छोटा कैलाश- ट्रैकिंग का रोमांच ३

छोटा कैलाश- ट्रैकिंग का रोमांच ३

धारचुला से १ जून को छोटा कैलाश का हमार सफर शुरु हुआ। आज के बाद से सभी को सुबह जल्दी उठने की आदत डालनी थी। इसलिए सभी सुबह चार बजे ही उठ गये। नाश्ता करने का बाद सभी को आगे के सफर की जानकारी दी गई। हमारे सफर की शुरुआत ही थोडी मुश्किलो से हुई। दरअसल आज के हमारे सफर में हमे धारचुला से गर्भाधार नामकी जगह तक गाडियो से जाना था उसके बाद गाला तक लगभग पांच किलोमीटर की चढाई ही पहले दिन करनी थी। लेकिन पिछले कुछ दिनो से तवाघाट से पहले पहाड के खिसकने से सडक बंद हो चुकी थी। सडक पर करीब सौ मीटर के रास्ते पर भूस्खलन हो रहा था। अब इस सौ मीटर के कारण हमे इस जगह से पहले चढाई करके इसके पार निकलना था। लेकिन इसके लिए लिए हमें आठ किलोमीटर का पैदल सफर करना पडा।

खैर धारचुला में चलने से पहले हमारे पिट्ठू और घोडे वाले हमसे मिले। हमारा सामान घोडो पर जाने वाला था। और अगर किसी को चलने में दिक्कत हो उसे भी यहा से ही घोडे करने थे जो हमें आगे गर्भाधार से मिलने वाले थे। मैने जरुरी सामान अपने बैकपैक मे लिया और बाकी का सामान घोडे वालो को दे दिया।
धारचुला की सुबह बहुत ही हलचल भरी थी। करीब सात बजे हम यात्रा के लिए रवाना हुए। हम भूस्खलन वाली जगह पर पहुचे जहा से आठ बजे हमने अपनी चढाई का पहला दौर शुरु किया। ये आठ किलोमीटर हमारे ट्रैकिग प्लान में नही थे लेकिन पहाड पर हमेशा इसके लिए तैयार रहना चाहिए। ये आने जाने का आम रास्ता नही था इसलिए कही कही तो ये एक फीट भी चौडा नही था। इस साल के छोटा कैलाश और कैलाश मानसरोवर की यात्रा इसी रास्ते से होनी था इसलिए रास्ते को ठीक किया जा रहा था। खैर तेजी से चलते हुए मै, अजय और विश तो करीब ग्यारह बजे ही नीचे पहुच गये। विश सर आस्ट्रैलिया मे रहने वाले एन आर आई थे। आजकल नौकरी छोड कर भारत वापस चुके थे और अब अपने गृहनगर बैगलोर में रह रहे थे। साठ की उम्र के बावजूद वो काफी फिट थे। हालाकि बाकी लोगो के लिए हमने दो बजे तक इंतजार किया।

दो बजे हमे गाडियो से गर्भाधार के लिए रवाना हुए। रास्ते मे कुमाऊ पर्यटन ने अपने कैप में दोपहर के खाने का इंतजाम किया था। खाना खाकर हम गर्भाधार से उस दिन के पहले पडाव गाला के लिए रवाना हुए। गाला तक के लिए पांच किलोमीटर से ज्यादा की चढाई करनी थी। चार बजे से कुछ पहले ही हमने चढाई शुरु कर दी थी। अब रास्ते के पेड पौधे भी बदलने लगे थे क्योकि ऊंचाई के साथ वो भी बदल रहे थे। रास्ता भी खुबसूरत होता जा रहा था। ये एक अलग ही दुनिया थी जहा हमारी जिंदगी की रोज रोज की भागमभाग नही थी। मोबाइल फोन को बहुत पहले ही साथ छोड चुके थे। ऐसा लग रहा था कि हम समय मे बहुत पीछे लौट आये हैं।

रास्ते मे बरसात भी होने लगी। शाम को करीब साढे सात बजे हम गाला में कुमाऊं पर्यटन के कैम्प मे पहुचे। कैम्प के अधिकारी और दूसरे लोगो मे हमारा स्वागत किया। हमारे लिए चाय और गर्म पानी तैयार रखा गया था। गाला २४०० मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर है इसलिए शाम को वहा अच्छी ठंड हो गयी थी। पहले दिन का चढाई के बाद सभी लोग थक गये थे इसलिए खाना खाने के बाद जल्दी हम सब लोग सो गये। अब आगे से हमे जल्दी सोने की आदत डालनी था क्योकि रोज सुबह हमे पांच से छ बजे के बीच यात्रा शुरु करनी थी। जिससे सभी लोग रात होने से पहले ही अगले पडाव पहुंच जायें। गाला के बाद अगले दिन तो हमें बुद्धि जाना था जिसके लिए लिए २१ किलोमीटर का सफर करना था। गाला से बुद्धि तक का रास्ता पूरे सफर का सबसे कठिन हिस्सा था।……………

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