर भी काम देते है।


लखनपुर पहुचने के एक घंटे बाद नौ बजे हम लोग आगे चल दिये। यहा से छ किलोमीटर दूर मालपा तक हमे जाना था। मालपा मे हमारे दोपहर के खाने का इंतजाम किया गया था। लखनपुर से मालपा का रास्ता बेहद खतरनाक था। रास्ते के साथ तेज बहाव के साथ बहती काली नदी इसे और भी खतरनाक बना रही थी। बहाव इतना तेज था कि उससे हो रहे शोर मे बात भी करना मुश्किल था। ये नदी अब पूरे रास्ते हमारे साथ बनी रहने वाली थी। रास्ता बेहद संकरा था। कही कही इन रास्तो पर झरने मिलते रहते हैं, इनमे बचते भीगते हम आगे बढते रहे। इन झरनो के कारण रास्ता फिसलन भरा हो जाता है। अगर फिसले तो सीधे नीचे बह रही नदी मे जा मिलेगे। इसलिए यहा हम धीरे धीरे एक दुसरे को देखते हुए आगे चलते रहे।


यहा एक जगह तो बहुत ही खूबसूरते झरना मिला जहा हमने आराम भी किया। ग्यारह बजते बजते हम मालपा पहुंच गये।

मालपा गांव को बारह साल पहले १९९८ मे यहा हुए एक हादसे के कारण जाना जाता है। उस समय कुमाऊं पर्यटन का कैलाश यात्रा का पडाव मालपा मे हुआ करता था। १९९८ मे कैलाश मानसरोवर के यात्री यहां रुके थे कि रात में बरसात के बाद भंयकर भूस्खलन हो गया। कैप की जगह से ठीक उपर का पूरा पहाड ही नीचे आ गिरा। इस मलबे में मालपा गांव के साथ ही पूरा कैप ही खत्म हो गया। कैप का हिस्सा अभी भी मलबे के नीचे ही दबा है। बहुत से लोगो की लाशो को आज तक निकाला नही जा सका है। जानी मानी नृत्यागंना और अभिनेता कबीर बेदी का पत्नी प्रोतिमा बेदी का भी इस दुर्घटना मे निधन हो गया था। मालपा में इन सभी लोगो की याद मे स्मारक भी बनाया गया है। मालपा हादसे के बाद से ही कैप को मालपा से बुद्दि ले जाया गया था।


मालपा के मलबे मे दबा कैंप




मालपा मे दोपहर के खाने के बाद हम बुद्धि के लिए चल पडे। मालपा से बुद्धि नौ किलोमीटर था। शाम को करीब पांच बजे हम बुद्धि पहुच गये। बुद्धि मे शिविर के लोगो ने हमारा स्वागत किया। हमारे लिए बुरांश का जूस तैयार रखा गया था। बुरांश कुमाऊं में मिलने वाला एक फूल होता है जिससे बेहत स्वादिष्ट शरबत तैयार किया जाता है। सुबह तो जल्दी मे कोई नहाया भी नही था। यहा पहले से ही हमारे लिए गर्म पानी रखा गया था इसलिए मैने तो सबसे पहले नहाने का काम ही कियाय गर्म पानी से नहाने के बाद पूरे दिन की थकान से भी आराम मिला।

कुछ आराम के बाद मै और अजय गांव देखने निकले। बुद्दि के चारो और बर्फ से ढके पहाड इसे बेहद खूबसूरत बना रहे थे । यहा गांव मे झरने पर पानी से चलने वाली आटा चक्की भी लगी थी। इस चक्की तो यहा घराट कहा जाता है।
गांव की दुकान मे ही हमने जौ से बनने वाली स्थानिय बीयर छंग और अनाज से बनने वाली वाईन जिसे चकती कहते है का स्वाद भी लिया। इनका स्वाद तो बिलकुल अलग ही था। ऐसी बीयर तो मैने कभी भी नही पी थी।

यहा की दुकाने की एक और खासियत थी कि सुपर स्टोर की तरह जरुरत का सारा सामान एक ही दुकान मे मिल जाता है। चीन के साथ होने वाले सालाना व्यापार मे भी ये लोग जाते है। इसलिए इनकी दुकानो मे हर तरह का चीनी सामान मौजूद था जिसमे कपडे, जूते, खाने के सामान से लेकर शराब और बीयर के कैन तक सब कुछ शामिल था। इतनी ऊँचाई पर ये सब भी मिलेगा मैने तो सोचा भी नही था। गांव वालो से भी खूब बातें हुई। इलाके के बारे मे बहुत कुछ जानने को मिला। रात का खाना खाकर हम जल्दी ही सो गये क्योकि अगले दिन आगे गुजी तक का सफर तय करना था।……………………..

4 thoughts on “छोटा कैलाश- ट्रैकिंग का रोमांच-४

  1. बहुत रोचक वृतांत..हमें तो पढ़कर ही थकान हो ली..आप लोग न जाने कैसे चले होगे इतना.

  2. गोयल जी,
    आज जो चित्र आपने दिये हैं, वे अभी तक के सबसे बेहतरीन चित्र हैं.
    आज मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अगले दो साल के अन्दर मैं भी छोटा कैलाश की यात्रा करूँगा.

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